मीनाक्षी सोलंकी
इस बार नए वर्ष की शुरुआत पर सेना के जवानों के अलावा डॉक्टर, पुलिसकर्मी, सफाई कर्मचारी और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी भेंट स्वरूप उपहार दिए गए और उनके लिए शुभकामनाएं भेजी गर्इं। अपने देश में सामाजिक मेल-मिलाप और उपहारों का आदान-प्रदान एक सामान्य चलन है। यह प्राचीन काल से कायम है। लेकिन जैसे-जैसे काल बदलता है, घटनाएं घटती हैं, उपहारस्वरूप दी गई वस्तुओं की महत्ता और मूल्य में परिवर्तन आता है। हालांकि अगर कभी कुछ वस्तुओं को संरक्षित किया गया हो, तो अक्सर वे पुरानी संस्कृति का प्रतीक बन जाती हैं।
ऐसे में मुझे हमारे पूर्वजों को भेंट स्वरूप दिए गए एक टिन के डिब्बे का किस्सा याद आता है। यों ज्यादातर महिलाओं के लिए एक डिब्बे का मूल्य मात्र भंडारण या उपयोगिता मद से अधिक कुछ नहीं रहता। वह कान का कुंडल हो या कलाई का कंगन, अक्सर हमने अपनी दादियों और माताओं को दैनिक आधार पर रात बिस्तर पर जाने से पहले सोने, चांदी, पीतल आदि के तमाम आभूषण उतार कर लकड़ी या धातु के छोटे डिब्बों के अंदर रखते देखा है।
वे दिनभर उन डिब्बों को अनदेखा कर तब तक याद नहीं करतीं, जब तक उनमें आभूषण जमा करने का समय न हो गया हो। लेकिन वह पांच इंच का टिन का डिब्बा (बॉक्स) सिर्फ एक उपयोगिता मद ही नहीं, पुरावस्तु स्वरूप युद्ध का एक गवाह भी था। उसकी सतह पर संक्षारण द्वारा महीन बदरंग परत के साथ-साथ खून में लिप्त हजारों भारतीयों की कहानियां भी लिखी हुई थीं।
दरअसल, इस डिब्बे को गुलामी के कालखंड में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान बनाया गया था। इस युद्ध में अविभाजित भारत से दस लाख से अधिक नागरिकों ने अपनी सेवाएं दी थीं। उनमें बहुत सारे किसान और आदिवासी थे, जिन्हें गोरी हुकूमत द्वारा गांवों से चुन कर औपनिवेशिक सैनिकों के रूप में लड़ने के लिए विदेश भेजा गया था। न तो उन्होंने अपने गांव के बाहर की दुनिया देखी थी, न ही वे युद्ध और हथियारों की भाषा जानते थे। लेकिन उन्होंने योद्धाओं की तरह खूब जौहर दिखाए। कइयों को उच्च वीरता पदक प्राप्त हुए, लेकिन कई सैनिक कभी वापस लौट कर नहीं आए।
सन 1914 में, यानी युद्ध के प्रथम वर्ष में क्रिसमस और नए साल से कुछ महीने पहले अस्पतालों का दौरा करते हुए घायल सैनिकों को देख कर इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम की सत्रह वर्षीय बेटी राजकुमारी मैरी ने त्योहार के अवसर पर युद्ध में सेवारत प्रत्येक नाविक और सैनिक को उपहार दिए जाने की इच्छा जाहिर की। शूरवीरों के सेवा-भाव और समर्पण के लिए सम्मान देने और उनका मनोबल बढ़े, इसी कामना के साथ यह पहल की गई थी।
इसी के अनुरूप ‘सैनिक और नाविक क्रिसमस फंड’ के लिए दान इकट्ठा किया गया और उपहारों की समयानुसार आपूर्ति और वितरण के लिए समिति का निर्माण किया गया। उपहार के रूप में एक टिन का डिब्बा दिया गया।
डिब्बे के केंद्र में राजकुमारी मैरी का उभरा हुआ रूप बना हुआ था और ऊपरी हिस्से पर अंग्रेजी में ‘इम्पेरियम ब्रिटैनिकम’ और निचले हिस्से पर ‘क्रिसमस 1914’ उत्कीर्ण था। इसके अलावा, दोनों किनारों पर इंग्लैंड के सहयोगी देशों के नाम उत्कीर्ण थे- बार्इं ओर फ्रांस, बेल्जियम और सर्बिया, दार्इं ओर रूस, जापान और मोंटेनेग्रो। इन डिब्बों में विभिन्न प्रकार की सामग्री समाहित कर इंग्लैंड के अतिरिक्त अन्य औपनिवेशक सैनिकों को भी वितरित किया गया।
धूम्रपान करने वालों को सिगरेट, तंबाकू, लाइटर और गैर-धूम्रपान करने वालों को एसिड की गोलियां, खाकी लेखन-सामग्री और बुलेट पेंसिल मिली। लेकिन विभिन्न अल्पसंख्यक समूहों के धर्म और आहार नियमों का सम्मान करते हुए भारतीयों के लिए उपहारों में बदलाव किए गए। गोरखाओं को ब्रिटिश सैनिकों के समान उपहार मिले और सिखों के लिए डिब्बों में मसाले और मिश्री और मुसलिम जनजाति ‘भिश्ती’ के लिए मसाले समाहित किए गए।
यों उपहारों को क्रिसमस 1914 तक वितरित करने का निर्णय लिया गया था, लेकिन बड़ी संख्या में प्राप्तकर्ताओं के कारण यह असंभव रहा। भारतीय सैनिकों को ये टिन के उपहार 1915 की जनवरी और उसके बाद के महीनों तक ही प्राप्त हुए और उनके डिब्बों को सामग्री के अलावा ‘विजयी नव वर्ष’ के ग्रीटिंग कार्ड से सुसज्जित किया गया।
तत्कालीन समय की यह घटना एक अनुस्मारक स्वरूप बताती है कि निकृष्टतम काल में भी उपहारों का आदान-प्रदान एक विशेष कड़ी रही है। आज यह टिन का उपहार अपने भावनात्मक संबंधों के लिए शहीदों के परिवारों से लेकर विश्व प्रसिद्ध संग्रहालयों में एक अटूट स्थान प्राप्त कर चुका है।
इसे देख कर अपने पूर्वजों के पराक्रम पर गर्व करते भारतीयों द्वारा की गई टिप्पणियां इस बात की प्रतीक हैं कि कभी-कभी उपहार में दी गई वस्तुएं अनुभव से अधिक मूल्यवान बन जाती हैं। ये वे वस्तुएं होती हैं जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी, ऋतुओं के बदलने के बावजूद ऐसी मजबूत यादें संजो कर रखती हैं और हमें हमेशा हमारे प्रियजनों की याद दिलाती रहती हैं।

