दुनिया में सबसे अधिक खतरा अगर किसी चीज से है, तो वह है नशीले पदार्थों का कारोबार। इसी के जरिए आतंकवाद आदि का वित्तपोषण होता है। हर वर्ष लाखों नौजवान अकाल मौत मर जाते हैं। इसलिए सरकारों से अपेक्षा की जाती है कि इस पर रोक लगाने में वे अधिक सतर्कता बरतें। मगर लगता है कि भारत इस कारोबार के लिए सबसे सुरक्षित जगह बनता जा रहा है।

नहीं तो, क्या कारण है कि यहां थोड़े-थोड़े दिनों पर ही नशे की बड़ी खेप पकड़ी जाती है। अभी पोरबंदर के बंदरगाह से तैंतीस सौ किलो नशीले पदार्थ की खेप बरामद की गई, जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत करीब दो हजार करोड़ रुपए बताई जा रही है। इससे पहले शुक्रवार को सोमनाथ के वेरावल घाट पर बह कर आई करीब साढ़े तीन सौ करोड़ रुपए की नशीले पदार्थ की खेप बरामद हुई थी।

पिछले वर्ष मुंद्रा बंदरगाह पर एक पोत के औंचक निरीक्षण में करीब पंद्रह हजार करोड़ रुपए की खेप पकड़ी गई थी। इस तरह अलग-अलग जगहों से छोटी-छोटी खेपें आए दिन पकड़ी जाती हैं। निस्संदेह यह पुलिस और संबंधित नशारोधी विभागों की सक्रियता कही जा सकती है, मगर सवाल है कि इतने बड़े पैमाने पर हो रहे नशे के कारोबार पर अंकुश क्यों नहीं लग पा रहा।

नशे की पकड़ी गई बड़ी खेपों के बारे में तो खबरें सामने आ जाती हैं, मगर अंदाजा लगाना मुश्किल है कि ऐसा न जाने कितना नशीला पदार्थ निगरानी तंत्र की नजर से पार निकल जाता होगा। सवाल है कि जो स्वापक विभाग यानी नारकोटिक्स महकमा एक-दो ग्राम नशीला पदार्थ रखने वालों को गिरफ्तार कर महीनों बंद रखता है, वह इन बड़ी खेपों पर नजर रखने में विफल कैसे हो जाता है।

समंदर के रास्ते नशे का कारोबार कोई छिपी बात नहीं है। यह इसलिए सुरक्षित माना जाता है कि बंदरगाहों पर उतरने वाली वस्तुओं की नियमित जांच नहीं होती। औंचक निरीक्षण में कभी-कभार ही कुछ संदिग्ध वस्तुओं और नशीले पदार्थों की पहचान हो पाती है। लगातार इतने मामले प्रकाश में आने के बावजूद यह समझना मुश्किल है कि बंदरगाहों पर निगरानी चौकस क्यों नहीं की जाती।