देश में गरीबी और खासकर भूख से जूझते तबकों को राहत दिलाने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली है। हालांकि इसके संचालन में अक्सर भ्रष्टाचार के मामलों के मद्देनजर व्यापक सुधार की गुंजाइश बनी रही, लेकिन नीतिगत तौर पर यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके जरिए अभावग्रस्त बड़े तबके को नाममात्र की राशि या नियंत्रित मूल्यों पर अनाज मुहैया कराया जाता है। आधुनिक तकनीकी के विस्तार के दौर में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भी डिजिटल तौर-तरीके अपनाए गए। अपने राज्य से पलायन करके या विस्थापित होकर देश की राजधानी में पहुंचे लोगों के लिए ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ की व्यवस्था भी लागू की गई, ताकि इसका लाभ आम लोगों को मिल सके।
PDS के तहत लोगों को नहीं मिल पा रहा था अपना हक
विडंबना है कि तकनीकी सुविधाओं से लैस होने के बावजूद अब एक नई समस्या खड़ी हो रही है, जिसकी वजह से बहुत सारे लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत अपने हक का राशन उठाने में मुश्किलें पेश आ रही हैं या फिर वे इस सुविधा से वंचित रह जाते हैं।
गौरतलब है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के एकीकृत प्रबंधन यानी आइएमपीडीएस के सर्वर में तकनीकी दिक्कतों की वजह से पिछले कई महीने से उत्तर प्रदेश के राशन कार्ड धारकों को दिल्ली में अपने हिस्से का राशन लेने में कई तरह की परेशानी हो रही थी। मगर अब बिहार के राशन कार्ड धारकों को उनके हक का राशन न मिल पाने की शिकायत सामने आई है। यों अलग-अलग राज्यों के करीब चार लाख राशन कार्डधारकों को हर महीने दिल्ली में तकनीकी दिक्कतों की वजह से राशन लेने में परेशानियों का सामना करना पड़ा है।
व्यवस्थागत खामियों की वजह से बहुत सारे राशन कार्डधारक राशन लेने से वंचित रह जाते हैं, क्योंकि दिल्ली में राशन की दुकानों में अनाज खत्म हो चुका होता है। सुविधा में इजाफे और पारदर्शिता के लिए इसमें डिजिटल तंत्र को बढ़ावा दिया गया है, लेकिन हकीकत यह है कि मशीनों में कभी ‘दुबारा प्रयास करें’ तो कभी ‘लेन-देन विफल’ आदि की सूचना आती है। सवाल है कि अगर तकनीकी दिक्कतों की वजह से अभाव से जूझते लोगों के सामने समस्याएं आ रही हैं तो सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर निर्भर रहने वालों के सामने फिलहाल और क्या विकल्प है?