चिड़ियों के चहचहाने को ‘ट्विटर’ कहा जाता है और इसी से बना है ‘ट्वीट’। यानी चिड़िया तो ट्वीट करती ही है, अब इंसान भी ‘ट्वीट’ करने लगे हैं। चाहे नेता हो या अभिनेता, खिलाड़ी हो या प्रशासक या पत्रकार, सभी ट्वीट करते नजर आते हैं। जरा देखिए कि विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के नेताओं और प्रशासकों को क्रिकेट के आइपीएल मसले में फंसा कर ललित मोदी लंदन में आराम से बैठ कर रोज नए ट्वीट कर रहे हैं। पहले लोग विभिन्न मसलों पर अपनी राय व्यक्त करने के लिए लेखों का सहारा लेते थे।
आजकल ट्वीट करते हैं। सोशल मीडिया का चलन इतना बढ़ा है कि परंपरागत पत्र-व्यवहार लगभग बंद हो गया है और ‘एसएमएस’, ‘फेसबुक’, ‘स्काइप’ और ‘ट्वीट’ सभी ओर फैलता जा रहा है। मोबाइल और खासतौर पर स्मार्ट फोन आज सामाजिक प्रतिष्ठा का सूचक बन गया है। इस मोबाइल क्रांति के बाद अब मोबाइल फोन ज्यादातर घरों के हर सदस्य के पास हो गए हैं। मुझे तो लगता है कि वह दिन दूर नहीं, जब घर के सभी सदस्य घर में भी एक दूसरे से मोबाइल पर ही बात करेंगे। एसएमएस या वाट्सऐप का आदान-प्रदान तो घर में एक ही कमरे में बैठे कर रहे हैं।
मैं करीब पंद्रह साल पहले जब पहली बार बेटी के पास अमेरिका गया था, तब वहां हर व्यक्ति के पास मोबाइल देखा था। पर जब चार साल बाद दूसरी बार वहां गया तो मुझे साफ महसूस हुआ कि काफी लोगों का मोबाइल से मोहभंग हो गया है। उसका स्थान लैपटॉप ने ले लिया था। एक तरह से आज वही स्थिति भारत की है। जब से स्मार्ट फोन आया है तब से लैपटॉप का चलन कम हो गया है।
स्मार्ट फोन में सभी कुछ उपलब्ध है- फोन, फोटो, संदेश भेजने और पाने की सुविधा, इंटरनेट, खरीद-फरोख्त और बुकिंग की सुविधा आदि। स्मार्ट फोनधारी मजे से अपने फोन से ट्वीट करते रहते हैं। आज बड़ों से लेकर बच्चों तक के बीच ‘सेल्फी’ का चलन भी तेजी पर है। हालांकि जो अभिभावक लाड़-प्यार में अपने छोटी उम्र के बच्चों को स्मार्टफोन या ‘टैबलेट’ दिलवा देते हैं, वे बाद में इस बात से परेशान और चिंतित भी होते हैं कि उनके बच्चे हमेशा फोन पर इंटरनेट खोले बैठे रहते हैं या गेम खेलते रहते हैं।
आज के दौर में साधन संपन्न होना और जागरूक बने रहना जरूरी है। तभी सब तरफ इन सुविधाओं की प्राप्ति की होड़ मची हुई है। शासकीय स्तर पर भी ‘वाइ-फाइ’ की मुफ्त सुविधा देने के निर्णय सामने आ रहे हैं। ऐसे में जो लोग स्मार्टफोन और इंटरनेट का उपयोग नहीं करते हैं, उन्हें पिछड़ा हुआ और दकियानूसी मान लिया जाता है। कुछ प्रदेशों में तो स्मार्टफोन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य कर दिया गया है।
भले ही ‘सर्वर’ डाउन हो या इलाके में बिजली, पानी, सड़कें और अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं हों! सच यह है कि सोशल वेबसाइटों का प्रभाव टीवी और अखबारों से भी ज्यादा होता जा रहा है। कई बार ऐसा लगता है कि लोगों की खरीद-फरोख्त की हैसियत बढ़ी है और लोग जरूरत होने या नहीं होने पर भी एक से ज्यादा स्मार्टफोन खरीद लेते हैं या इंटरनेट में मशगूल रहते हैं। खबरें तो यहां तक हैं कि पैसे लेकर विज्ञापन करने वाले सितारे और खिलाड़ी आज लाखों रुपए लेकर दूसरों के लिए ट्वीट कर रहे हैं!
मैं भी यह मानता हूं कि मोबाइल और वह भी स्मार्टफोन और वाट्सऐप उपयोगी संसाधन हैं। इनसे जिंदगी बेहतर और आसान हुई है। लेकिन इनका साधन के रूप में उपयोग होना लाभप्रद है, पर उपयोग विवेकपूर्ण भी होना चाहिए। इनका सोच-समझ कर उपयोग करने की जरूरत है। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि इसी इंटरनेट की दुनिया में साइबर अपराधों को भी बढ़ावा मिल रहा है। इसलिए सबसे ज्यादा जरूरत बच्चों को ध्यान में रखने की है। इसके खतरे बड़ों के मुकाबले किसी बच्चे को ज्यादा आसानी से अपनी जद में ले सकते हैं।
करीब दस साल पहले एक अमेरिकी वैज्ञानिक ने कहा था कि वह दिन दूर नहीं, जब शब्द निरर्थक माने जाकर कूड़ेदान में फेंक दिए जाएंगे। न कोई कुछ बोलेगा, न सुनेगा। सामने वाला आपको सामने पाकर आपके विचार जान लेगा और उसने क्या कहा, यह आप भी उसके बिना कुछ कहे जान लेंगे। यानी दोनों ओर से केवल दिमाग सारा काम करेगा- बोलने का और सुनने का भी। मैं हैरान हूं कि अगर शब्द ही मर गए तो फिर लिखने और पढ़ने और बोलने का औचित्य ही नहीं बचेगा। वे दिन कैसे होंगे? हम एसएमएस, वाट्सऐप और ट्वीट वगैरह के रास्ते हम कहीं उसी ओर तो नहीं बढ़ रहे हैं!
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta