किसी भी हादसे का सबक यह होना चाहिए कि उस तरह के हालात और कारणों से बचने के हर उपाय किए जाएं, ताकि वैसा दुबारा न हो। मगर ऐसा लगता है कि नदियों में यात्रियों सहित नाव डूबने की बार-बार घटनाओं और उसके कारणों के साफ होने के बावजूद लोग उससे सबक लेने को तैयार नहीं हैं। गुजरात के वडोदरा में एक झील में नाव पलट जाने से बारह बच्चों और दो शिक्षकों की डूबने से मौत की घटना ने एक बार फिर यही दर्शाया है कि लापरवाही कायम है और निर्दोष लोगों की जान जा रही है।
वडोदरा के हरणी झील में एक स्कूल के छात्र अपने कुछ शिक्षकों के साथ पिकनिक मनाने गए थे। जाहिर है, यह सैर-सपाटा और अच्छा वक्त बिताने के लिए आपस में खुशी बांटने का मौका था। मगर इस क्रम में कई स्तर पर जितनी बड़ी लापरवाही बरती गई, उसमें खुशी मनाने का वह मौका एक मातम में बदल गया। गहरे पानी में नाव का संतुलन बिगड़ा और वह पलट गई, जिसमें बारह विद्यार्थी और दो शिक्षक डूब गए। जबकि किसी तरह अठारह छात्रों और दो शिक्षकों को बचा लिया गया।
सवाल है कि जिस नाव की कुल क्षमता महज सोलह लोगों की थी, उस पर करीब दोगुनी संख्या में लोगों को बिठा कर गहरे पानी में ले जाने की छूट किस आधार पर मिली हुई थी और इसकी अनदेखी कर ऐसा करने की इजाजत किसने दी थी! जबकि अगर नियम-कायदे के मुताबिक नाव झील में जा रही हो, तब भी हादसे का जोखिम लगातार बना रहता है।
अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि नाव में सवार कुल दस बच्चों को ही जीवनरक्षक जैकेट पहनाए गए थे। यह किस आधार पर मान लिया गया कि बाकी को इसकी जरूरत नहीं थी? ऐसी घटनाओं के बाद रस्मअदायगी में उच्चस्तरीय जांच और कार्रवाई आदि की घोषणा की जाती है, वह वडोदरा में हुए हादसे के बाद भी हुई।
नाव संचालन से जुड़े एक प्रबंधक सहित तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया और कुल अठारह लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई। मगर अफसोस कि चौदह लोगों की जान जाने के बाद प्रशासन की ओर से दर्शाई जा रही इस सक्रियता का आधा हिस्सा भी अगर अमल में रहता तो यह हादसा ही न होता।
इस तरह का यह कोई पहला हादसा नहीं है। विडंबना है कि किसी भी स्तर पर जोखिम का ध्यान रखना और उसी मुताबिक बचाव के इंतजाम करने को कोई दोयम दर्जे का काम माना जाता है। खबरों के मुताबिक, वडोदरा की झील में हुए हादसे के वक्त स्थानीय लोगों ने कई बच्चों को बचाया। नावों के संचालन को इजाजत देने वाले संबंधित महकमे और उसके अधिकारियों को यह सुनिश्चित कराना जरूरी क्यों नहीं लगा कि नाव पर सवार हर व्यक्ति को जीवनरक्षक जैकेट पहनाया जाए और हर हाल में नाव के साथ-साथ आसपास पर्याप्त संख्या में गोताखोर, बचावकर्मी मौजूद हों, जो आपात स्थिति में लोगों की जान बचा सकें।
दरअसल, नाव के डूबने के जो भी कारण सामने आए हैं, उससे साफ है कि यह आपराधिक लापरवाही का मामला है। इसमें न केवल नाव के संचालन से जुड़े लोग, बल्कि उसमें सवार होने वाली संख्या, सुरक्षा उपकरणों के अभाव, बचावकर्मियों की गैरमौजूदगी और जोखिम की आशंका जैसी स्थितियों की जानबूझ कर अनदेखी करने वाले वे अधिकारी और कर्मचारी भी जिम्मेदार हैं, जिनका दायित्व होता है कि नियमों पर सौ फीसद अमल सुनिश्चित हो।