किसी हादसे का सबक यह होना चाहिए कि उस तरह की दुर्घटनाएं होने से रोका जाए। पर आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी शहर में गोदावरी नदी के तट पर हुई भगदड़ और उसमें तेईस महिलाओं सहित कुल सत्ताईस लोगों की मौत ने एक बार फिर यही साबित किया है कि ऐसे आयोजनों में बड़ी तादाद में भीड़ जुटने की संभावना के बावजूद उसके प्रबंधन को लेकर भारी लापरवाही बरती जाती है।
गौरतलब है कि एक सौ चौवालीस साल बाद होने वाले इस धार्मिक आयोजन ‘गोदावरी महा पुष्करम’ मेले के मद्देनजर सरकार ने दावा किया था कि नदी में डुबकी लगाने और घाटों से लौटने के वक्त किसी अप्रिय घटना की आशंका के मद्देनजर पिछले चार महीने से सभी जरूरी उपाय किए गए हैं।
पर मेले के पहले दिन ही इतना बड़ा हादसा सामने आ गया! क्या सचमुच वहां जुटने वाली भारी भीड़ के व्यवस्थित और सुरक्षित तरीके से आवागमन के इंतजाम किए गए थे? अगर पूजा-अर्चना और नहाने के लिए करीब पौने तीन सौ घाट बनाए गए थे, तो किस वजह से हजारों लोग केवल पुष्कर घाट पर इकट्ठा हो गए? खबरों के मुताबिक बड़ी तादाद में लोग गोदावरी के जिस घाट पर नहाने के लिए आए थे, वहीं राज्य के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और उनके साथ दूसरे लोग भी आए।
इसके बाद वहां मौजूद समूचे प्रशासन का ध्यान उन्हें वीआइपी सुविधाएं मुहैया कराने पर केंद्रित हो गया। इसी बीच मुख्यमंत्री के निकलने के बाद अचानक भीड़ का दबाव बढ़ा और भगदड़ मच गई। यह सामान्य-सा तथ्य है कि जब हजारों-लाखों लोग एक जगह इकट्ठा हों तो वहां मामूली लापरवाही भी बड़े हादसे की वजह बन सकती है। गोदावरी तट पर नहाने वाले कुछ अतिमहत्त्वपूर्ण शख्सियतों की सुविधा और सुरक्षा का खयाल रखना प्रशासन को जरूरी लगा, लेकिन उसे इस बात की कोई परवाह नहीं थी कि इसी वजह से भीड़ पर दबाव बढ़ कर एक हादसे में तब्दील हो जा सकता है!
मंदिरों, पूजा-स्थलों पर और धार्मिक आयोजनों के दौरान होने वाले जमावड़े के चलते हुआ यह कोई पहला हादसा नहीं है। हर साल ऐसी भगदड़ और उसमें लोगों के मारे जाने की घटनाएं सामने आती रहती हैं। यह ध्यान रखने की बात है कि ऐसी किसी भी त्रासदी में जान गंवाने वालों में महिलाओं, बच्चों और वृद्धों की संख्या ज्यादा होती है।
लगभग सभी जगहों पर ऐसे हादसों की मुख्य वजह अफवाह या अचानक भीड़ पर दबाव के कारण भगदड़ मचना और अव्यवस्था के हालात बन जाना होती है। लेकिन बड़ी तादाद में जुटने वाले लोगों के नियंत्रण, लगातार निगरानी और उसी के हिसाब से सुरक्षा-व्यवस्था की जिम्मेदारी न पूजा-स्थलों या आयोजनों से जुड़े प्रबंधन लेते हैं, न प्रशासन सावधानी बरतना जरूरी समझता है। यह बेवजह नहीं है कि ऐसी घटनाओं के उदाहरण लगातार सामने होने के बावजूद धार्मिक आयोजनों के दौरान किसी बड़े जमावड़े में सुरक्षा-व्यवस्था के मामले में लापरवाही बरती जाती है और नतीजतन लोगों की जान जाती है।
जबकि भीड़ प्रबंधन के लिए कुछ बहुत मामूली बातों पर गौर कर भगदड़ या इसके चलते होने वाले किसी बड़े हादसे की आशंका बहुत कम की जा सकती है। ऐसी लगभग हर घटना के पीछे प्रशासन और आयोजकों की शिथिलता और अकुशलता सबसे बड़ी वजह होती है। मगर आखिरी जिम्मेदारी किसी पर नहीं आती। इसलिए जरूरत इस बात की है कि विशेष अवसरों पर जुटने वाली भीड़ के नियंत्रण, लगातार निगरानी और उचित इंतजाम की जिम्मेदारी पूरी तरह प्रशासन और पूजास्थलों के प्रबंधन पर हो और हादसों के लिए उन्हें जवाबदेह बनाया जाए।
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta