रूस और यूक्रेन के बीच तनाव जिस चरम पर पहुंच गया है, उसे देखते हुए कुछ नहीं कहा जा सकता कि कब युद्ध की लपटें उठने लगें। मिसाइलों से हमले भले न शुरू हुए हों, पर रूस ने यूक्रेन की सेना के कुछ जवानों को मार गिराने का जो दावा किया है, उससे तस्वीर काफी कुछ साफ हो चली है। कहा यह भी जा रहा है कि रूस ने यह कदम यूक्रेन के एक हमले के बाद उठाया। पर कौन जानता है कि किसने पहले हमला किया होगा।

यानी उकसाने वाले हमले शुरू हो गए हैं। ऐसे में अब लड़ाई छिड़ जाए, मिसाइलें गिरने लगें, साइबर हमले होने लगें तो कोई हैरानी नहीं होगी। वैसे भी पिछले कुछ दिनों से अमेरिका का यह दावा कि रूस यूक्रेन पर जल्द हमला करेगा, चिंता तो बढ़ा ही रहा है। फिर, रूस ने पूर्वी यूक्रेन के उन हिस्सों को मान्यता दे दी है जहां रूस समर्थक अलगाववादियों का दबदबा है और यूक्रेन की सेना के साथ उनका संघर्ष चल रहा है। जाहिर है, इन इलाकों में अब रूसी सेना का जमावड़ा बढ़ेगा। इस टकराव को लेकर दुनिया के कई देश खासतौर से यूरोपीय देश डरे हुए हैं, पर असहाय भी हैं। कुछेक प्रतिबंध लगाने के अलावा वे ज्यादा कर कुछ नहीं सकते।

चिंता की बात यह है कि अब रूस सुरक्षा परिषद की भी नहीं सुन रहा। वह जितना आगे बढ़ गया है, उससे पीछे हटने के आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे। ऐसा इसलिए भी कि यह उसके लिए अमेरिका और पश्चिमी देशों के सामने समर्पण से कम नहीं होगा। जिस ताकत से उसने पूर्वी यूक्रेन को आजाद करा लेने का दावा किया है, उससे भी ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि यूक्रेन को लेकर वह अपना दांव बेकार नहीं जाने देने वाला।

वरना यूक्रेन से लगी सीमाओं पर उसने डेढ़ लाख सैनिक तैनात करने, लड़ाकू विमान और टैंक आदि तैनात करने जैसे कदम क्यों उठाता? मुश्किलें इसलिए भी बढ़ गई हैं कि विवाद रूस-यूक्रेन से कहीं ज्यादा अमेरिका बनाम रूस का रूप लेता जा रहा है। पश्चिमी देशों में ब्रिटेन तो पूरी तरह से अमेरिका के साथ है। ब्रिटेन ने रूस के पांच बैंकों पर प्रतिबंध लगा कर अपना रुख साफ कर दिया है। इस बात से तो कोई इनकार नहीं करेगा कि इस क्षेत्र के नाजुक हालात शांतिपूर्ण समाधान की मांग कर रहे हैं, लेकिन कुछ देशों के हित और उनका दंभ शांति के प्रयासों में बाधा साबित हो रहे हैं। वरना क्या कारण है कि अब तक रूसी राष्ट्रपति और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच बैठक नहीं हो पाई है!

अब सवाल है कि रूस-यूक्रेन विवाद को लेकर उपजा तनाव कम कैसे हो। ज्यादातर देश इस विवाद से तनाव में इसलिए भी हैं कि इसका असर उन पर भी पड़ेगा। देशों के बीच खेमेबाजी और बढ़ेगी। आपसी संबंध प्रभावित होंगे। कच्चे तेल के दाम सौ डालर प्रति बैरल से ऊपर निकल गए हैं। अगर मिसाइलें चल गर्इं, जैसी कि आशंका गहराती जा रही है, तो ज्यादातर देशों को र्इंधन संकट का सामना करना पड़ जाएगा।

इसलिए हर देश चाह रहा है कि बातचीत और कूटनीतिक प्रयासों से कोई रास्ता निकल आए। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत ने भी तनाव कम करने के लिए तत्काल कूटनीति प्रयास शुरू करने पर जोर दिया है। पर हकीकत बता रही है कि जंग बड़े देशों के शक्ति प्रदर्शन की है। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि ऐसे तनाव और युद्ध तबाही के अलावा कुछ और नहीं देते।