जब भी किसी वैश्विक मंच पर मौका मिलता या किसी मुद्दे पर द्विपक्षीय बातचीत का सिलसिला चलता है, तो चीन, भारत के प्रति अपनी मैत्री भावना का प्रदर्शन ही करता है। मगर फिर मौका मिलते ही वह अपनी विस्तारवादी नीतियों को आगे बढ़ाने में जुट जाता है। इसी का ताजा उदाहरण है कि भारत वाले हिस्से में अरुणाचल की ग्यारह जगहों के नाम उसने बदल दिए हैं।

पिछले पांच सालों में यह तीसरी बार है, जब चीन ने अरुणाचल में गांवों, नदियों, दर्रों आदि के नाम बदल कर अपना नया नाम दे दिया है। इससे पहले 2017 में छह और 2021 में पंद्रह जगहों के नाम बदल दिए थे। उसके ताजा कदम को भी वहां के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने मंजूरी दे दी है। इस पर भारत के विदेश मंत्रालय ने सख्त एतराज जताया है। मंत्रालय ने कहा है कि नाम बदल देने से हकीकत नहीं बदल जाती।

दरअसल, चीन सदा से अरुणाचल को अपना हिस्सा मानता रहा है, इसलिए उसे भारत के नक्शे में दर्शाता ही नहीं। मगर पिछले पांच-सात सालों में जिस तरह भारत के हिस्से वाले विवादित इलाकों पर उसने न सिर्फ अपना हक तेजी से जताना शुरू किया है, बल्कि इसके लिए दोनों देशों की सेनाएं भी आमने-सामने हो जाती रही हैं, उसे लेकर चिंता गहराना स्वाभाविक है।

चार साल पहले गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाएं इसलिए गुत्थमगुत्था हो गई थीं कि चीन ने भारत वाले इलाके में निर्माण गतिविधियां तेज कर दी थी और उसके सैनिक भारतीय इलाके में घुस आए थे। करीब साल भर तक वहां तनाव बना रहा। फिर जब दोनों देशों की सेनाओं ने पीछे हटने का फैसला किया, तब भी चीन ने भारत के हिस्से वाले बड़े भूभाग पर अपनी दावेदारी बनाए रखी थी।

कुछ सूत्रों के हवाले से यहां तक दावा किया गया कि चीन ने उन इलाकों में अपने गांव बसा लिए थे। उसके बाद चीन के विदेश मंत्रालय और सेना के वरिष्ठ अधिकारियों की तरफ से आश्वस्त किया गया कि चीन भारत के भीतर अशांति पैदा नहीं करेगा। मगर फिर भी उसकी हरकतें नहीं रुकीं। करीब ढाई साल पहले उसने अरुणाचल में पंद्रह जगहों के नाम बदल कर मानकीकृत कर दिया था। अब ग्यारह और स्थानों के नाम बदल दिए हैं।

हालांकि कोई भी देश किसी जगह का नाम इस तरह अपने नक्शे में नहीं बदल सकता। इसके लिए उसे संयुक्त राष्ट्र में सूचना देनी पड़ती है। फिर उसके प्रतिनिधि उन इलाकों का सर्वेक्षण और दौरा कर उन नामों के बारे में रायशुमारी करते हैं। तब उन जगहों के नाम बदलने की इजाजत दी जाती है। ऐसे में चीन न सिर्फ भारत के खिलाफ, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों के विरुद्ध भी मनमानी कर रहा है।

छिपी बात नहीं है कि अरुणाचल वाले इलाके में घुसपैठ करके चीन न सिर्फ अपनी सीमा का विस्तार करना चाहता है, बल्कि इस तरह अपनी सेनाओं की तैनाती कर भारत पर लगातार दबाव बनाए रखना चाहता है। अरुणाचल का इलाका उसके लिए सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, इसलिए वह वहां जब-तब घुसपैठ की कोशिश और भारतीय सेना को छकाने का प्रयास करता रहता है। मगर भारत भी उसकी चालबाजियों से अच्छी तरह वाकिफ है, इसलिए उस इलाके में सख्त चौकसी बना रखी है। इसीलिए चीन किसी भी तरह बल पूर्वक पैठ बनाने में सफल नहीं हो पाता। मगर इस घटना से एक बार फिर भारत सरकार विपक्ष के निशाने पर जरूर आ गई है।