मलयाली फिल्म की नई अदाकारा प्रिया वरियर का वीडियो पिछले दिनों में सबसे बड़ा हिट रहा है। इसने कई देशी-विदेशी मशहूर हस्तियों के रिकॉर्ड्स को तोड़ा है। वीडियो मात्र छत्तीस सेकेंड का है। यह फेसबुक और सोशल मीडिया की ताकत को भी दर्शाता है कि यहां क्लिप अपलोड किया गया और वह रातोंरात वायरल हो गया। राजनेताओं के साथ प्रिया प्रकाश के इस वीडियो क्लिप के ‘मेम्स’ बनाए जा रहे हैं। प्रिया और उसके सहअभिनेता रोशन अब्दुल रउफ की चुलबुली अदाएं देखने वाले का मन मोह रही हैं और मीडिया की भाषा में ‘नेशनल क्रश’ बन गई हैं। इस वीडियो को देखने वाले दर्शक से कोई नहीं पूछ रहा कि उसे इस वीडियो में क्या अच्छा लग रहा है। प्रिया के साक्षात्कार से धन्य होने वाले चैनल नहीं पूछ रहे या बता रहे कि इस वीडियो में ऐसा क्या दिख रहा है कि वह सबका पसंदीदा बन गया। मोहब्बत और शरारत की अदाएं पहले भी आई हैं, देखी गई हैं लेकिन इतने लाइक्स दो दिन में मिलना, इतना देखा जाना और पसंद किया जाना, शायद पहली बार हो रहा है। यह भी ध्यान रखिए कि वीडियो क्लीपिंग चौदह फरवरी (वैलेंटाइन डे) के दो दिन पहले जारी किया गया। स्कूली जीवन की पृष्ठभूमि में किशोर प्रेम का यह वीडियो पसंद किया जा रहा है, तो सोचने वाली बात है कि आखिर इसमें पसंद की जाने वाली बात कौन-सी है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि वर्तमान समय में प्रेम और प्रेम को लेकर समझ के भिन्न-भिन्न आयाम मौजूद हैं। एक ही समय और समाज में लखनऊ विश्वविद्यालय की खबर भी आती है कि वहां प्रशासनिक आदेश से विश्वविद्यालय के गेट पर वैलेंटाइन डे पर विद्यार्थी विश्वविद्यालय परिसर में न आ सकें, इसलिए ताला जड़ दिया गया है। उच्च शिक्षा संस्थानों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के अभिभावकों को चेताया गया कि वे चौदह फरवरी (वैलेंटाइन डे) पर अपने बच्चों को विश्वविद्यालय न आने दें, घर में रखें। इस तरह की अभिभावकीय निगरानी स्कूलों में हुआ करती थी, अब वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे वयस्क विद्यार्थियों के जीवन में भी घुसी चली आ रही है। ऐसा समाज हम बना चुके हैं कि जिसमें विद्यार्थी कब ‘बच्चा-बच्ची’ बन जाते हैं, पता नहीं चलता। ऐसे में स्कूल की पृष्ठभूमि पर बनी इस प्रेम कहानी का हिट होना गौरतलब है। अचानक संदेह होने लगता है, हम बदल तो नहीं गए। सामाजिक समझदारी और परिपक्वता बढ़ने तो नहीं लगी। पर यह ध्यान करते ही कि यह खाप पंचायतों वाला समाज है, धार्मिक और जातिगत कट्टरता वाला समाज है, संदेह को काफूर होते समय नहीं लगता।
टेलीविजन और सिनेमा माध्यम, जिसके विस्तार के रूप में यू-ट्यूब और फेसबुक लाइव तथा अन्य दृश्य प्रसारणों को रख सकते हैं, की खूबी है कि वह सबसे बड़ा स्टोरी टेलर है। लेखक, कहानीकार, कलाकार, सब उसके आगे बौने हैं। यह बांधे रखता है। बांधता है अपनी स्टोरी के जरिए। टेलीविजन पर स्टोरी चलती है, जीवन में स्टोरी चलती है, रस बनता है, फिर रस सामाजिक संरचना में घुल कर समरस बन जाता है, स्टोरी का यह हश्र या अंत है। किसी ने गलत प्रचलित नहीं किया है कि ‘कहानी खतम पैसा हजम’! स्टोरी को पैसा वसूल करने वाला होना चाहिए। पैसा तभी वसूल होगा जब सामाजिक-रसिक उसमें आनंद लेगा। लेकिन प्रेम के लिए एक निरंतर क्रूर और असहिष्णु बनता जा रहा समाज, एक विशेष दृश्य में बन रहे प्रेम को कैसे स्वीकार कर रहा है! क्या यह समाज बदल गया या टेलीविजन और सिनेमा के दृश्य-प्रतीक परिवर्तन के वाहक बन गए। यही वह दृश्य माध्यम है जिसमें एक बांग्ला फिल्म के गाने के जरिए, लोकप्रिय संगीतकार और गायक बप्पी लाहिड़ी ने कहा था, ‘प्रेम करॉर जायगा नाइ’! इस समाज में प्रेम के लिए जगह नहीं है!
याद कीजिए सिनेमा में लड़की ने पहली बार आंख नहीं मारी है। यानी दृश्य प्रतीकों में आंख मारने के सीन रहे हैं, गाने भी बने हैं, पर कोई इतना हिट नहीं हुआ! इतना पसंद नहीं किया गया, इतनी त्वरित प्रतिक्रिया सिर्फएक छत्तीस सेकेंड के दृश्य पर नहीं आई। क्यों? ‘अंखियों से गोली मारे, लड़की कमाल रे कि अंखियों से…’ गीत याद है न! यह गीत बहुत हिट हुआ था लेकिन इसकी अदाकारा के नाज-नखरों की वैसी चर्चा नहीं हुई जैसी प्रिया प्रकाश की हो रही है। कारण एक तो यह है कि तब यह गीत सीधे सिनेमा के पर्दे पर आया था; यानी सिनेमा, सिनेमा के मीडियम में ही संप्रेषित हुआ था। वह दृश्य-विशेष के रूप में सोशल मीडिया के जरिए वायरल नहीं हुआ, इतनी जल्दी उसके ‘मेम्स’ नेताओं और अभिनेताओं के साथ बना कर सोशल मीडिया और वाट्सअप पर भेजे नहीं गए। ये नए प्रचार माध्यम हैं, इनकी गति तीव्र है, इनका दखल सीधे वर्तमान समय में है। ये रीयल टाइम कम्युनिकेशन का हिस्सा हैं। प्रभाव में फर्क का एक बड़ा कारण स्वयं मीडियम है, इसमें संदेह नहीं।