करीब एक साल से केंद्रीय सतर्कता आयुक्त का पद खाली था और मुख्य सूचना आयुक्त का पद पिछले साल अगस्त से। अब केंद्र ने इन दोनों पदों पर नई नियुक्तियां कर दी हैं। लेकिन सरकार के रवैए पर अब भी सवाल उठ रहे हैं। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष और आयकर विभाग की जांच शाखा के महानिदेशक रहे केवी चौधरी को नया सीवीसी यानी केंद्रीय सतर्कता आयुक्त बनाया गया है।

नियुक्ति की बाबत चयन मंडल की बैठक से पहले ही देश के दो जाने-माने वकीलों राम जेठमलानी और प्रशांत भूषण ने चौधरी का रिकार्ड बेदाग न होने की बात कहते हुए प्रधानमंत्री से उनके नाम पर विचार न करने का अनुरोध किया था। पर उनकी नहीं सुनी गई। मोदी के प्रबल समर्थक रहे जेठमलानी ने अब उनसे ‘नाता तोड़ने’ की बात कही है। चौधरी पर प्रशांत भूषण के कई गंभीर आरोप हैं। मसलन, जब चौधरी आयकर विभाग की जांच शाखा के महानिदेशक थे, राडिया टेप से बहुत-से गोरखधंधे का पता चला था, पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। अन्य आरोपों में पोंटी चड््ढा के ठिकानों पर आयकर विभाग के छापों की सूचना लीक करना, हवाला कारोबारी मोइन कुरैशी को बचाना और स्टॉक गुरु घोटाले में लीपापोती करना आदि शामिल हैं।

इस सिलसिले में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर की गई है। अगर चौधरी की नियुक्ति न्यायालय की परीक्षा में खरी साबित नहीं हो सकी, तो मोदी सरकार की वैसी ही किरकिरी होगी, जैसी केवी थॉमस के मामले में यूपीए सरकार की हुई थी। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के मकसद से 1964 में बने केंद्रीय सतर्कता आयोग की अहमियत सीबीआइ के कामकाज के मद््देनजर भी है।

आयोग सीबीआइ को जांच के लिए निर्देशित करता है, उसकी जांच पर निगरानी रखता है और सीबीआइ के अफसरों की नियुक्ति और तैनाती के लिए सिफारिश भी करता है। अगर आयोग का दामन पाक-साफ नहीं होगा, तो सीबीआइ की साख पर भी उसका बुरा असर पडेÞगा। अलबत्ता नए मुख्य सूचना आयुक्त बनाए गए विजय शर्मा की पात्रता पर किसी ने एतराज नहीं उठाया है। लेकिन यह सवाल जरूर उठा है कि दस महीनों तक यह पद क्यों रिक्त रखा गया। शर्मा सूचना आयुक्तों में वरिष्ठतम थे। लिहाजा, मुख्य सूचना आयुक्त पद के लिए वे स्वाभाविक दावेदार थे। पर पदोन्नति के जरिए ही खाली पद भरना था, तो इतनी देरी क्यों की गई? विलंब के कारण शर्मा को बहुत थोड़े दिनों का कार्यकाल मिल पाएगा, क्योंकि वे एक दिसंबर को सेवानिवृत्त हो जाएंगे।

सूचनाधिकार अधिनियम लागू होने के बाद से यह पहला मौका है जब मुख्य सूचना आयुक्त का पद खाली रहा। इसके अलावा सूचना आयुक्तों के भी चार पद खाली थे, पर उनमें से एक पर ही नई नियुक्ति की गई है। इससे जाहिर है कि सूचना अधिकार के प्रति मोदी सरकार कितनी संजीदा है। सूचना आयोग के पद रिक्त रहने के फलस्वरूप लंबित अपीलों की तादाद चालीस हजार से ऊपर पहुंच गई है।

राज्यों के भी सूचना आयोगों का यही हाल है, रिक्त पदों और संसाधनों की कमी के कारण वहां भी लंबित मामले बढ़ते गए हैं। भ्रष्टाचार उजागर करने वालों को संरक्षण देने के लिए विसलब्लोअर कानून बना, जिस पर साल भर पहले राष्ट्रपति ने भी अपनी मुहर लगा दी। लेकिन विसलब्लोअर कानून की अधिसूचना अब तक जारी नहीं हुई है। लोकपाल कानून यूपीए सरकार के समय ही बन गया था। पर लोकपाल संस्था का गठन अब तक नहीं हो पाया है। तेजी से काम करने का दम भरने वाली मोदी सरकार इस मोर्चे पर क्यों फिसड्डी नजर आती है!