जम्मू-कश्मीर में नफरत का माहौल बनाने के लिए अलगाववादी ताकतें तरह-तरह की साजिशें रचती हैं। स्थानीय लोगों में भारत सरकार और व्यवस्था के विरुद्ध अक्सर वहां अफवाहें फैलाई जाती रहती हैं। ऐसी ही एक साजिश करीब चौदह साल पहले शोपियां में रची गई थी, जब दो महिलाओं के शव दरिया में बहते मिले थे। अफवाह फैलाई गई कि वहां तैनात सुरक्षाबलों ने उन महिलाओं के साथ बलात्कार करके उन्हें मार डाला और नदी में फेंक दिया।

इस अफवाह को सच साबित कर दिया वहां के दो चिकित्सकों ने अपने शव परीक्षण की रिपोर्ट के जरिए। उन्होंने कहा कि वास्तव में सुरक्षा बलों ने उन महिलाओं के साथ बलात्कार किया था। उसके बाद पूरी घाटी में तनाव का माहौल बन गया था और करीब डेढ़ महीने तक अशांति बनी रही। अब पता चला है कि उन महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ ही नहीं, बल्कि उनकी मौत डूबने से हुई थी।

बलात्कार की अफवाह इसलिए फैलाई गई थी कि स्थानीय लोगों को सुरक्षा बलों के खिलाफ भड़काया जा सके। अब असलियत सामने आने के बाद दोनों चिकित्सकों को बर्खास्त कर दिया गया है। हालांकि यह कोई पहली घटना नहीं है, जब उपद्रवी तत्त्व वहां स्थानीय लोगों को प्रशासन और सुरक्षा बलों के खिलाफ भड़का कर अपनी साजिशों को अंजाम देने की कोशिश करते रहे हैं।

दरअसल, घाटी में प्रशासन और स्थानीय लोगों के बीच नजदीकी इसीलिए नहीं बन पाती कि अलगाववादी और आतंकी संगठन वहां के लोगों के मन में यह बात भर चुके हैं कि सुरक्षा बलों की ज्यादती की वजह से ही उनके जीवन में शांति नहीं आ पा रही। सुरक्षा बलों की छवि स्थानीय लोगों में आततायी की बना दी गई है। लोगों को बिना किसी सूचना के घरों से उठा लेना और फिर उनका कोई पता न चल पाना।

ऐसी अफवाहों से आतंकवादियों को ही लाभ मिलता है

बेगुनाह लोगों को भी गोली मार देना, महिलाओं के साथ बलात्कार आदि के किस्से खूब प्रचारित हैं। अक्सर इन धारणाओं को मानवाधिकार संगठनों की तरफ से भी बल मिलता रहा है। यही वजह है कि नागरिक ठिकानों से सुरक्षा बलों को हटाने की मांग लंबे समय से उठती रही है। इससे एक तरह से आतंकवादी संगठनों को ही लाभ मिलता रहा है।

स्थानीय लोग सुरक्षा बलों के खिलाफ नफरत और संदेह से भरे रहते हैं और दहशतगर्दों को पनाह देते रहते हैं। अफवाहों के जरिए सबसे अधिक जहर घोला जाता है युवाओं के मन में। उन्हें समझा दिया जाता है कि किस तरह सुरक्षा बलों ने उनके किसी परिजन के साथ ज्यादती की या हत्या कर दी। फिर वे आक्रोश में भर कर हाथों में बंदूक उठा लेते हैं।

अफवाहों और गलत सूचनाओं को प्रसारित करने का वहां बकायदा एक तंत्र विकसित हो चुका है, जिसे छिन्न-भिन्न करने में कुछ हद तक तो कामयाबी मिली है, मगर वह अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। बुरहान वानी के मारे जाने के बाद जिस तरह बड़े पैमाने पर तकरीरें और गलत सूचनाएं प्रसारित की गई थीं, उससे पूरी घाटी में स्थिति बेकाबू हो उठी थी। मगर उसके बाद ऐसे अफवाह तंत्र पर नकेल कसी गई। उन लोगों पर नजर रखी जाने लगी, जो इस अफवाह तंत्र को संचालित करते या किसी भी रूप में उससे जुड़े थे। हालांकि अब भी चिकित्सा, शिक्षा, व्यवसाय आदि से जुड़े अनेक लोग हैं, जो अपने सुरक्षा बलों का साथ देने के बजाय दहशतगर्दों के समर्थन में अफवाहें फैलाने से बाज नहीं आते। उन पर सख्ती जरूरी है।