भले ही अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे अभी औपचारिक रूप से नहीं आए हों, लेकिन अब डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडेन को इतने वोट मिल चुके हैं कि उन्हें वाइट हाउस जाने से कोई नहीं रोक पाएगा। हालांकि रिपब्लिकन उम्मीदवार और निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अभी भी औपचारिक रूप से हार स्वीकार नहीं की है और कानूनी पचड़े डालने में लगे हैं। लेकिन वे यह भी अच्छी तरह जान चुके हैं कि अब कुछ नहीं होने वाला और उन्हें बाइडेन को कुर्सी सौंपनी ही पड़ेगी।

बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के संकेत उसी दिन मिल गए थे, जिस दिन अमेरिका की सीक्रेट सर्विस ने उनकी सुरक्षा का जिम्मा संभाल लिया था। वाइट हाउस के लिए रास्ता साफ होते ही बाइडेन ने पहला एलान यही किया कि वे अब पूरे अमेरिकियों के राष्ट्रपति हैं और पहला काम देश को एकजुट रखने का रखेंगे। बाइडेन की यह प्राथमिकता इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस बार राष्ट्रपति चुनाव में जिस तरह की कड़ी प्रतिस्पर्धा देखने को मिली, उससे साफ था कि अमेरिकी समाज दो खेमों में बंट चुका है और देश के भविष्य के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है।

ट्रंप की हठधर्मिता, बदजुबानी और कई मौकों पर अनुचित और विवादित बयानबाजी से चुनावी माहौल बदरंग हुआ, यहां तक कि जिस बड़े पैमाने पर लोगों ने हथियार खरीदे, उससे चुनावी हिंसा का खतरा गहरा गया था।

बाइडेन ऐसे वक्त में राष्ट्रपति चुने गए हैं जब दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है और इसका सबसे ज्यादा शिकार अमेरिका ही हुआ है। देश की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है, लाखों लोग बेरोजगार हैं। ऐसे में बाइडेन की सबसे बड़ी चुनौती कोरोना और इससे उत्पन्न हालात से निपटने की है। कोरोना महामारी को लेकर ट्रंप ने शुरू से जैसा रवैया अख्तियार किया, उसका खमियाजा अमेरिकी भुगत रहे हैं।

ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि बाइडेन के सामने पहाड़ जैसे संकट हैं। पर इसमें भी संदेह नहीं होना चाहिए कि बाइडेन इन हालात से निपटने में सक्षम साबित होंगे। वे राजनीति और प्रशासन के मंजे हुए खिलाड़ी हैं, लगभग पांच दशकों से राजनीति में हैं, उपराष्ट्रपति रहे हैं, कई राष्ट्रपतियों को करीब से देखा-जाना है। ऐसे में बाइडेन से देश-दुनिया की उम्मीदें क्यों नहीं होंगी!

तमाम ऐसे घरेलू और वैश्विक मुद्दे हैं जिन पर अमेरिका को नए सिरे से काम करना होगा। आज अमेरिका की छवि एक दादागीरी करने वाले देश की बनी हुई है और यह अशांति को जन्म दे रही है। नए निजाम को अब ईरान, उत्तरी कोरिया जैसे मुल्कों के साथ नए सिरे से संतुलित विदेश नीति पर चलने की जरूरत है। चीन के साथ कैसे तालमेल बैठाना है, यह और भी जटिल मसला है। ट्रंप के कार्यकाल में इन देशों से जिस तरह का टकराव बढ़ा, वह किसी युद्ध से कम नहीं था। जलवायु संकट, हाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन से अलग होने, शरणार्थियों के मुद्दे भी अहम हैं।

आतंकवाद के मुद्दे पर अमेरिका को दो मुंही नीति को त्यागना होगा। वीजा नीति को लेकर ट्रंप प्रशासन के फैसलों से कई देश परेशान हैं। एच-1बी वीजा को लेकर लाखों प्रवासी संकट में हैं और इससे भारतीयों के हित सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। हालांकि बाइडेन भारत के साथ अच्छे रिश्तों का संकेत वे दे चुके हैं।

कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति बनाना भारतीय मूल के लोगों और अश्वेतों के लिए सकारात्मक संदेश है। लेकिन अमेरिकी में नस्लीय भेदभाव और हिंसा की घटनाएं शर्म से सिर झुका देती हैं। अब बाइडेन कैसे अमेरिका का मस्तक ऊंचा करते हैं, यह आने वाला वक्त बताएगा।