पटाखा निर्माण सदा जोखिमभरा काम होता है। ऐसी जगहों पर काम करने वालों के लिए विशेष सुरक्षा व्यवस्था की दरकार होती है। मगर हमारे यहां अधिकतर पटाखा कारखाने अव्वल तो अवैध रूप से चलाए जाते हैं और जो पंजीकृत हैं, उनमें भी सुरक्षा के भरोसेमंद उपाय नहीं किए जाते। यही वजह है कि छोटी-सी चिनगारी भी उन जगहों पर बड़े हादसे का रूप ले लेती है।

मध्य प्रदेश के हरदा में पटाखा कारखाने में लगी आग इसका ताजा उदाहरण है। इस घटना में ग्यारह लोगों की मौत हो गई और एक सौ चौहत्तर लोग घायल हो गए। सरकार ने घायलों के इलाज का प्रबंध कराया और मृतकों के परिजनों को मुआवजे की घोषणा करके जांच का आदेश दे दिया, जैसा कि ऐसे हर हादसे के वक्त देखा जाता है।

मगर यह सवाल अपनी जगह बना हुआ है कि पटाखा कारखानों में होने वाले ऐसे हादसों को रोकने के लिए पुख्ता इंतजाम कब होंगे। पहले दिवाली के समय किसी लापरवाही के चलते ऐसे हादसे हो जाया करते थे, अब साल भर ऐसी घटनाओं की खबरें आती हैं।

दरअसल, पटाखा बनाने का कारोबार काफी बड़े पैमाने पर होने लगा है, इसलिए कि इसकी खपत वर्ष भर बनी रहती है। शादी-ब्याह से लेकर अनेक पर्व-त्योहारों, क्रिकेट आदि के खेलों के समय भी पटाखे फोड़ने और आतिशबाजी का चलन बढ़ता गया है। पहले कुछ जगहों पर पटाखे बनते थे, जहां से पूरे देश में उनका वितरण हुआ करता था, अब हर राज्य में पटाखों के कारखाने खुल गए हैं।

पिछले वर्ष बिहार में पटाखा कारखाने में भयावह विस्फोट हुआ था, जिससे आसपास के मकान भी ढह गए। वह कारखाना थाने से सटी जगह पर अवैध रूप से चलाया जा रहा था। कायदे से पटाखे बनाने के लिए लाइसेंस लेना जरूरी होता है, मगर ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि चोरी-छिपे पटाखे बनाए जाते हैं।

उनके लिए इतने बड़े पैमाने पर बारूद और दूसरी सामग्री किस प्रकार उपलब्ध होती है, इस पर शायद नजर नहीं रखी जाती। दिवाली के मौके पर पटाखे से फैलने वाले प्रदूषण को लेकर चिंता जताई जाती है, मगर बाकी समय इसे लेकर प्राय: चुप्पी ही बनी रहती है। जब तक पटाखा निर्माण को लेकर कोई व्यावहारिक उपाय नहीं किया जाता, ऐसे हादसों पर अंकुश लगाना कठिन बना रहेगा।