स्वरांगी साने
नई चीजों, नए लोगों, नई मुलाकातों के प्रति उत्सुक रहें और दुनिया के विभिन्न हिस्सों की यात्रा की जाए, उन्हें खोजा जाए। यह खोज, अनुभव उसी तरह से होना चाहिए, जैसे हम किसी बच्चे की तरह इसका अनुभव पहली बार कर रहे हों। अपने भीतर के बच्चे को खुद के साथ एक बार फिर जोड़ लिया जाए।
आपने कई बार अपने अतीत का मुआयना किया होगा, लेकिन एक बार फिर कर लेना चाहिए। महसूस करें कि अतीत केवल बुरी स्मृतियों से नहीं भरा है। हममें से कई अपने अतीत को भुला देना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि दुश्चिंताओं की वजह अतीत की वे स्मृतियां ही हैं। अगर हर परिस्थिति में सकारात्मकता देखना शुरू नहीं किया गया, तो पीछे मुड़कर देखना वास्तव में कठिनतम हो सकता है।
अपने अतीत की भूली-बिसरी यादों को खुश रह कर देखना-परखना चाहिए। बचपन की स्मृतियों को याद करने से हम अपने भीतर के बच्चे को उमंग और उत्साह से फिर से जिंदा कर पाएंगे। हमारे भीतर का बच्चा हमेशा हमारा हिस्सा है। वह लघु रूप में कई विराट स्मृतियों को संजोए है। बचपन को याद करते हुए शायद अपने जीने का खोया मकसद भी फिर से मिल जाए, जिस मकसद के साथ हमने यह जीवन शुरू किया था।
सोचकर देखिए कि जब हम बच्चे थे, किशोर या युवा थे तो उस वक्त हर अनुभूति को हम पहली-पहली बार महसूस कर रहे थे। हो सकता है कि हर बार वह अनुभव बहुत अच्छा न रहा हो। कई बार कोई पहला काम करते हुए डर भी लगा होगा, घबराहट भी हुई होगी, दुख भी हुआ होगा या ऐसा भी लगा होगा कि हमारे साथ छल हुआ है, लेकिन हमारे पास खुश रहने के अवसर भी थे। जैसे पहली बार महसूस किया हो कि हमारी रुचि के विषय क्या हैं, शौक क्या है। याद करें कि जब पहली बार पता चला था कि हमें किताबें पढ़ना पसंद है या संगीत सुनना, तब हमने खुद को कितना प्रसन्नचित्त और शांत महसूस किया होगा। सोलह साल की उम्र के पहले प्यार-सा वह सुखद अनुभव रहा होगा!
अपने भीतर के उस भोलेपन, उत्सुकता, प्यार और उत्साह को फिर से जगाएं। अपने बाल स्वरूप को याद करें। बचकाना नहीं होना है, लेकिन बचपना को न भूला जाए। कई बातों को बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं। प्यार, खुशी और जीवन के उत्सव को खोजने-संजोने की कोशिश बेहतर है। प्रकृति याद दिलाती है कि अपने बचपन में लौटें, तितली के पीछे भागें, हिरण की तरह छलांग लगाएं।
इस तरह के उन सारे पलों को याद किया जाए, जो जीवन में उत्साह जगाते थे। अपने मन के द्वार को खोल दें और प्रेरित हो जाएं। याद किया जाए, जब उस समय कोई बड़ा हमसे पूछता था कि बड़े होकर क्या बनना चाहते हो, तब क्या जवाब देते थे। उस जवाब को प्रेरणा बना लीजिए।
किसी भी क्षण लगे कि थोड़ा बेईमान होने में क्या बुराई है, तो उसी क्षण खुद को तुरंत रोक लेना चाहिए। छद्म आवरण या नकाबपोश जीवन बड़ों के जीवन का हिस्सा हो सकता है, बच्चों का नहीं। झूठ के पैर नहीं होते। बेईमानी के रास्ते पर लंबे समय तक सफलता से नहीं चला जा सकता। उससे बेहतर है पहले ही झटके में सच कहा जाए, सच के साथ रहा जाए। एक बार किसी का भरोसा तोड़ देने पर भरोसा वापस हासिल करने में सालों लग जाते हैं। कभी-कभी तो टूटा विश्वास फिर कभी हासिल भी नहीं किया जा पाता।
गहरी सांस लेकर लिखने की आदत डालना अच्छा है। इस मसले पर सोचा-समझा जा सकता है कि ऐसा क्यों लगा कि किसी को धोखा दिया जा सकता है, धोखे में रखा जा सकता है। अगर हमारे आसपास कोई ऐसा है जो समझ सकता है, तो उससे साथ अपनी बात साझा करें। कुछ ऐसा किया जाए, जो आप बचपन में किया करते थे। जगमगाते माल में जाने के बजाय किसी बगीचे में घूम आएं। आंतरिक जागरूकता, बुद्धि, समझ को बढ़ाने से सफलता अपने आप मिलेगी। सात रंगों के इंद्रधनुष, सप्ताह के सात दिन, सात समुद्र, सात द्वीप पहले इन छोटी-छोटी बातों को भी कितनी उत्सुकता से सुनते-समझते थे, उनका आनंद लेते थे।
पांच-सात साल के बच्चे जिस तरह से खुश हो जाते हैं, जिस तरह माफ कर देते हैं, जिस तरह छोटी-छोटी बातों को भुला देते हैं। हम भी ऐसा करके देखें। अधिक बोझ लेकर चलने से जीवन का सफर बोझिल ही होगा। अपने उन सारे बोझ को कम कर दिया जाए, जो तकलीफ दे रहे हैं। थोड़ा हंसते-खेलते जीना सीखना चाहिए। बहुत भाग लिया, अब उस खिलखिलाहट को अपने जीवन में फिर ले आया जाए जो बचपन का हिस्सा थी, जो कभी जीवन का हिस्सा थी।
