कुछ समय पहले एक दिन जब दफ्तर पहुंची, तब सब सामान्य ही लग रहा था। लेकिन तकरीबन ग्यारह बजे एक टीम में थोड़ी अफरा-तफरी जैसी दिखी। मैंने पास जाकर पूछा तो पता चला कि एक कर्मचारी आज काम पर नहीं आया है और पिछले दिन शाम से ही वह किसी भी फोन का जवाब नहीं दे रहा। उसका फोन बज कर बंद हो जा रहा था। मुझे लगा कि शायद वह यहां काम करने का इच्छुक नहीं होगा, इसलिए किसी का फोन नहीं उठा रहा है। लेकिन मैनेजर ने जब बताया कि वह अवसाद में था, तब मेरे भीतर भी घबराहट बढ़ी।

इसके बाद आनन-फानन में चार लोगों को उसके कमरे पर भेजा गया। भीतर से बंद कमरे को किसी तरह तोड़ कर खुलवाया गया। पंखे से लटके उसके शरीर ने साथियों को पूरी तरह स्तब्ध कर दिया था। पूरा दफ्तर सकते में था। किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि अचानक क्या हो गया! कुछ लोग जो उसके काफी करीबी थे, उन्हें लेकर मैं चाय पीने के बहाने बाहर निकली, ताकि उन्हें थोड़ी सांत्वना दे सकूं। मैं हैरान थी कि एक पच्चीस-छब्बीस साल का युवा, जिसके पास एक अच्छी जिंदगी थी, उसके इस कदम के पीछे कौन-सी वजह हो सकती है। मैं जानती थी कि वह अपनी टीम का सबसे बढ़िया कर्मचारी था।

जब से मैं वहां काम कर रही थी, हर हफ्ते अपने काम के बदले सबसे ज्यादा इंसेंटिव कमाने वालों में उसका नाम बार-बार आता था। कई बार बाकी कर्मचारियों को उससे प्रेरणा लेने के लिए कहा जाता था। इस तरह की तमाम बातें ऐसे कौंध रही थी कि मन बिल्कुल सुन्न-सा हो रहा था। धीरे-धीरे जो बात उभर कर सामने आई, उसने मेरी इस सोच को निराधार कर दिया कि लड़कियां संवेदनाओं के आवेश मे ऐसे कदम अक्सर उठा लेती हैं और लड़के भावनात्मक रूप से लड़कियों की तुलना में ज्यादा दृढ़ होते हैं। लगभग दो साल पहले माता-पिता ने उसकी शादी तय की थी। लड़का लड़की दोनों में से किसी को भी आपत्ति नहीं थी। शादी का दिन कुछ महीनों के बाद का तय हुआ, लेकिन सगाई कर दी गई। धीरे-धीरे दोनों के बीच बात का सिलसिला शुरू हुआ और एक दूसरे को करीब से जानने की कोशिश होने लगी।

भविष्य के लिए ऐसी पहल काफी अच्छी थी, ताकि आने वाले समय में एक दूसरे की पसंद-नापसंद और सोच के अनुसार निर्णय लिए जा सकें। बाकी सब कुछ ठीक था, लेकिन किन्हीं वजहों से लड़की को लगा कि लड़का उसके भविष्य के जीवन के लिए शायद उपयुक्त नहीं हो। अपनी पेशेवर जिंदगी में कई झंडे गाड़ने के बावजूद लड़के का अति-भावुक स्वभाव उसे जीवन में विषम परिस्थितियों का सामना करने में मुश्किल पैदा कर सकता था। हालांकि लड़की ने कोशिश की कि लड़के में व्यावहारिक दुनिया के हालात को समझने की सलाहियत पैदा हो। लेकिन संभव नहीं हो सका तो लड़की पीछे हट गई। ये बातें लड़की ने उसे बतार्इं थीं और लड़के ने दुख की स्थितियों में अपने एक दोस्त से साझा की थीं।
लेकिन यह उसके लिए किसी सदमे से कम नहीं था। उसके घर वालों ने उसे काफी समझाया और दूसरी जगह शादी करने की बात कही। मगर उसके दिल-दिमाग में एक बात बैठ गई थी। उसने यह मान लिया कि वह सब बातों के लिए श्रेष्ठ है, लेकिन जीवन जीने की कला उसे नहीं आती। घर वाले कभी प्यार से, कभी दबाव डाल कर और कभी समझा कर प्रयत्न कर रहे थे कि वह इस सदमे से बाहर निकले और निजी जीवन में आगे बढ़े। मगर आखिरकार एक होनहार युवक हार गया और उसने जान दे दी।

मैं यह बिल्कुल नहीं सोचना चाहती थी, लेकिन बार-बार यही बात दिमाग में आ रही थी कि तो क्या उस लड़की का आकलन सही था! क्या अपनी पेशेवर जिंदगी में एक कामयाब लड़का दुनियादारी को लेकर इतना कमजोर हो सकता था? उस लड़की को आखिर क्यों ऐसा लगा कि लड़के की भावुकता एक उथल-पुथल की वजह बन जाएगी और उसके बाद उसका जीवन सहज नहीं रह पाएगा? ऐसे में किसके फैसले को सही मानें! मैं बेहद ऊहापोह में थी।

ऐसी अप्रिय घटनाएं आए दिन देखने-सुनने को मिलती रहती हैं। अलग-अलग कारणों के रूप में युवा अपनी जान देने में हिचकिचा नहीं रहे। क्या किसी दूसरे की सोच और समझ को अपनी जिजीविषा पर भारी पड़ने देना उचित है? क्यों हम किसी एक रिश्ते या एक सफलता या एक उद्देश्य के आगे खुद को इतना बौना कर देते हैं कि बाकी पूरा संसार बौना हो जाता है? हर नकारात्मक सोच के आगे भी जीवन होता है, जिसमें जिंदगी को भरपूर जिया जा सकता है। जरूरत है, भावनात्मक रूप से खुद को सुदृढ़ करने की। किसी भी एक धुरी को जीवन का अंतिम केंद्र मान लेना गलत है।