जिस दौर में मुख्यधारा मीडिया के एक हिस्से पर ऐसे आरोप सामने आ रहे हैं कि वह प्रभावशाली लोगों या वर्गों के हित में काम करता या किन्हीं दबाव की वजह से उनकी कारगुजारियों को सामने लाने में हिचकता है, उसमें जागेंद्र सिंह को जिंदा जला कर मार डालने की घटना तीखे सवाल उठाती है।

कई पत्र-पत्रिकाओं में काम कर चुके जागेंद्र सिंह का कसूर इतना था कि उन्होंने एक कद्दावर नेता की आपराधिक गतिविधियों का खुलासा सोशल मीडिया के जरिए किया। इसकी प्रतिक्रिया में उन पर कई फर्जी मुकदमे थोप दिए गए, तरह-तरह से प्रताड़ित किया गया। खबरों के मुताबिक उन पर दबाव बनाने उनके घर गए पुलिसकर्मियों ने पहले उनके साथ मारपीट की, फिर पेट्रोल डाल कर जिंदा जला दिया। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण राज्यमंत्री राममूर्ति सिंह वर्मा पर अवैध खनन, जमीन पर कब्जा करने और बलात्कार जैसेकई आरोप हैं।

जागेंद्र सिंह ने इन मामलों में मंत्री की भूमिका और इसका सबूत होने की बात अपने ब्लॉग और फेसबुक पन्ने पर लिखी थी। इसके अलावा, वे सामूहिक बलात्कार की शिकार एक महिला की मदद कर रहे थे, जिसके आरोपी मंत्री सहित चार अन्य लोग हैं। अब जागेंद्र सिंह की मौत का मामला तूल पकड़ने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह ने दोषी मंत्री के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कही है। लेकिन इस फैसले तक पहुंचने के लिए उन्हें एक पत्रकार की हत्या का इंतजार क्यों करना पड़ा?

यह छिपी बात नहीं है कि दबंगों और अपराधियों के खिलाफ जहां साधारण लोग मजबूरी में आवाज नहीं उठा पाते, वहीं दूसरी ओर मीडिया में आमतौर पर उनकी कारगुजारियां तब सामने आती हैं, जब किन्हीं वजहों से वे कठघरे में खड़े हो चुके होते हैं। हालांकि आज की पत्रकारिता में भी गिरावट देखी जा सकती है, हिम्मत और ईमानदारी के साथ पत्रकारिता करने वाले लोग कम हैं। पर आज सूचना क्रांति के दौर में जिन कुछ जरूरी खबरों को कई वजहों से मुख्यधारा मीडिया में जगह नहीं मिल पाती, वे सोशल मीडिया के जरिए तुरंत आम लोगों तक पहुंच जाती हैं।

ऐसे में जागेंद्र सिंह ने अपने वैकल्पिक संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए एक मंत्री पर लगे आरोपों से संबंधित तथ्य उजागर किए। किसी से प्रभावित होने या धमकियों के सामने चुप्पी साध जाने के बजाय जागेंद्र सिंह ने जोखिम भरा रास्ता चुना। पर इस तरह उनकी मौत की घटना बताती है कि अब ईमानदारी से काम करने वाले पत्रकारों के लिए हालात किस कदर खतरनाक होते जा रहे हैं। पिछले कुछ सालों के दौरान पाकिस्तान को पत्रकारों के लिए सबसे ज्यादा जोखिम भरे देश के रूप में जाना जाने लगा है।

हाल के दिनों में इराक में आइएसआइएस ने भी कई पत्रकारों को सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतार दिया कि वे ईमानदारी से अपना काम कर रहे थे। सवाल है कि एक मंत्री के भ्रष्ट कारनामों का खुलासा करने पर जिस तरह जागेंद्र सिंह की हत्या कर दी गई, क्या भारत भी पत्रकारिता पर जोखिम की उसी दिशा में अपने कदम बढ़ा रहा है? यह ध्यान रखने की जरूरत है कि एक पत्रकार अगर ईमानदारी से अपने पेशे का निर्वाह करता है तो एक तरह से वह समूचे समाज के हित में काम कर रहा होता है। इसलिए पत्रकारिता की ऐसी आवाजों पर हमला या उन्हें खामोश करने की कोशिश किसी एक व्यक्ति के नहीं, बल्कि इंसानियत, लोकतंत्र और मानवाधिकारों के खिलाफ है।

 

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