कोई भी लोकतांत्रिक देश अपनी जमीन से किसी दूसरे देश के खिलाफ गतिविधियां चलाने, किसी समुदाय की आस्था को चोट पहुंचाने, पूजा स्थलों में तोड़फोड़ करने का समर्थन नहीं करता। मगर पिछले कुछ समय से जिस तरह अमेरिका और कनाडा में खालिस्तान समर्थक संगठन खुलेआम भारत-विरोधी गतिविधियां संचालित कर रहे हैं, वहां रह रहे लोगों की हिंदू आस्था पर चोट पहुंचाने का प्रयास करते देखे जा रहे हैं, उससे इन देशों के लोकतांत्रिक मूल्यों पर ही सवाल गहरे हुए हैं।
अमेरिका के कैलिफोर्निया में शुक्रवार को फिर एक हिंदू मंदिर की दीवारों पर खालिस्तान समर्थक नारे लिख कर उसे विरूपित कर दिया गया। इस घटना से पखवाड़ा भर पहले वहीं के स्वामिनारायण मंदिर में तोड़फोड़ की गई थी। उसी राज्य के एक मंदिर में चोरी की गई। इस तरह पिछले दो हफ्तों के भीतर तीन बड़ी घटनाएं हो गईं। अब वहां का प्रशासन इन घटनाओं की जांच कर रहा है।
मगर जांच की औपचारिकताएं तो हर घटना की शिकायत पर निभाई ही जाती हैं। असल सवाल है कि क्या इससे वहां पूजा परिसरों की सुरक्षा का भरोसा बन सकेगा। अगर कैलिफोर्निया की पुलिस सचमुच पूजा स्थलों की सुरक्षा को लेकर गंभीर होती, तो स्वामिनारायण मंदिर में हुई तोड़फोड़ के बाद ही सतर्क हो गई होती।
मंदिरों पर हुए हमलों में यह तथ्य किसी जांच का विषय नहीं है कि उन्हें किन लोगों ने अंजाम दिया। खालिस्तान समर्थक संगठन अमेरिका और कनाडा में अपनी पूरी पहचान के साथ सक्रिय हैं। भारत इसे लेकर कई बार चिंता जता चुका है। मगर अब लगता है कि अमेरिका और कनाडा के लिए खालिस्तान समर्थक अलगाववादी कोई चिंता का विषय नहीं रह गए हैं।
निज्जर की हत्या के बाद कनाडा सरकार ने आरोप लगाया था कि उसमें भारतीय खुफिया एजंसी का हाथ था। हालांकि बार-बार मांगे जाने के बाद भी वह भारत के सामने इसका कोई सबूत नहीं पेश कर सका है। उसके बाद अमेरिका ने आरोप लगाया कि भारत के एक अधिकारी ने पन्नू की हत्या की सुपारी दी थी। इस मामले में उसने एक व्यक्ति को गिरफ्तार भी कर लिया।
इन घटनाओं के बाद स्वाभाविक ही खालिस्तान समर्थकों में आक्रोश है और उन्होंने भारत-विरोधी गतिविधियां तेज कर दी हैं। यह सब जानते हुए भी न तो अमेरिका में और न कनाडा में इन अलगाववादी तत्त्वों पर काबू पाने की कोई कोशिश की गई है। उसी का नतीजा है कि खालिस्तान समर्थक वहां हिंदू आस्था पर चोट करके अपनी ताकत दिखाने का प्रयास कर रहे हैं।
हालांकि खालिस्तान समर्थकों के प्रति अमेरिका और कनाडा का यह नरम रवैया कोई नई बात नहीं है। कनाडा में पहले भी कई ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें उपद्रवियों ने राजनयिक ठिकानों की सुरक्षा को चुनौती दी, उच्चायोग से भारत का झंडा उतार फेंका, राजदूत और दूसरे राजनयिकों को कार्यक्रमों में हिस्सा नहीं लेने दिया। यहां तक कि भारतीय सभ्यता को अपमानित करने की मंशा से कार्यक्रम आयोजित किए, जुलूस निकाले।
हर मौके पर भारत की तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया दी गई, खालिस्तान समर्थकों पर नकेल कसने की अपील की गई। मगर कनाडा सरकार ने हर अपील को अनसुना किया। अमेरिका भी चुप्पी साधे कनाडा का समर्थक बना रहा। इसी का नतीजा है कि भारत विरोधी गतिविधियां संचालित करने वाले संगठन इन देशों में निर्भय बने हुए हैं। मगर इस तरह खालिस्तान समर्थकों के उपद्रव को प्रश्रय देकर अमेरिका और कनाडा दुनिया में अपने लोकतांत्रिक होने का ढिंढोरा कब तक पीट सकेंगे।