इसके बाद अगर वह मामला कानूनी प्रक्रिया के दायरे में चला जाता है तब उसके निपटारे में सालों-साल लग जाते हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि देश की अदालतें पहले ही मुकदमों के बोझ से दबी हैं और बहुत सारे मुकदमे सिर्फ इस वजह से कई-कई साल तक खिंचते रहते हैं।

ऐसे में किसी परियोजना के कार्यान्वयन के दौरान अगर किसी विवाद की वजह से काम रुकता है और मामला अदालत में पहुंचता है तो उस पर अमल में आने वाली बाधाओं के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है। यही वजह है कि केंद्र सरकार ने अब बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं को पूरा करने के रास्ते में खड़ी होने वाली बाधा को दूर करने की पहल की है।

विधि मंत्रालय ने राज्य सरकारों को यह सुझाव दिया है कि वे ऐसी परियोजना से जुड़े विवादों के जल्द निपटारे के लिए विशेष अदालतें गठित करें। इस संदर्भ में इलाहाबाद, कर्नाटक और मध्यप्रदेश के उदाहरणों के मद्देनजर विधि मंत्रालय ने अन्य उच्च न्यायालयों को सुझाव दिए हैं कि वे आधारभूत संरचना परियोजना के मुकदमे की पहले से सुनवाई कर रही विशेष अदालतों के लिए किसी एक दिन को विशेष दिवस के रूप में तय करें।

करीब दो साल पहले बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं से संबंधित कानून में संशोधन के दौरान कहा गया था कि देश और राज्यों में कारोबारी सुगमता की रैंकिंग सुधारना बेहद महत्त्वपूर्ण है। इसकी मुख्य वजह यह थी कि किसी योजना को मंजूरी मिलने और उस पर काम शुरू होने के बाद कोई अड़चन खड़ी होती है तो ऐसे में निवेशकर्ताओं का उत्साह ठंडा पड़ता है।

फिर ऐसे मामले दूसरे निवेशकर्ताओं के लिए उदाहरण का काम भी करते हैं। स्वाभाविक ही इसका असर विकास पर पड़ता है। ऐसे तमाम उदाहरण देखे जा सकते हैं जिनमें किसी सड़क के निर्माण के बीच में कुछ खास जगह को लेकर विवाद खड़ा हो जाता है। फिर उस विवाद का अंतिम निपटारा होने तक सिर्फ उस कुछ जगह के लिए वह पूरा काम सालों अधूरा पड़ा रहता है।

इससे न केवल उस योजना का असर अपने मूल रूप में सामने नहीं आ पाता, बल्कि उसकी लागत में भी काफी बढ़ोतरी हो जाती है। ऐसी स्थिति में वे परियोजनाएं भी अधर में लटक जाती हैं, जो विकास के बुनियादी पहलुओं से जुड़ी होती हैं। जाहिर है, इसका खमियाजा अंतिम तौर पर आम जनता को ही उठाना पड़ता है।

यों आधारभूत ढांचे के विकास और शहरों के आधुनिकीकरण में तेजी लाने के मकसद से कई ऐसी व्यवस्थाएं की गई हैं, जिससे कारोबारी सुगमता की राह में बाधाओं को कम किया जा सके। मगर आज भी देश भर में भूमि और संसाधन से जुड़े विवादों की वजह से कई औद्योगिक और विकास परियोजनाएं लंबित पड़ी हैं।

हालांकि बुनियादी ढांचे से जुड़ी ज्यादातर परियोजनाएं चूंकि स्थायी निर्माण की प्रकृति की होती हैं, इसलिए उन पर काम शुरू होने से पहले ही कुछ सावधानी जरूर बरती जा सकती है। अव्वल तो किसी भी परियोजना की शुरुआत के पहले ही सभी तरह की आशंकाओं और सवालों का समाधान कर लिया जाना चाहिए, लेकिन अगर किन्हीं स्थितियों में बाद में विवाद उभरता भी है तो उसके शीघ्र निपटारे के लिए उचित व्यवस्थागत ढांचा होना चाहिए। विधि मंत्रालय के ताजा सुझावों को इसी आलोक में देखा जा सकता है।