लेकिन सुविधा साबित हो रहा कोई सामान अगर हमारी सेहत के लिए बहुस्तरीय चुनौती खड़ी कर रहा हो तो एक बार ठहर कर उसके उपयोग को लेकर सजग होने की जरूरत है। हाल ही में मोबाइल और इसके उपयोग को लेकर हुए एक अध्ययन में जिस तरह की चिंताएं जाहिर की गई हैं, वे बताती हैं कि हर वक्त साथ रहने वाला मोबाइल मामूली लापरवाहियों की वजह से लोगों की सेहत के लिए चुपके-चुपके कई तरह के जोखिम पैदा कर रहा है, कई बीमारियों को न्योता दे रहा है।
अध्ययन में यह पाया गया कि जो मोबाइल हमारे हाथ में एक तरह से अभिन्न होता गया है, वह दिखने में तो साफ-सुथरा लगता है, लेकिन वास्तव में शौचालय की सीट से भी गंदा होता है। कोई काम करते या खाते समय भी फोन का उपयोग करने के साथ-साथ उसे हर तरह की सतह पर भी रख दिया जाता है, जिससे उस पर रोगाणु जमा होते हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे हाथ में आने के बाद उसका असर किन-किन शक्लों में हमारे शरीर में जाता होगा।
यों मोबाइल फोन के उपयोग में अतिरेक के संदर्भ में अक्सर कई तरह की चिंता जताई जाती रही है। इसके बावजूद इसे लेकर जागरूकता का स्तर अभी पर्याप्त नहीं है और लोगों के बीच इसके जोखिम के प्रति लापरवाही आम दिखती है। जबकि जीवाणु और विषाणुओं की दुनिया कुछ ऐसी है कि पता भी नहीं चलता है और उसके संक्रमण से शरीर में कोई बड़ा नुकसान हो जाता है।
मोबाइल फोन के सूक्ष्मजीवी उपनिवेशन पर किए गए कई अध्ययनों में बताया गया है कि वे कई अलग-अलग प्रकार के संभावित रोगजनक जीवाणु से दूषित हो सकते हैं। ये जीवाणु त्वचा संक्रमण, डायरिया, तपेदिक से लेकर मूत्र पथ में संक्रमण तक के वाहक बन सकते हैं। नए शोधों के ऐसे संकेत ज्यादा चिंता का कारण होने चाहिए कि फोन पर कई रोगजनक जीवाणु प्रतिरोधी होते हैं। यानी इनकी वजह से हुई बीमारी का इलाज पारंपरिक दवाओं के जरिए नहीं किया जा सकता और अगर ये त्वचा, आंत या फिर श्वास नली में संक्रमण का कारण बन जाए तो किसी की जान भी जा सकती है।
जाहिर है, शहरों-महानगरों से लेकर गांवों तक में लोगों की जीवनशैली में अभिन्न हो चुका मोबाइल जितना सुविधाजनक है, उसके समांतर सेहत के लिए यह जोखिम से भी भरा हुआ है। हालांकि इसके जरिए संक्रमण के पहलू से इतर इसके विकिरण से भी कई गंभीर रोग होने की आशंका जताई जाती रही है। इसके जरिए विद्युत चुंबकीय तंरगों के नुकसान को लेकर भी सचेत किया जाता रहा है।
हमेशा साथ रखने पर विकिरण की वजह से दिमाग की कोशिकाएं संकुचित हो सकती हैं, जिससे दिमाग में आक्सीजन की पर्याप्त मात्रा नहीं पहुंच पाती। फिर इसके इस्तेमाल की आदत से जुड़े मनोवैज्ञानिक नतीजे भी आज लोगों के जी का जंजाल बनते गए हैं। यह छिपा नहीं है कि अगर कोई व्यक्ति स्मार्टफोन का अत्यधिक उपयोग करता है तो उसे बिना काम के भी बार-बार अपना मोबाइल उठा कर देखने की लत लग जाती है।
इसके नतीजे में किसी काम में एकाग्रता और धीरज खो देने से लेकर चिड़चिड़ापन जैसी कई व्यवहारगत समस्याएं पैदा हो रही हैं। जाहिर है, आज अमूमन हर मामले में एक तरह से जरूरी बनते गए मोबाइल फोन के इस्तेमाल को लेकर थोड़ी सावधानी बरतना वक्त का तकाजा है, क्योंकि अगर सेहत के मोर्चे पर व्यक्ति दुरुस्त है तभी वह किसी तकनीकी संसाधन का बेहतर लाभ उठा पाएगा।