किसी व्यक्ति की धारणा, आस्था या फिर मान्यता उसका निजी मामला हो सकता है, लेकिन अगर उसकी वजह से कोई भ्रम फैलता, गलत धारणाओं के विकास की भूमिका बनती है तो उसके औचित्य पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। खासकर विज्ञान के क्षेत्र से जुड़ा और अहम पद पर आसीन व्यक्ति अगर वास्तविकताओं की व्याख्या करने के बजाय ऐसी बात कहता है, जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, तो यह अपने आप में एक बड़ी विडंबना है।
पिछले दिनों समूचे हिमाचल प्रदेश को भारी बारिश और भूस्खलन की वजह से एक बड़ी त्रासदी का सामना करना पड़ा। बड़े पैमाने पर सड़कें तबाह हो गईं, दो सौ से ज्यादा लोगों की जान चली गई, बहुत सारे घर जमींदोज हो गए। अब भी वहां हालात सामान्य नहीं हो सके हैं। भारी तबाही के बाद अब जाकर उसके कारणों पर लोगों का ध्यान जाना शुरू हुआ है और उस पर सवाल उठने लगे हैं। ऐसी स्थिति में हिमाचल प्रदेश के मंडी स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आइआइटी के निदेशक का एक विचित्र बयान आया है कि राज्य के लोग जानवरों को मार कर मांस खाते हैं, इसी वजह से वहां प्राकृतिक त्रासदी आई है।
हैरानी की बात है कि यह बात उन्होंने संस्थान के सभागार में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कही। यह बेहद अफसोसनाक है कि जिस संस्थान को देश और दुनिया भर में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नए प्रतिमान गढ़ने के लिए जाना जाता रहा है, उसे नेतृत्व देने वाले व्यक्ति के रूप में ऐसे विचार को वे न केवल संस्थान में जाहिर कर रहे हैं, बल्कि विद्यार्थियों को यह मानने के लिए जोर भी दे रहे हैं।
जबकि हिमाचल प्रदेश में पिछले कुछ महीनों में हुई तबाही के कारणों की खोज करने और भविष्य में उससे बचने के उपाय निकालने के मामले में आइआइटी की एक अहम भूमिका हो सकती है। मगर इस महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी को निभाने के लिए विद्यार्थियों को कोई दिशा देने के बजाय निदेशक ने तबाही के लिए ऐसा कारण दिया है, जिसके सामने आने के बाद उसे एक अजीबोगरीब बयान के रूप में देखा जा रहा है।
यह विज्ञान की उपलब्धियां ही रही हैं, जिनके जरिए आज प्रकृति के गूढ़ रहस्यों को खोज निकाला गया है। किसी भी आपदा की स्थिति में समर्पण करने के बजाय उसके कारणों की पहचान की जाती है, उससे निपटने के उपाय निकाले जाते हैं। हिमाचल प्रदेश में इस साल की भारी बारिश और बादल फटने की घटनाओं के बाद नदियों के उफनने और उसकी तेज धार की वजह से सड़कें तबाह होने से लेकर पहाड़ धंसने से व्यापक पैमाने पर जानमाल के नुकसान के कारण स्पष्ट रहे हैं।
राज्य भर में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, पहाड़ काट कर चौड़ी सड़कें बनाना, नदियों के रास्ते में होटलों और पुलों का निर्माण आदि कुछ ऐसे वजहें रही हैं, जो सामान्य बारिश को भी आपदा की शक्ल देने के लिए काफी हैं। इसमें और भी जिम्मेदार कारकों की खोज करके उसका समाधान निकालने की जरूरत है। लेकिन तबाही के लिए जानवरों का मांस खाने को जिम्मेदार बताया जाना एक भ्रामक बयान है।
विडंबना है कि मंडी के आइआइटी के निदेशक पहले भी अपने भूत-प्रेत या अंधविश्वास से जुड़े कुछ अन्य विचारों के लिए विवादों में रहे हैं। अब उनके ताजा विवादित बयान को चाहे जिस तरह देखा जाए, लेकिन ऐसे गैरजरूरी और निराधार विचारों से विज्ञान और वैज्ञानिक सोच के विकास की राह जरूर बाधित होती है।