कोई भी तकनीक अगर मनुष्य के लिए सहयोगी की भूमिका में है, तो वह बेशक फायदेमंद हो सकता है, लेकिन वह अगर निर्भरता का मामला बनता है तो उसके घातक नतीजे भी सामने आ सकते हैं। इस लिहाज से देखें तो समूची दुनिया में इंटरनेट के तेजी से विस्तार के साथ मनुष्य को अपने जीवन के विविध पक्षों के लिए बहुस्तरीय सुविधाएं मिली हैं, लेकिन इसके नए स्वरूप ने कुछ ऐसी स्थितियां भी पैदा की हैं, जिससे पार पाना अब एक अहम चुनौती है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी एआइ के अलग-अलग मंचों ने आज हरेक विषय पर जानकारी हासिल करने से लेकर कई स्तर पर अपनी उपयोगिता की वजह से व्यापक जगह बना ली है।
इसी क्रम में एक पहलू इस तकनीक के साथ संवाद भी है, जहां किसी व्यक्ति के अमूमन हर तरह के सवाल का जवाब मिल सकता है। यह अलग बात है कि उसके सही या गलत होने की परख के लिए इंसान को अपने विवेक को सजग रखना चाहिए। कृत्रिम बुद्धिमत्ता की इस खासियत का प्रचार-प्रसार तो बहुत हुआ, लेकिन इसकी सीमाओं के बारे में ज्यादातर लोगों के पास ठोस जानकारी और उसके उपयोग के लिए उचित प्रशिक्षण नहीं है। यह बेवजह नहीं है कि कई बार लोग और खासतौर पर बच्चे एआइ के साथ संवाद के क्रम में उलझ जाते हैं या फिर भ्रम का शिकार होकर कोई प्रतिगामी कदम भी उठा लेते हैं।
कोई आनलाइन गेम खेलते हुए बच्चों के आत्महत्या कर लेने की खबरें पहले भी आती रही हैं, लेकिन अब कुछ मामलों में एआइ से संवाद को हत्या तक के लिए जिम्मेदार बताया जाने लगा है। गौरतलब है कि अमेरिका में सैन फ्रांसिस्को के कनेक्टिकट में एक तिरासी वर्ष की बुजुर्ग महिला के परिजनों ने हत्या और आत्महत्या के मामले में चैटजीपीटी की भूमिका को लेकर ओपनएआइ और माइक्रोसाफ्ट के खिलाफ एक मुकदमा दायर किया है। इसमें यह आरोप लगाया गया है कि एआइ वाले चैटबाट ने बेटे के मन में अपनी मां के बारे में भ्रम और संदेह को इतना बढ़ाया कि उसने मां की हत्या करके आत्महत्या कर ली।
अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इस एआइ ने हत्या करने वाले व्यक्ति के मन में सबके साथ-साथ अपनी मां के प्रति भी केवल शक और आशंका भर दी। उसे चैटजीपीटी को छोड़ कर अन्य किसी की भी बात पर विश्वास नहीं रहा। इस तरह की अनेक घटनाएं यही दर्शाती हैं कि हर बात या काम के लिए एआइ या आधुनिक तकनीक पर अत्यधिक निर्भरता कैसे इंसान की संवेदना, उसके आत्मविश्वास और यहां तक कि विवेक को निष्क्रिय कर दे सकती है, जिसके बाद व्यक्ति अपनी सोच-समझ से कोई भी प्रतिक्रिया दे सकने में अक्षम हो जाता है। आज अपने आसपास देखा जा सकता है कि लोग आधुनिक तकनीक को जरूरत से ज्यादा अहमियत देने, उसमें लीन रहने के क्रम में कैसे मानवीयता और संवेदना के मूल्यों को कोई पिछड़ा या दोयम दर्जे का मूल्य मानने लगे हैं।
ऐसी स्थिति में कई बार एक शख्स किसी अन्य व्यक्ति की बातों को संदेह की नजर से देखता है या फिर उसे अधूरा मानता है, लेकिन समान संदर्भ में वह एआइ की बातों को अधिक विश्वसनीय और शक से परे मानता है। जबकि एआइ की सीमा उसका मशीनी होना है, जिसकी तुलना मनुष्य की चेतना और उसके विवेक के साथ नहीं की जा सकती। एक बड़े दायरे में एआइ की भूमिका जरूर बढ़ रही है, लेकिन अभी यह जिस अवस्था में है, उसमें इस पर पूरी तरह निर्भरता के अपने खतरे हैं।
