समाज में महिला और पुरुषों की आबादी में संतुलन बेहद जरूरी है। देश में बेटियों की कम हो रही संख्या को समान अनुपात में लाने के लिए सरकार की ओर से हर स्तर पर प्रयास किए जाते रहे हैं। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना भी इन्हीं प्रयासों का एक हिस्सा है। राष्ट्रीय स्तर पर शुरू की गई इस योजना का मुख्य उद्देश्य गिरते लिंगानुपात को रोकना, कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगाना तथा बालिकाओं की शिक्षा और शारीरिक एवं मानसिक विकास से जुड़े कार्यों को गति देना है। बेटियों के लिए यह योजना निश्चित तौर पर बदलाव की वाहक बन सकती है, लेकिन सवाल है कि क्या यह परिणामोन्मुख तरीके से आगे बढ़ पा रही है?
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की हालिया रपट के तथ्यों से तो ऐसा नजर नहीं आ रहा है। रपट में कहा गया है कि इस योजना के तहत पिछले ग्यारह वर्षों में स्वीकृत राशि में से करीब एक तिहाई राशि का इस्तेमाल नहीं हो पाया है। वर्ष 2024-25 (31 दिसंबर तक) में तो सबसे कम करीब तेरह फीसद राशि ही खर्च हो पाई। ऐसे में इस योजना के प्रभावी क्रियान्वयन और इसकी सफलता को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है।
यह सच है कि नई तकनीक अपने साथ चुनौतियां भी लेकर आती हैं। भ्रूण परीक्षण जैसे गैरकानूनी और अनैतिक कृत्य भी तकनीक के दुरुपयोग का ही परिणाम है। देश में लिंगानुपात गड़बड़ाने का एक कारण भ्रूण परीक्षण भी है। हालांकि इस पर कानूनन प्रतिबंध है, लेकिन चोरी-छिपे भ्रूण परीक्षण कराने के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं। हमारे समाज की रूढ़िवादी मानसिकता भी इसके लिए जिम्मेदार है। बेटे को प्राथमिकता और बेटियों को परिवार पर बोझ समझने की प्रवृत्ति आज भी मौजूद है।
‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना में समाज की इस सोच को बदलने का आह्वान भी सम्मिलित है। इसके क्रियान्वयन में जो लापरवाही देखी जा रही है, वह बेहद निराशाजनक है। जब इस योजना के तहत स्वीकृत धनराशि का एक बड़ा हिस्सा खर्च ही नहीं किया जा रहा है, तो इसका लाभ पात्र बालिकाओं तक कैसे पहुंचेगा? जिस उद्देश्य से यह योजना शुरू की गई थी, वह लक्ष्य कैसे हासिल हो पाएगा? इस पर गंभीरता से विचार करना होगा।
रपट में कहा गया है कि पिछले ग्यारह वर्षों में इस योजना के तहत स्वीकृत धनराशि का सौ फीसद इस्तेमाल कभी नहीं हो पाया। यानी संबंधित अधिकारी यह तय ही नहीं कर पाते हैं कि इस राशि को कहां और कैसे खर्च किया जाए। जबकि योजना के मुताबिक, इस राशि का इस्तेमाल लड़कियों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करने, उनमें खेल गतिविधियों को बढ़ावा देने, आत्मरक्षा का प्रशिक्षण, पोषण कार्यक्रम, स्वास्थ्य सुविधाएं और शौचालय के निर्माण जैसे कार्यों पर किया जाता है। जिला स्तर पर इस योजना को लागू करने के लिए धनराशि राज्य सरकार के माध्यम से प्रदान की जाती है।
रपट से पता चलता है कि कई जगह पोस्टर और नारों जैसे कार्यों पर ही अधिक राशि खर्च की गई है, जबकि बालिका शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य सुविधाओं पर वास्तविक खर्च सीमित रहा। इससे साफ है कि इस योजना को जमीन पर उतारने में बहुस्तरीय लापरवाही बरती जा रही है। ऐसे में संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करनी होगी, तभी यह योजना सही मायने में आगे बढ़ पाएगी।