सरकारी योजनाओं में सेंध लगाने वाले हर समय ताक में रहते हैं। खासकर गरीबों के लिए चलाई जाने वाली ज्यादातर योजनाएं इसलिए अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाती हैं कि उनमें अनियमितताओं की दर सबसे अधिक देखी जाती है। सरकारें इस हकीकत से अनजान नहीं हैं। मगर हैरानी की बात है कि कल्याण योजनाएं शुरू करने से पहले उन पर निगरानी के पुख्ता इंतजाम नहीं किए जाते।

आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना शुरू की गई थी, तब उम्मीद बनी थी कि इससे गरीब परिवारों को मुफ्त इलाज का लाभ मिल सकेगा। इस तरह देश का स्वास्थ्य सूचकांक भी सुधरेगा। मगर अभी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग ने इस योजना के संबंध में जो आंकड़े पेश किए हैं, वे चिंता पैदा करने वाले हैं। कैग ने तीन ऐसे मोबाइल नंबरों की पहचान की है, जिन पर क्रमश: साढ़े सात लाख, एक लाख चालीस हजार और छियानबे हजार लोग इस योजना के तहत पंजीकृत थे।

एक पैन नंबर पर दो पंजीकरण के कई मामले पाए गए, सात आधार नंबरों पर साढ़े चार हजार से अधिक लोगों का पंजीकरण हुआ है। इसमें तैंतालीस हजार से अधिक ऐसे परिवार पंजीकृत पाए गए, जिनमें सदस्यों की संख्या ग्यारह से लेकर दो सौ एक तक है। छह राज्यों में एक लाख से ऊपर पेंशनभोगी भी इस योजना का लाभ उठा रहे हैं।

कैग ने सितंबर 2018 से मार्च 2021 के बीच की अवधि में हुई अनियमितताओं का विश्लेषण किया है। ये अनियमितताएं इसलिए हो पाईं कि लाभार्थियों के पंजीकरण के सत्यापन में पुख्त तरीका नहीं अपनाया गया। बहुत सारे लोगों ने अवैध नाम, अवास्तविक जन्मतिथि, नकली पहचान पत्र, परिवार के सदस्यों की गलत संख्या आदि दर्ज करा कर इस योजना का लाभ उठाते रहे।

विश्लेषित अवधि के दौरान आयुष्मान भारत योजना के तहत सात करोड़ सत्तासी लाख लोग पंजीकृत थे। इस तरह अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिन समूहों को ध्यान में रख कर यह योजना शुरू की गई थी, उनमें से कितने लोग इसका लाभ पाने से वंचित रह गए और अपात्र लोगों ने इसका फायदा उठा लिया।

दरअसल, इस योजना के तहत स्वास्थ्य विभाग स्वास्थ्य बीमा कंपनियों को भुगतान करता है, जिनके जरिए इलाज करने वाले अस्पतालों को भुगतान किया जाता है। यह बात तो लंबे समय से उठाई जा रही थी कि बीमा कंपनियां और बहुत सारे निजी अस्पताल मिलीभगत करके आयुष्मान भारत योजना में सेंधमारी कर रहे हैं, मगर उन पर नजर रखने के पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए।

योजनाओं का वास्तविक लाभ तब तक लक्षित समूह तक नहीं पहुंच पाता, जब तक कि उन पर निगरानी का तंत्र व्यावहारिक और पारदर्शी न हो। आयुष्मान भारत की तरह ही अनेक योजनाएं बड़ी अनियमिताओं का शिकार हो चुकी हैं। मनरेगा के अंतर्गत भी बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी की शिकायतें आई थीं, जिस पर रोक लगाने के लिए कुछ तकनीकी इंतजाम किए गए, वास्तविक लाभार्थियों की पहचान में मुस्तैदी बरती जाने लगी।

हालांकि अब भी मनरेगा पूरी तरह भ्रष्टाचार मुक्त नहीं हो पाई है। मध्याह्न भोजन योजना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली आदि में भी इसी तरह लोगों ने सेंध लगाने का प्रयास किया। पिछले साल प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में भी बड़े पैमाने पर ऐसे लोगों का पंजीकरण चिह्नित किया गया, जो इसके सर्वथा अपात्र थे। इतने बड़े अनुभवों के बाद भी अगर कल्याण योजनाओं में सेंधमारी रोकने के पुख्ता और व्यावहारिक इंतजाम नहीं हो पा रहे हैं, तो इन योजनाओं की प्रासंगिकता ही प्रश्नांकित होती है।