रूस में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे अप्रत्याशित नहीं हैं। यह पहले से तय माना जा रहा था कि वहां व्लादिमीर पुतिन की एक बार फिर बड़ी जीत होगी। इसलिए जब पुतिन के भारी मतों के अंतर से राष्ट्रपति चुने जाने की घोषणा हुई, तो किसी को हैरानी नहीं हुई। गौरतलब है कि पुतिन को 87.29 फीसद वोट मिले।
पिछली बार उन्हें 76.7 फीसद वोट मिले थे। यानी बीते कार्यकाल के दौरान रूस में उनके प्रभाव का और विस्तार हुआ है। हालांकि इसी बीच रूस को कोरोना महामारी सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुस्तरीय चुनौतियों से जूझना पड़ा। रूस के सामने सबसे जटिल स्थिति यूक्रेन के साथ युद्ध की शुरुआत है, जो अब तीसरे साल में दाखिल हो चुकी है और उसके खत्म होने की फिलहाल कोई उम्मीद नहीं दिख रही।
इस मुद्दे ने पुतिन को अपने सामने के मैदान को साफ करने में बड़ी भूमिका निभाई। आंतरिक मोर्चे पर रूस की अर्थव्यवस्था में मजबूती से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक ताकतवर देश के रूप में अपनी जगह बनाने का राजनीतिक असर भी चुनाव पर पड़ा और लोगों ने पुतिन को चुना। उनका यह कार्यकाल 2030 तक के लिए होगा।
रूस में जनमत संग्रह से 2020 में जो संविधान संशोधन कराया गया था, उसके तहत पुतिन अभी छह साल के दो और कार्यकाल या 2036 तक राष्ट्रपति बने रह सकते हैं। यह उनका पांचवां कार्यकाल है और अब तक आंतरिक मोर्चे पर उनके सामने किसी प्रतिद्वंद्वी के उभरने की स्थितियां बेहद मुश्किल रही हैं।
पिछले कुछ वर्षों में जो इक्का-दुक्का विपक्षी स्वर उभरे, वे उनके सामने कोई चुनौती नहीं बन सके। एलेक्सी नवेलनी को पुतिन का सबसे कट्टर प्रतिद्वंद्वी माना जाता था। राष्ट्रपति चुनाव शुरू होने के पहले ही जेल में उनकी मौत हो गई। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूक्रेन के साथ युद्ध के सवाल पर रूस के खिलाफ बनने वाले मोर्चे से भी पुतिन को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा और तमाम झटकों के बावजूद उन्होंने अपनी वैश्विक धमक बनाए रखी। अब नए कार्यकाल की शुरुआत में ही उन्होंने जिस तरह तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका जताई है, उसके मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के मोर्चे पर उनके रुख पर दुनिया की नजर रहेगी।