बात थोड़ी पुरानी हो चली, मगर प्रसंग रोचक है, भारत में रह रही बासठ वर्षीय जेनिफर की सौतेली बहन इक्यासी वर्षीय रोएसाई से बीजिंग के एक भारतीय रेस्तरां में हुई पहली मुलाकात का। वे पहली बार जब मिलीं तो एक-दूसरे को थोड़ी देर निहारती रहीं, फिर नम आंखों से गले लगा लिया। इस मुलाकात की पृष्ठभूमि क्या थी, यह अभी साफ नहीं है। लेकिन दोनों बहनों की यह मुलाकात मर्मस्पर्शी थी।

हुआ यह था कि लगभग पचहत्तर वर्ष पहले चीनी इंजीनियर एनची पोंग ने अपनी पांच साल की बेटी को सौतेली मां के पास छोड़ कर भारत आने का निर्णय लिया था। वे भारत आए और फिर कभी लौटे नहीं। भारत में पोंग चालीस साल तक चेन्नई में रहे और वहीं उन्होंने दूसरी शादी कर ली इरीन परेरा नामक एक महिला से, जिनसे उन्हें चार संतानें हुर्इं। 1982 में पोंग का देहांत हो गया।

पोंग ने भारत में अपने बारे में बताया था कि उनकी चीनी पत्नी और छह बच्चों की दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान मौत हो गई थी। लेकिन एक बेटी रोएसाई उस समय चूंकि दादी के पास थी, इसलिए बच गई। रोएसाई ने मीडिया के सामने इस बात का खंडन किया और बताया कि दरअसल उनके पिता ने उनकी मां को तलाक दे दिया था और वह इकलौती संतान थी, जिसे वे सौतेली मां के पास छोड़ कर चले गए थे। वे बहुत मुश्किलों में अपने रिश्तेदारों के रहमोकरम पर पलीं। शादी के बाद उनकी स्थिति थोड़ी सुधर सकी।

हम इस घटना की तुलना भारत से करें तो पोंग यहां भी बहुतेरे मिलेंगे, लेकिन शायद जेनिफर न मिलें। हम अक्सर सुनते रहे हैं कि गांव से कमाने के लिए कोई व्यक्ति शहर गया और वहां भी दूसरी शादी कर ली। दिल्ली में कुछ कॉलोनियों और बस्तियों में ऐसे परिवारों से मुलाकात हुई, जिनमें यहां रहने वाली महिला ने बताया कि इनका परिवार गांव में भी है। पहले पता नहीं था। हमारे अपने गांव के भी कई परिवारों की सच्चाई यही है। कुछ तो असम से लौटे ही नहीं। इधर पत्नी ने मेहनत-मजदूरी करके बच्चों को बड़ा किया। कुछ दूसरी को भी गांव ले आए और कुछ ने उसे परदेस में ही छोड़ कर यहां भाग आना तय किया। कुछ राजनेता भी ऐसे मिल जाएंगे।

हमारे समाज में सौतेले भाई-बहन भी आमतौर पर एक-दूसरे से वैसे ही नफरत करने लगते हैं, जैसे सौतनों के बारे में सुना जाता है। लेकिन असल मुद्दा जो धोखाधड़ी का है, वह जारी रहता है। जो लोग कानूनन शादी करना चाहते हैं, उसमें इसी धोखाधड़ी से बचने के लिए यह प्रावधान रखा गया है कि शादी का आवेदन देने के बाद एक महीने तक अदालत में फोटो के साथ नोटिस लगा दी जाती है कि फलां-फलां व्यक्ति शादी करने वाले हैं।

अब तक हमारे समाज में इस तरह बिना बताए दूसरी शादी कर लेने का कारनामा पुरुष ही करते रहे हैं। पुरुषों के लिए यह अवसर का मामला होता है, जबकि महिलाएं जहां भी रहती या जाती हैं तो उन पर पूरे परिवार की निगरानी होती है। उनके लिए परिवार-समाज से बच-बचा कर यह सब कर लेना अपवादस्वरूप ही संभव हो पाता है। अक्सर भारतीय परिवारों और पारिवारिक संस्कारों को ऊंची निगाह से देखा जाता है।

कुछ अच्छाइयां हो भी सकती हैं। लेकिन संबंधों में अपारदर्शिता, विवाहेतर रिश्ते, धोखाधड़ी, गैरजिम्मेदारी आदि न सिर्फ आधुनिक समय की सच्चाई है, बल्कि एक प्रकार से यह सब भी यहां की ‘महान परंपरा’ है। आजकल जासूसी एजेंसियों की कमाई सबसे अधिक इसी में है कि वे आपके भावी जीवन-साथी की सारी हकीकत आपके सामने ‘खोज कर’ रख देते हैं। आप चाहें तो वे उन्हें अपने पूर्व हमसफर से मिलते या बात करते ‘रंगे हाथों’ पकड़ कर वीडियो के साथ दिखा देंगे।

ऐसी खबरें अक्सर प्रकाशित होती रहती हैं कि अब तलाक की संख्या सोशल मीडिया के कारण बढ़ गई है, क्योंकि साथी ढंूढ़ना आसान हो गया है। किसी गैर के साथ चैटिंग पर बने रहें और अपनी जीवन साथी तनाव में कुढ़ती रहे, शक में मर जाए या फिर अलग होने का फैसला कर ले। अगर पारिवारिक संस्कार बहुत अच्छे हैं तो यह सब कैसे होता है? अच्छे संस्कार का मतलब क्या इतना ही है कि रोज माता-पिता के पैर छूते रहें और स्तुति गाते रहें? या फिर यह कि एक व्यक्ति के तौर पर दूसरे व्यक्ति की गरिमा का खयाल रखा जाए, रिश्तों के प्रति पारदर्शी और संवेदनशील हुआ जाए? क्या अब नए पैमाने बनाने का वक्त नहीं है?

अंजलि सिन्हा

 

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