दूरसंचार सेवा के क्षेत्र में जिस तेजी से अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, उसी तेजी से इसके दुरुपयोग के खतरे भी बढ़े हैं। सरकार डिजिटल अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने की कोशिश कर रही है, मगर इसमें व्यक्तिगत डेटा की चोरी, बैंक खातों में सेंधमारी, लोगों की निजता में खलल आदि की प्रवृत्ति बहुत तेजी से बढ़ी है। इस पर नकेल कसने के लिए संचार विभाग चौकसी के इंतजाम कर रहा है।
बैंकों और दूरसंचार कंपनियों को भी अधिक जवाबदेह बनाया जा रहा है। मगर इंटरनेट के माध्यम से सूचनाएं भेजने, संवाद करने आदि के मामले में निजता का हनन रोकना जटिल ही बना हुआ है। ऐसे में सरकार ने एक सौ अड़तीस साल पुराने भारतीय टेलीग्राफ अधिनयम में बदलाव कर व्यावहारिक दूरसंचार विधेयक लाने का मन बनाया है। इससे संबंधित प्रस्ताव लोकसभा में पेश किया जा चुका है।
इस अधिनियम में भारी जुर्माने और कारावास के कड़े प्रावधान होंगे। यहां तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर सरकार दूरसंचार सेवाओं को अस्थायी रूप से अपने नियंत्रण में ले सकती है। हालांकि इस अधिनियम में संचार कंपनियों को उपग्रह सेवाओं, लाइसेंस लेने या छोड़ने से संबंधित नियमों को काफी लचीला करने का भी प्रस्ताव है, ताकि दूरसंचार के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़े और उपभोक्ता को इसका लाभ मिल सके।
दरअसल, प्रस्तावित कानून की जरूरत राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर अधिक महसूस की जा रही है। आज दूरसंचार सेवाएं जिस उन्नत अवस्था में पहुंच गई हैं और उनमें निरंतर विकास हो रहा है, उसमें भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम 1885 के प्रावधान बहुत कारगर साबित नहीं हो पाते। इस क्षेत्र में समय-समय पर आने वाली शिकायतों, मनमानियों और गड़बड़ियों के मद्देनजर सरकार अलग-अलग नियम-कायदे बना कर नियमित करने का प्रयास करती रही है।
मगर कई मामलों में देखा जा चुका है कि दूसरे देशों में बैठे अपराधी दूरसंचार सेवाओं की मदद से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पैदा करने की कोशिश करते हैं। कुछ मामलों में जासूसी करने, लोगों की निजी जिंदगी में घुसपैठ करने, दूसरों की बातचीत सुनने और रिकार्ड करने की आशंका संबंधी शिकायतें भी मिलती रही हैं।
ऐसे लोगों के खिलाफ न केवल कड़े दंड, बल्कि उन्हें संचार सेवाओं से बाहर करने का भी प्रावधान किया गया है। संचार सेवाओं का उपयोग लोग संचार संबंधी अपनी सुविधाओं के लिए करते हैं, उनमें किसी तरह की खलल या असुरक्षा उनके नागरिक अधिकारों का हनन है। इस दृष्टि से कड़े कानूनी प्रावधान जरूरी हैं।
मगर इस विधेयक के कुछ प्रावधानों को लेकर विपक्षी दलों को आपत्ति है। हालांकि सरकार इस पर बहस को तैयार है, पर जिस तरह हंगामे के बीच यह विधेयक पेश किया गया, उस तरह के वातावरण में बहस कराने का प्रयास नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा की संवेदनशीलता से जुड़ा मुद्दा है।
कुछ दूरसंचार कंपनियां भी सख्त नियमों के पक्ष में हैं, पर राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर अगर उनकी सेवाओं पर नियंत्रण का अधिकार सरकार अपने हाथ में ले लेती है, तो उससे नागरिक हितों के बाधित होने की आशंका बनी रहेगी। पहले ही विपक्ष कुछ लोगों के फोनों में चोरी-छिपे साफ्टवेयर डाल कर जासूसी करने के आरोप लगाता रहा है।
इससे संबंधित मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। सोशल मीडिया मंचों को अनुशासित करने संबंधी कुछ नियमों को लेकर भी अभिव्यक्ति आजादी और निजता की सुरक्षा आदि के तहत सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा होना पड़ा था। इस तरह दूरसंचार सेवाओं को अपने नियंत्रण में लेने संबंधी उसके प्रस्तावित प्रावधान पर सर्वसम्मति मुश्किल लगती है।