मौजूदा दौर में आधुनिक तकनीकों को वक्त के साथ चलने का एक अहम साधन माना जाता है। यह काफी हद तक सच भी है। लेकिन अगर यही साधन बहुत सारे कामों में सुविधाएं मुहैया कराने के समांतर व्यक्तित्व के सामान्य विकास में बाधक बनने लगें तो इस पहलू पर भी गौर किया जाना चाहिए।

इस लिहाज से हरियाणा के जींद जिले में ढिगाना पंचायत की शिकायत के संदर्भों पर विचार किया जा सकता है कि सरकार से मिले ‘टैबलेट’ बच्चों के लिए एक बड़ी समस्या बन रहे हैं। गौरतलब है कि हरियाणा सरकार ने नौवीं से बारहवीं कक्षा के लगभग आठ लाख बच्चों को टैबलेट दिए थे, ताकि वे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हुए तकनीक की दौड़ में पीछे न रह जाएं।

बच्चों को टैबलेट देने के पीछे सरकार की मंशा अच्छी हो सकती है कि बच्चे इसका इस्तेमाल पढ़ाई-लिखाई के लिए करेंगे और तकनीक के साथ शिक्षा हासिल करने को लेकर अभ्यस्त भी होंगे। लेकिन यह ध्यान रखने की जरूरत है कि किसी भी संसाधन के उपयोग का परिणाम इस पर निर्भर करता है कि उसे किस तरह संचालित किया गया।

दरअसल, ढिगाना पंचायत के लोगों की शिकायत का आधार यही है कि जिन बच्चों को टैबलेट उपलब्ध कराया गया है, वे उसका इस्तेमाल पढ़ाई-लिखाई के बजाय दूसरी अवांछित गतिविधियों के लिए ज्यादा कर रहे हैं। अभिभावकों की परेशानी यह है कि सरकार से मिले टैबलेट बच्चों को पढ़ाई से दूर ले जा रहे हैं, वे उनमें आपत्तिजनक चीजें देख रहे हैं, पढ़ने की जगह ‘गेम’ खेलते हैं, इसलिए इन्हें वापस लिया जाए।

हालांकि सरकार ने टैबलेट देते समय उसमें मोबाइल यंत्र प्रबंधन प्रणाली लागू करने की बात कही थी, जिसके जरिए उनमें अनेक वेबसाइटों को प्रतिबंधित किया जा सकता है। लेकिन अब भी बच्चे टैबलेट में नए-नए ऐप डाल कर उसमें पूरे दिन गेम खेलते और गैरजरूरी सामग्री देखते-पढ़ते हैं। निश्चित रूप से आज के दौर में पंचायत और वहां के लोगों की इस शिकायत को अलग-अलग नजरिए से देखा जाएगा।

तकनीकी को आधुनिक जीवनशैली के लिए अनिवार्य मानने वाला तबका इसे बच्चों को भविष्य की प्रतियोगिता से बाहर करने और आगे बढ़ने की दौड़ में पीछे करने की कोशिश के तौर पर देखेगा। सवाल है कि अगर आधुनिकता और विकास के सफर में बने रहने के लिए जरूरी कोई संसाधन बच्चों के सोचने-समझने की प्रक्रिया को बाधित करने और इसके बाद समूचे व्यक्तित्व पर विपरीत असर डालने वाला साबित होने लगे तो उसे कैसे देखा जाएगा!

आधुनिक तकनीकी के बहुस्तरीय फायदे हैं, लेकिन यह तभी संभव है जब इसके सही उपयोग को लेकर जरूरी सजगता और प्रशिक्षण हो। खासतौर पर बच्चों का जिज्ञासु और कोमल मन-मस्तिष्क नई चीजों का उपयोग करते हुए उसकी जटिलताओं से अनभिज्ञ होता है और इसी क्रम में कई बार इंटरनेट पर मौजूद आनलाइन गेम या फिर आपत्तिजनक वीडियो जैसी अवांछित सामग्रियों के संसार में प्रवेश कर जाता है।

फिर वही तकनीक उनकी पढ़ाई-लिखाई में मदद करने के बजाय उनके व्यक्तित्व के लिए घातक साबित होने लगती है। इसके व्यापक असर को देखते हुए ही संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने ‘शिक्षा में तकनीक’ पर अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि शिक्षा क्षेत्र में केवल उन्हीं तकनीकों को अनुमति दी जानी चाहिए जो स्पष्ट तौर पर सीखने में मदद करती हो।

यूनेस्को की इस चिंता को समझा जा सकता है कि स्कूलों में मानव केंद्रित दृष्टिकोण की जरूरत है, जहां डिजिटल तकनीक एक उपकरण के तौर पर काम करे, न कि हावी ही हो जाए। सरकार और समाज को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि तकनीक बच्चे के व्यक्तित्व में सकारात्मक विकास का एक सहायक कारक हो।