हरियाणा के नूंह और फिर आसपास के इलाकों में फैली हिंसा के बाद वहां के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर के बयान पर स्वाभाविक ही उनकी जवाबदेही को लेकर सवाल उठने लगे हैं। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति की सुरक्षा पुलिस द्वारा सुनिश्चित करना संभव नहीं होता। यह बयान उन्होंने एक ऐसे मौके पर दिया है, जब दंगाई भीड़ छह लोगों की जान ले चुकी है, सैकड़ों वाहन और कई घर-दुकानें आग के हवाले कर चुकी है।
अब गुरुग्राम, पलवल, फरीदाबाद जैसे दिल्ली से सटे संभ्रांत कहे जाने वाले शहर भी इस उन्माद की जद में आ चुके हैं। अगर वहां की सरकार का मुखिया ऐसी बात कह कर पुलिस की जिम्मेदारियों पर पर्दा डालने का प्रयास करता है, तो जाहिर है, इससे दंगाइयों का मनोबल और बढ़ेगा ही। पहले ही इस हिंसा के पीछे सरकार के मौन समर्थन के आरोप लग रहे थे, खट्टर ने यह बयान देकर जैसे उसे पुख्ता करने का ही काम किया है।
हालांकि यह पहला मौका नहीं है, जब खट्टर ने ऐसे अतार्किक बयान देकर अपने पर हमले आमंत्रित किए हैं। कई बार तो यही लगा है कि वे बोलने के बजाय मौन ही रहते तो अच्छा था। मगर शायद उन्हें इसकी परवाह नहीं कि सरकार का मुखिया होने के नाते कब क्या बोलना चाहिए और कब क्या नहीं बोलना चाहिए।
नूंह की हिंसा पर उनके उपमुख्यमंत्री दुख और चिंता प्रकट कर चुके हैं। उनकी पार्टी के केंद्र में मंत्री और हरियाणा से एक सांसद ने भी इस पर सवाल खड़ा किया है कि धार्मिक यात्रा में लोगों को हथियार लेकर चलने की इजाजत किसने दी। इसके बावजूद अगर खट्टर को लगता है कि पुलिस हर आदमी को सुरक्षा नहीं दे सकती, तो इससे उनकी प्रशासनिक लापरवाही स्पष्ट होती है। पुलिस का काम ही है हर नागरिक को सुरक्षा देना।
ऐसा वातावरण बनाना, जिससे आपराधिक प्रवृत्ति के लोग समाज में गड़बड़ी पैदा करने से पहले कई बार सोचें। हर व्यक्ति को सुरक्षा देने का मतलब यह नहीं होता कि हर आदमी के साथ पुलिस का एक सिपाही तैनात कर दिया जाए। पुलिस की जिम्मेदारी बेहतर कानून-व्यवस्था सुनिश्चित करना है। मगर खट्टर इसके उलट बात कह रहे हैं। अब तो नूंह की घटना के अनेक चित्र सामने आ चुके हैं, जिनमें यात्रा निकालने से पहले ही हिंसा भड़काने की तैयारियां साफ नजर आती हैं। जिस मोनू मानेसर का हाथ इस हिंसा के पीछे बताया जा रहा है, उसके वीडियो कई दिन पहले से प्रसारित हो रहे थे।
स्वाभाविक ही सवाल उठ रहे हैं कि जब यात्रा से पहले ही लोग हिंसा की आशंका जताने लगे थे, तो फिर पुलिस को इसका अंदाजा कैसे नहीं हो पाया। अगर मान भी लें कि यात्रा निकालने वालों ने पुलिस को इस बात की ठीक-ठीक जानकारी नहीं दी थी कि उस यात्रा में कितने लोग शामिल होंगे, तो क्या पुलिस इस बात से भी अनजान थी कि यात्रा के दौरान किस तरह की स्थिति पैदा हो सकती है।
अव्वल तो पुलिस की जिम्मेदारी होती है कि वह हिंसा की संभावना वाले क्षेत्रों और स्थितियों की पहचान खुद कर उससे बचने के उपाय करे। मगर नूंह में तो सब कुछ पहले से स्पष्ट होने के बावजूद वह हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। तिस पर अगर मुख्यमंत्री पुलिस की नाकामियों को ढंकने का प्रयास कर रहे हैं, तो यह किसी भी रूप में एक जिम्मेदार सरकार की निशानी नहीं कही जा सकती।