अमूमन हर बड़ी दुर्घटना के बाद उसकी जांच और कार्रवाई की मांग की जाती है, सरकारों की ओर से यह सुनिश्चित करने का दावा किया जाता है। लेकिन पिछले तमाम साल और हादसे इस बात के उदाहरण रहे हैं कि ज्यादातर मामलों में सरकार की ओर से तात्कालिक प्रतिक्रिया और सक्रियता के अलावा जमीनी स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते। नतीजतन, आए दिन एक ही प्रकृति के हादसे सामने आते रहते हैं।
गुजरात के मोरबी में हुई पुल दुर्घटना के बाद प्रधानमंत्री ने इसी बात की ओर ध्यान दिलाया है कि इस त्रासदी से संबंधित सभी पहलुओं की पहचान करने के लिए एक ‘विस्तृत और व्यापक’ जांच हो और उससे मिले प्रमुख सबक को जल्द से जल्द अमल में लाया जाए। गौरतलब है कि रविवार को मोरबी में एक झूला पुल के टूट जाने से नदी में गिर कर एक सौ पैंतीस लोगों की मौत हो गई थी।
इस हादसे में जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों के दुख को अब सिर्फ कम करने की ही कोशिश की जा सकती है। इस लिहाज से देखें तो प्रधानमंत्री ने खुद घटनास्थल पर जाकर और घायलों से मुलाकात कर पीड़ितों के दुख पर मरहम लगाने की कोशिश की। मगर इसका प्राथमिक हल यही होगा कि हादसे की जांच की जाए, दोषियों की पहचान हो और उन्हें सजा मिले। इसके अलावा, विस्तृत और व्यापक जांच के जो निष्कर्ष सामने आएं, उनके मुताबिक भविष्य में होने वाले सभी क्षेत्र के ऐसे निर्माण को लेकर एक ठोस नीति बने और उस पर सख्ती से अमल हो। विडंबना यह है कि ज्यादातर बड़े हादसों के बाद इस तरह की जांच और कार्रवाई के आश्वासन तो जारी किए जाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर उस पर कितना अमल होता है, यह किसी को पता नहीं चल पाता। यह बेवजह नहीं है कि एक के बाद दूसरे हादसे होते रहते हैं, लोगों की जान जाती रहती है।
दरअसल, पुलों या किसी भी सार्वजनिक उपयोग के निर्माण की जो प्रक्रिया होती है, उसमें किस तरह की जटिलताएं घुलमिल गई हैं, यह सभी जानते हैं। भ्रष्टाचार एक अघोषित व्यवस्था की तरह काम करता है, जिसमें किसी ढांचे या परियोजना के लिए सरकार की ओर से जारी रकम में से कितना और किस तरह खर्च किया जाता है, इसका अंदाजा किसी पुल या निर्माण के गिर जाने के बाद होता है। कुछ समय पहले मोरबी पुल की मरम्मत हुई थी, मगर उस काम की जांच और उसके पूरी तरह दुरुस्त होने की पुष्टि के लिए किसी नियमित तंत्र को तैनात नहीं किया गया।
जबकि किसी नए पुल या निर्माण का नियमित रखरखाव भी इस स्तर का होना चाहिए, जिससे उसका उपयोग आम लोगों के लिए पूरी तरह सुरक्षित हो। लेकिन औपचारिक व्यवस्था के मुकाबले व्यवहार में ऐसा कोई तंत्र हर नियम पर सख्ती से अमल को सुनिश्चित करने के लिए नियमित तौर पर काम नहीं करता, ताकि कोई परियोजना भ्रष्टाचार से पूरी तरह मुक्त हो। अगर केवल मोरबी पुल का उदाहरण रखा जाए तो हालत यह है कि मरम्मती या दुरुस्त होने से लेकर उस पर जाने वालों की तादाद सीमित करने और इसके साथ-साथ वहां बचाव का कोई इंतजाम नहीं होने जैसी स्थितियां बताती हैं कि किस-किस स्तर पर लापरवाही बरती गई। और भी अनेक पहलू हैं, जो व्यापक जांच में सामने आ सकते हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री की राय की अहमियत यही हो सकती है कि समूचे तंत्र को दुरुस्त करने के लिए हर स्तर पर जरूरी कदम उठाए जाएं।