मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में आयोजित आसियान यानी दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के क्षेत्रीय सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में भी आतंकवाद से निपटने के उपाय जुटाना अहम मुद्दा रहा। यों आसियान दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों का क्षेत्रीय संगठन है, पर इसके बढ़ते प्रभाव के चलते अमेरिका सहित कई ताकतवर देश भी इसे समर्थन देते रहे हैं। इसे चौवालीस गैर-आसियान देशों का समर्थन हासिल है। इस सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जोर देकर कहा कि दुनिया में आर्थिक मजबूती के लिए सभी देशों को आतंकवाद पर नकेल कसने का संकल्प लेना चाहिए।
इसमें चीन, रूस, जापान आदि देशों ने भी सहयोग का भरोसा दिलाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन और जापान के प्रधानमंत्रियों के साथ बातचीत में आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त लड़ाई और समुद्री विवादों को सुलझाने में सहयोग पर जोर दिया। पिछले दिनों पेरिस में हुए हमले के बाद दुनिया के तमाम देश आतंकवाद को बड़ी चुनौती मानने लगे हैं, इसलिए स्वाभाविक ही आसियान शिखर सम्मेलन में इस मुद्दे पर कुछ अधिक जोर दिया गया। आसियान का गठन दक्षिण-पूर्व एशियायी देशों के बीच व्यापार और रोजगार की संभावनाओं को बढ़ावा देने और अन्य मामलों में क्षेत्रीय स्तर पर परस्पर सहयोग के मकसद से किया गया था। निस्संदेह इस संगठन के सदस्य देशों ने आपसी सहयोग से आर्थिक मामलों में अपनी स्थिति काफी मजबूत की है। ये तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश हैं। इनमें रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं। मगर चरमपंथी गतिविधियों के चलते इनमें से ज्यादातर देशों की काफी ऊर्जा बेकार जा रही है। इसके चलते अर्थव्यवस्था को अपेक्षित गति नहीं मिल पा रही। इसलिए पेरिस हमले के बाद इन देशों की चिंता और बढ़ गई है।
भारत के लिए आसियान देशों का सहयोग कई मामलों में अहम है। उसे अत्याधुनिक तकनीक के अलावा बड़े बाजार की जरूरत है और इंडोनेशिया, मलेशिया, म्यांमा, लाओस आदि देशों में इसकी अपार संभावना है, इसलिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेखांकित किया कि किस तरह उनकी सरकार निवेश संबंधी मामलों में रास्ते आसान कर रही है। भारत में निवेश करना पहले से सुगम हो गया है। कर ढांचे को आसान बनाया जा रहा है। दरअसल, नरेंद्र मोदी सरकार का जोर भारत में उत्पादन, निर्यात आदि बढ़ाने पर है। इसलिए प्रधानमंत्री तमाम देशों की यात्रा करके प्रत्यक्ष विदेशी निवेशक आकर्षित करने की कोशिश करते रहे हैं। आसियान शिखर सम्मेलन में भी उन्होंने वही बातें दोहरार्इं।
हालांकि उन्होंने विकास दर बढ़ने और मुद्रास्फीति में तेजी से कमी आने पर जोर दिया, पर हकीकत यह है कि इस दिशा में सरकार को अभी काफी कुछ करने की जरूरत है। निर्यात के मामले में लगातार निराशाजनक स्थिति बनी हुई है। आसियान देशों में बाजार के विस्तार की संभावना जरूर है, पर इसके लिए जिस तरह निर्यात संबंधी गतिविधियों को बढ़ाने की जरूरत है, उसमें कामयाबी नहीं मिल पा रही। फिर निवेशकों को आकर्षित करने के लिए अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के अलावा अफसरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और कारोबार लायक माहौल बनाने की जरूरत होती है, इस दिशा में अपेक्षित कदम नहीं उठाए जा पा रहे। इसी तरह आतंकवाद पर नकेल कसना चुनौतीपूर्ण काम है। ऐसे में अगर भारत सहित आसियान देश आपसी सहयोग से क्षेत्रीय स्तर पर आतंकवादी संजाल को भेदने का उपाय जुटाते हैं, तो निस्संदेह इससे आर्थिक मामलों में पैदा हो रहे अवरोधों को काफी हद तक दूर किया जा सकता है।