पहली बार सन 1991 में संयुक्त राष्ट्र ने तय किया था कि 14 नवंबर को पूरी दुनिया मधुमेह के रोग से बचाव और उपचार को लेकर जागरूकता संबंधी बातें किया करेगी। चूंकि एक विश्व दिवस मधुमेह के नाम पर भी है, इसी से साबित होता है कि मधुमेह को एक वैश्विक समस्या मान लिया गया है। जहां तक भारत की बात है तो इस रोग की गंभीरता समझने के लिए यह आंकड़ा काफी है कि पिछले साल सितंबर से लेकर इस साल अक्तूबर तक देश में मधुमेह संबंधी सलाह लेने वालों की संख्या में काफी ज्यादा बढ़ोतरी हुई है।
कहने को तो कह सकते हैं कि इस रोग को लेकर जागरूकता बढ़ने की वजह से ज्यादा लोगों ने विशेषज्ञ सलाह लेना शुरू कर दिया है। लेकिन इस रिपोर्ट पर भी गौर किया जाना चाहिए कि इस साल मार्च से लेकर अब तक जिन पांच लाख छत्तीस हजार लोगों की मधुमेह जांच हुई, उनमें एक तिहाई मधुमेह रोगी निकले। जाहिर है, आमतौर पर मधुमेह की आशंका वाले लोगों ने ही जांच करवाई और उसमें हर तीसरा व्यक्ति मधुमेह से ग्रस्त निकला। यह अलग बात है कि भारत जैसे देश में कितने लोग इस रोग के शुरुआती दौर में ही जांच करवा पाते होंगे?
मधुमेह एक भरापूरा रोग है और ज्यादातर रोगों का कारण भी बन जाता है। चिकित्सा विज्ञान में इसके उपचार के लिए अलग से शाखा है। दूसरे और रोगों की तरह मधुमेह के इलाज के उपायों की चर्चा सामाजिक रूप से नहीं की जा सकती। इसीलिए आमतौर पर स्वयंसेवी सस्थाएं भी इस मामले में शिविर या दूसरे आयोजन करने से बचती हैं। इससे बचाव के लिए दिनचर्या और खानपान को ठीक रखने की कितनी भी सलाह दी जाती रहे, लेकिन किसी रोग को लेकर खानपान की सलाह देने वाला काम भी चिकित्सा विज्ञान की दूसरी विशिष्ट शाखा के जिम्मे है।
दरअसल यह ऐसा रोग है जो अंतस्रावी ग्रंथियों में अंसतुलित स्नाव के कारण होता है, लिहाजा शौकिया या गैरप्रशिक्षित डाक्टरों, वैद्य, नीम-हकीमों से सलाह लेना या इलाज करवाना खतरे से खाली नहीं होता। और यह बात कौन नहीं जानता कि देश में स्नातक स्तर के चिकित्सकों की ही भारी कमी है। ऐसे में मधुमेह के विशेषज्ञों की पर्याप्त उपलब्धता तो बहुत दूर की बात है। लेकिन चिकित्सा क्षेत्र में बढ़ते निजीकरण के दौर में आर्थिक रूप से कमजोर मरीज आसानी से विशेषज्ञ सलाह ले सके और मधुमेह के रोगी निरंतर अपनी जांच करवाते रहें, इसकी व्यवस्था बनानी ही पड़ेगी। बस सवाल यही है कि ऐसा होने में समय कितना लगेगा।
इस मामले एक नई चिंता और जुड़ गई है। वह यह कि इस रोग को लेकर पच्चीस से पैंतीस साल के युवक भी चिंतित हो उठे हैं। इस रोग को लेकर सलाह लेने वाले युवकों की संख्या में छियालीस फीसद की बढ़ोतरी का आंकड़ा कम नहीं है। पैंतीस से चालीस साल की उम्र वाले लोगों ने भी तैंतीस फीसद बढ़ोतरी के साथ इस रोग के बारे में विशेषज्ञ सलाह मशविरा किया। यह कम चिंता की बात नहीं है कि नौजवान इस रोग की चपेट में तेजी से आ रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक उम्र के लिहाज से कुल मरीजों में साढे बारह फीसद मरीज चौबीस से चालीस साल के हैं। गौर किया जाना चाहिए कि मानव संसाधनों के लिहाज से इस उम्र के लोगों में मधुमेह की समस्या बढ़ना देश की आर्थिकी के सामने भी किसी बड़े जोखिम से कम नहीं है।