सत्ता से करीबी गांठ कर कैसे कुछ लोग कानून को अपनी जेब में रख कर घूमना शुरू कर देते हैं। इसका ताजा उदाहरण झारखंड में एक शराब कारोबारी और खनन घोटाले में शामिल व्यक्ति के घर से दो एके सैंतालीस राइफलों और करीब पांच दर्जन कारतूस की बरामदगी है। प्रवर्तन निदेशालय ने उस कारोबारी को खनन घोटाले में दोषी पाया है। उसके घर से राइफलें बरामद होने के बाद झारखंड पुलिस ने सफाई दी है कि उसके दो कर्मी बारिश होने की वजह से अपनी राइफलें संबंधित कारोबारी के एक कर्मचारी के पास रख कर चले गए थे।

मगर यह तर्क किसी के गले नहीं उतर रहा। यह समझना मुश्किल है कि कारोबारी ने किस बिना पर अवैध तरीके से ये बंदूकें रखी थीं। एके सैंतालीस बंदूकें सामान्य लोगों के लिए बिक्री नहीं की जातीं, न सेना और सुरक्षाबलों के अलावा किसी को निजी तौर पर इनके इस्तेमाल की इजाजत है। फिर सवाल है कि ये बंदूकें किससे खरीदी गर्इं। जाहिर है, हथियारों का अवैध कारोबार करने वालों का सहयोग लिया गया होगा। इसलिए जांच का एक सिरा उस तरफ भी जाता है। ऐसे गिरोह का पता लगाया जाना चाहिए।

झारखंड पुलिस का यह तर्क निहायत बचकाना है कि उसके कर्मी बरसात की वजह से ये बंदूकें संबंधित कारोबारी के घर छोड़ कर चले गए थे। हैरानी की बात है कि उन पुलिसकर्मियों को निलंबित भी कर दिया गया है। सब जानते हैं कि पुलिस के हथियारों पर नंबर दर्ज होते हैं। पुलिसकर्मियों को तैनाती के दौरान जो हथियार उपलब्ध कराए जाते हैं, उनका ब्योरा आयुध भंडार के रजिस्टर में दर्ज किया जाता है। जब वे अपनी तैनाती से वापस लौटते हैं, तो उन्हें वे हथियार जमा कराने होते हैं।

इन हथियारों की गिनती और मिलान करने के बाद ही आयुध भंडार को ताला लगता है। फिर, ऐसी लापरवाही कोई भी पुलिसकर्मी अपने सरकारी हथियारों के साथ नहीं करता कि उसे किसी के घर छोड़ आए। यह भी कि बारिश की वजह से बंदूकों को क्या नुकसान पहुंचना था, जब वे खुद उसी बरसात में वापस लौट गए थे। क्या उन्हें यह बुनियादी बात पता नहीं थी कि उनके हथियार का गलत उपयोग किया जा सकता है। झारखंड जैसे नक्सल प्रभावित इलाके की पुलिस से ऐसी नासमझी की उम्मीद नहीं की जा सकती। पुलिस के आयुध भंडार के रजिस्टर से मिलान करके देखने से असलियत पता चल जाएगी। फिर उन हथियारों पर पुलिस के आयुध भंडार का नंबर दर्ज है या नहीं, सच्चाई इसी से उजागर हो जाएगी।

झारखंड और बिहार में अवैध हथियारों का कारोबार किसी से छिपा नहीं है। स्थानीय स्तर पर हथियार बनाए और बेचे जाते हैं। एके सैंतालीस जैसे घातक हथियारों के भी वहां बनाए जाने के तथ्य उजागर हैं। जाहिर है, सरकार की ढिलाई की वजह से लोग वहां ऐसे हथियारों का इस्तेमाल धड़ल्ले से करते हैं। हालांकि झारखंड में नक्सलवाद की वजह से अनेक कारोबारियों, राजनेताओं, अधिकारियों आदि को जान का खतरा रहता है।

इस आधार पर उन्हें हथियार रखने की इजाजत भी दे दी जाती है। मगर इसका यह अर्थ कतई नहीं कि इससे उन्हें कोई भी हथियार रखने का अधिकार मिल गया। जिस कारोबारी के घर से ये अत्याधुनिक हथियार मिले हैं, समझना मुश्किल नहीं है कि वे किस भरोसे के साथ जुटाए गए होंगे। खुद मुख्यमंत्री के साथ वह कारोबारी भी खनन घोटाले में दोषी पाया गया है। जाहिर है, उसका मुख्यमंत्री से बहुत नजदीकी संबंध था। ये हथियार रखने की शह उसे वहीं से मिली होगी।