दिल्ली की जीवनरेखा यमुना निरंतर मलिन हो रही है। राजधानी में बाईस किलोमीटर तक फैली इस नदी में प्रतिदिन छोटे-बड़े नालों का दूषित जल शोधित हुए बिना मिल जाता है। यमुना की सफाई के नाम पर दिल्ली सरकार गुजरे कई वर्षों में कई हजार करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। फिर भी यह मलिन दिखती है, तो इसका जिम्मेदार कौन है? सच्चाई यह है कि नदी को निर्मल करने के लिए कभी भी चरणबद्ध योजना बना कर काम नहीं किया गया। नतीजा यह कि यमुना में कभी अमोनिया का स्तर बढ़ जाता है, तो कभी सफेद झाग तैरने लगते हैं। इसे कम करने के तमाम उपाय असफल रहे। इस बार भी ऐसा ही हुआ।

यमुना दिल्ली में आकर प्रदूषित हो जाती हैं

दरअसल, इसकी सबसे बड़ी वजह नालों में बिना शोधित डाला गया रसायन और दूषित पानी है। यमुना जब दिल्ली में प्रवेश करती है, तो वह उतनी प्रदूषित नहीं होती, लेकिन जैसे-जैसे वह आगे बढ़ती है, वह मैली होती जाती है। इस बार तो स्थिति इतनी भयावह हो गई कि छठ पर श्रद्धालुओं को पूजा की अनुमति देने से दिल्ली हाई कोर्ट ने साफ मना कर दिया। अदालत को यहां तक कहना पड़ा कि श्रद्धालु इस समय डुबकी लगाएंगे तो वे बीमार हो सकते हैं।

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उच्च न्यायालय की चिंता जायज है। यह समस्या कोई नई नहीं है। बावजूद इसके सरकार ने विभिन्न घाटों पर छठ व्रतियों के लिए तैयारी नहीं की। सभी जानते हैं कि यमुना एक-दो दिन में साफ नहीं हो सकती। मगर सवाल यह है कि सरकार ने पहले से ही इस दिशा में तैयारी क्यों नहीं की। हर वर्ष छठ से पहले यमुना में सफेद झाग की चादर फैल जाती है।

कई बार इस तरह की तस्वीरें डरातीं और चिंता पैदा करती हैं, पर नदी की निर्मलता लौटाने का जिम्मा संभाले अधिकारी आंखें मूंदे रहते हैं। वर्ष 1993 में लाई गई यमुना कार्ययोजना का हासिल सबके सामने है। इस योजना मद में आबंटित की गई राशि से यमुना की सफाई कहां तक पहुंची, यह एक जगजाहिर हकीकत है। हर बार यह कह कर पल्ला झाड़ लिया जाता है कि अगले साल यह स्वच्छ हो जाएगी। अगर यमुना अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है, तो इस पर सभी को सोचना होगा कि इसके लिए किसकी जवाबदेही है और इसका भुक्तभोगी कौन!