कोई भी व्यक्ति या समाज अपनी सामान्य दिनचर्या में मौजूदा दौर के किसी नई तकनीकी के भी इस्तेमाल को लेकर सहज हो जाता है तो इसके पीछे उसके जरिए कामकाज के सुरक्षित होने को लेकर आश्वस्ति का भाव होता है। बल्कि कई बार तकनीक के उपयोग को इसी दलील पर बढ़ावा दिया जाता है कि वह पुराने तौर-तरीकों के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित, पारदर्शी और सुविधाजनक है।

लेकिन एक ताजा अध्ययन में बताया गया है कि आनलाइन गतिविधियों में धोखाधड़ी या ठगी के मामलों में जिस कदर बढ़ोतरी हो रही है और जल्दी इससे निपटने के प्रयास नहीं हुए तो आने वाले वक्त में डिजिटल दुनिया बहुत सारे लोगों के लिए एक परेशान करने वाला अनुभव साबित होगा। भारत में इंटरनेट आधारित कामकाज या अन्य गतिविधियों के अभी बहुत वक्त नहीं बीते हैं, लेकिन अभी ही जो तस्वीर उभर कर सामने आ रही है, वह चिंता पैदा करने के लिए काफी है।

रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन साल में करीब उनतालीस फीसद भारतीय परिवार आनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी के शिकार हुए हैं। वैसे तमाम लोग हैं, जिन्हें एटीएम या डेबिट कार्ड या फिर क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल करते हुए ठग लिया गया। इसके अलावा, इंटरनेट आधारित कारोबार और बैंक खाते को लिंक कराने से लेकर अन्य कई अन्य तरीके से लोगों के साथ धोखाधड़ी हुई।

यह स्थिति तब है जब भारत में अभी बहुत बड़ा क्षेत्र सारे काम के लिए आनलाइन पर पूरी तरह निर्भर नहीं हुआ है। आमतौर पर कोई भी तकनीक अपने आप में किसी काम को आसान बनाने का जरिया होती है। लेकिन किसी भी तकनीक का सुरक्षित होना इस बात पर निर्भर करता है कि उसका उपयोग करने वाला व्यक्ति उसके बारे में किस स्तर तक प्रशिक्षित है।

पिछले कुछ सालों के दौरान समूची दुनिया में अमूमन हर क्षेत्र में डिजिटल गतिविधियों को प्रोत्साहित किया गया है। बल्कि कई जगहों पर तो इसके जरिए कोई काम कराना लगभग अनिवार्य बना दिया गया है। खुद सरकारी महकमों में सारे कामकाज को आनलाइन बनाने का प्रयास चल रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि इंटरनेट के प्रसार के साथ-साथ ठगी, धोखाधड़ी जैसे अपराधों के पुराने तरीके भी बदल कर इसी मुताबिक नए हो रहे हैं। साइबर ठगों का एक नया संजाल खड़ा हो रहा है, जो स्मार्टफोन या कंप्यूटर जैसे इंटरनेट आधारित यंत्रों को हैक करके बड़े अपराधों को भी अंजाम दे रहा है।

आए दिन ऐसी खबरें आती हैं जिसमें ठगी के लिए लोगों के मोबाइल पर संदेश भेजा जाता है या उन्हें उलझाने वाली बात की जाती है। अगर वे इस जाल में फंस कर कोई पासवर्ड या पिन नंबर आदि साझा करने लगते हैं तो कुछ ही देर में उनके बैंक खाते से पैसे गायब हो जाते हैं। आधार कार्ड जैसे संवेदनशील दस्तावेज का ब्योरा जिस तरह बिना हिचक हर जगह दे दिया जाता है, उसके कई खतरे हैं।

फिर ऐसी वेबसाइटें भी हैं, जो खरीदारी के नाम पर उपभोक्ता से पैसे तो ले लेती हैं, मगर उन्हें सामान नहीं मुहैया कराया जाता या फिर खराब उत्पाद भेज दिया जाता है। इसके अलावा, अन्य तरह की कुछ अवांछित गतिविधियां भी हैं, जिनमें उलझा कर पैसे ठग लिए जाते हैं या निजता में घुसपैठ कर भयादोहन किया जाता है।

यह ध्यान रखने की जरूरत है कि शहर से लेकर गांवों तक डिजिटल तकनीकी के बढ़ते इस्तेमाल के साथ-साथ उसी अनुपात में अगर इसके सुरक्षित उपयोग के मामले में आम लोगों को जागरूक, सावधान और प्रशिक्षित नहीं किया गया तो यह आधुनिक तकनीक सुविधा या फायदे के बजाय ज्यादा नुकसान का ही वाहक बनेगा। खुद सरकार को डिजिटल गतिविधियों को पूरी तरह सुरक्षित बनाने के लिए एक ठोस और चौकस तंत्र बनाना चाहिए।