करीब तीन महीने पहले बांग्लादेश में जब एक अप्रत्याशित घटनाक्रम के बीच तख्तापलट के बाद नई अंतरिम सरकार ने काम करना शुरू किया था, तब उम्मीद की गई थी कि वह अब सबके हित को मकसद बना कर नई राह पर चलेगी। मगर अब वहां से जैसी खबरें आ रही हैं, वे यही बताती हैं कि बांग्लादेश शायद फिर से एक नई समस्या के दौर में दाखिल हो रहा है। यह विडंबना ही है कि नई अंतरिम सरकार ने सबको साथ लेकर चलने का भरोसा दिया था, लेकिन अब वहां के अल्पसंख्यक समुदायों के सामने बेहद जटिल स्थिति खड़ी हो रही है और उनके साथ होने वाले बर्ताव से ऐसा लगता है कि उन्हें देश में दोयम दर्जे का नागरिक माना जाएगा। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि वहां सामुदायिक टकराव की स्थिति बन रही है और सरकार उसका कोई समाधान निकालने के बजाय अल्पसंख्यकों के खिलाफ नाहक आक्रोश को रोक नहीं पा रही है।

गौरतलब है कि कुछ समय से लगातार ऐसी आवाजें उठ रही हैं कि बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार के जिम्मेदारी संभालने के बाद स्थानीय हिंदू समुदाय के साथ कई स्तर पर भेदभाव किए जा रहे हैं और सरकार उन्हें रोकने के बजाय अपनी आंखें मूंदे हुए है। जबकि बांग्लादेश में बगावत के बाद नए दौर की शुरुआत के साथ लोगों ने वहां सद्भाव और समावेशी राह की नई हवा बहने की उम्मीद की थी। फिलहाल स्थिति यह है कि वहां की पुलिस ने इस्कान समूह से जुड़े रहे चिन्मय कृष्ण दास को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि वहां उन पर राष्ट्रीय झंडे को अपमानित करने का हवाला देकर राष्ट्रद्रोह का आरोप लगाया गया है, मगर इस आरोप की हकीकत तो जांच से ही सामने आएगी।

इसके बाद बांग्लादेश की नई सरकार के इस रुख पर सवाल उठने लगे हैं कि पिछली सरकार को तानाशाही बता कर सत्ता में आने के बाद क्या अब उसका रवैया धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति पनप रहे विद्वेष को तुष्ट करने वाला होगा। कहने को बांग्लादेश की सरकार इस तरह के आरोपों से इनकार करती है, लेकिन आखिर क्या वजह है कि वहां हिंदुओं सहित अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की ओर से अपने खिलाफ माहौल पैदा करने के आरोप लगाए जा रहे हैं और सरकार अपने रवैये से इस समस्या का कोई सौहार्दपूर्ण हल निकालने के बजाय असंतोष को बढ़ावा दे रही है!

सवाल है कि अगर बांग्लादेश में पूर्व की सरकार पर तानाशाही के आरोप थे और आम जनता ने उसके खिलाफ विद्रोह करके उसे सत्ता से हटाया, तो नए दौर के शुरुआती महीनों में ही वहां से ऐसी तस्वीरें क्यों सामने आने लगी हैं। फिलहाल जिस तरह के हालात पैदा हो रहे हैं, अगर सरकार ने उस पर तत्काल लगाम लगाने के ठोस उपाय नहीं किए तो सामुदायिक टकराव चिंताजनक रास्ता भी अख्तियार कर सकता है। हालांकि बांग्लादेश इसे अपना घरेलू मामला बता रहा है, लेकिन पड़ोसी देश में इस तरह की घटनाओं का व्यापक असर पड़ सकता है।

यही वजह है कि भारत ने इस मसले पर चिंता जताई है। बांग्लादेश में यह अफसोसनाक स्थिति तब है कि जब नई सरकार की कमान शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मोहम्मद यूनुस के हाथों में है। उनके इसी परिचय की वजह से उनसे उम्मीद की जा रही है कि वे वहां कानून-व्यवस्था का राज लाने के साथ-साथ सभी समुदायों के बीच सद्भाव कायम करेंगे, ताकि बांग्लादेश अपने नए सफर में मानवाधिकारों और शांति की राह पर आगे बढ़ने का संदेश दे।