वक्त के साथ विज्ञान हर रोज नई ऊंचाई छूने की ओर बढ़ रहा है। मानव जीवन को सुविधाजनक बनाने के लिहाज से इसकी उपलब्धियों से इनकार नहीं किया जा सकता। मगर इसके समांतर तकनीकी के दुरुपयोग से जिस तरह के खतरे खड़े हो रहे हैं, उनका सामना करना आम लोगों से लेकर सरकार तक के लिए चुनौती साबित हो रहा है। इस संदर्भ में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रयोगों, संभावनाओं और आशंकाओं पर बहस चल रही है। मगर मुश्किल यह है कि यह उच्च स्तरीय तकनीक फिलहाल जिस अवस्था में है, उसमें उपयोगिता के मुकाबले इसके खतरे भी मुख्य रूप से सामने आ रहे हैं।

दो अभिनेत्रियों का छेड़छाड़ कर तैयार वीडियो से व्यापक खतरों का संकेत

पिछले कुछ दिनों में देश की दो अभिनेत्रियों का जो वीडियो फैला दिया गया, वह छेड़छाड़ कर तैयार किया गया था। उसके स्वरूप और नतीजे का सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है। दरअसल, कृत्रिम बुद्धिमत्ता के तहत ‘डीप फेक’ तकनीक के जरिए एक अभिनेत्री का चेहरा किसी अन्य महिला की आंगिक भंगिमा से जोड़ कर उसे अश्लील स्वरूप दे दिया गया था। यह किसी महिला की गरिमा के हनन का मामला है। मगर इसके लिए जिस डीप फेक तकनीक का उपयोग किया गया, वह इसके व्यापक खतरों का संकेत देता है।

सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों से जांच करने के लिए कहा

दो अभिनेत्रियों के साथ हुई इस घटना के बाद स्वाभाविक ही इस पर व्यापक चिंता उभरी है। इस मसले पर सरकार ने भी प्रमुख सोशल मीडिया कंपनियों को गलत सूचना, डीप फेक और नियमों का उल्लंघन करने वाली अन्य सामग्री की पहचान करने और जानकारी देने के छत्तीस घंटों के भीतर उन्हें हटाने का परामर्श जारी किया है।

दरअसल, डीप फेक वीडियो को ‘सिंथेटिक मीडिया’ भी कहा जाता है। इसके जरिए किसी व्यक्ति की सहमति या उसे जानकारी दिए बिना उसकी तस्वीर या वीडियो को अन्य व्यक्ति की तस्वीर या वीडियो से बदल दिया जाता है। बीते कुछ समय से जैसे-जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता से लैस तकनीकों का विस्तार हुआ है, उसमें बहुत सारे ऐसे लोगों की पहुंच भी इस तकनीक तक बनी है, जो इसका बेजा इस्तेमाल कर सकते हैं। किसी जानी-मानी हस्ती की तस्वीरों या उसके वीडियो से अगर छेड़छाड़ की जाती है तो ऐसे मामलों में कानूनी उपायों को लेकर सक्रियता बढ़ेगी। मगर इसके जरिए निशाना बनाए जाने पर साधारण लोगों की स्थिति क्या हो सकती है, यह समझा जा सकता है।

एक अध्ययन के मुताबिक, डीप फेक तकनीक के जरिए तैयार किए गए अश्लील वीडियो में आमतौर पर महिलाओं को ही दिखाया जाता है। इसका मकसद अश्लील फिल्मों का कारोबार बढ़ाने से लेकर किसी महिला को बदनाम करना, बदला लेना या भयादोहन हो सकता है। इसके जमीनी असर को देखें तो यह तकनीक महिलाओं के खिलाफ लैंगिक हिंसा का एक नया रूप बन कर उभरा है।

मगर इसके खतरे का दायरा इससे भी आगे है, जिसमें किसी भी व्यक्ति का मनमाना वीडियो तैयार करके उसका भयादोहन किया जा सकता है, उसे किसी वैसी गतिविधि में फंसाया जा सकता है, जिसमें वह कभी शामिल न रहा हो। इसके अलावा, बहुस्तरीय साइबर खतरे पैदा होने से लेकर इससे आम राय को गलत दिशा दी जा सकती है। तकनीक अपने आप में विज्ञान की उपलब्धि होती है, लेकिन इसका असर सकारात्मक होगा या नकारात्मक, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसका इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति कैसा है। जाहिर है, मौजूदा कानूनी व्यवस्था के समांतर समय के साथ तकनीक के बेजा इस्तेमाल के बदतर होते स्वरूप पर काबू पाने की ठोस व्यवस्था नहीं की गई तो इसके घातक नतीजे आएंगे।