अमित चमड़िया
कुछ समय पहले मैं बिहार में सासाराम की एक सड़क से गुजर रहा था। वहीं काले घोड़े की रस्सी थामे एक व्यक्ति कंधे में टंगे छोटे लाउडस्पीकर के जरिए आवाज लगाता दिखा- ‘ऋषि-मुनियों की वर्षों की तपस्या के बाद यह बात निकल कर आई कि काले घोड़े की नाल से बनी हुई अंगूठी पहनने से इंसान की किस्मत बदल जाती है! इसके चलते उसके जीवन में खुशहाली और समृद्धि आती है और बहुत सारे रोगों का निवारण होता है!’ इसी आकर्षक प्रस्ताव के साथ काले घोड़े की नाल से बनी अंगूठी दस या बीस रुपए में बेची जाती है। यह अंगूठी काले घोड़े की नाल से ही बनी हुई है, इस बात को पुख्ता करने के लिए अंगूठी बेचने वाला व्यक्ति एक घोड़ागाड़ी अपने साथ रखता है, जिससे काला घोड़ा बंधा होता है। इस घोड़ागाड़ी में भीतर ढेर सारी अंगूठियां रखी होती हैं। ऐसे दृश्य देश के लगभग सभी छोटे-बड़े शहरों में आसानी से देखने को मिल जाते हैं। मुझे भी यह दृश्य बिहार के सासाराम और उत्तर प्रदेश के बनारस में देखने को मिला। शायद इस देश में लाखों लोगों की किस्मत हर रोज यह अंगूठी पहनने से बदलती होगी!
मैंने उत्सुकतावश अंगूठी बेचने वाले उस व्यक्ति से केवल यह पूछ लिया कि दिनभर में कितनी अंगूठी बेच लेते हो, लेकिन उसने इसका उत्तर नहीं दिया। शायद उसे डर रहा होगा कि कहीं मैं भी इस व्यवसाय में अपने हाथ आजमाने न उतर जाऊं! निश्चित तौर पर रोजाना ढेरों अंगूठियां बिकती होंगी। तभी तो कोई बरेली से सासाराम आकर इस तरह से अंगूठी बेच रहा है। रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड के आसपास भी आसानी से यह देखने को मिल जाता है, जिसमें एक तोता पंद्रह से बीस प्रकार के कागज के टुकड़ों के ढेर में से अपने द्वारा उठाए गए एक कागज के टुकड़े से लोगों की किस्मत के बारे में बताता है। ये चीजें यह बताने के लिए काफी हैं कि इस देश का समाज कितना डरा और सहमा हुआ है। इस डर की वजह से लोगों को अपनी किस्मत बदलने के लिए इन चीजों का सहारा लेना पड़ता है। यह इस बात को भी दर्शाता है कि लोगों में तार्किकता का कितना अभाव है। हाल में ही मध्यप्रदेश में कई जगहों में बारिश कराने के लिए मेंढ़क और मेंढ़की की शादी रचाई गई। जबकि वर्षा न होने के पीछे जितने भी कारण होते हैं, उनकी जानकारी हमारी किताबों में उपलब्ध है।
शायद यही वजह है कि हमारे समाज में धार्मिक स्थल के निर्माण के नाम पर किसी को लाखों रुपए के चंदे मिल जाएंगे, लेकिन अस्पताल, स्कूल और पुस्तकालय के लिए किसी से चंदा लेना बहुत मुश्किल होता है। सासाराम शहर को देख कर इसे समझा जा सकता है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान ही इस शहर में कई बड़े मंदिरों का निर्माण हो गया और अभी भी कई बन रहे हैं। लेकिन एक अच्छा अस्पताल और एक अच्छा शैक्षणिक संस्थान नहीं बना। यह एक उदाहरण भर है। ऐसी कहानी देश की अन्य जगहों में भी आसानी से मिल जाएगी।
समाज के बनने में जिन चीजों की भागीदारी जितनी ज्यादा होगी, उसी तरह का समाज हमें दिखाई देगा। हम तकनीक को लेकर तो बहुत जागरूक हो रहे हैं, लेकिन अपने विचारों और सोच को उलटी दिशा में ले जा रहे हैं। इसके चलते तकनीक और सोच में सामंजस्य नहीं बैठ पा रहा है और तकनीक हमारे ऊपर हावी हो रही है। तकनीक का इस्तेमाल हमारी सोच को एक नई दिशा देने के लिए होना चाहिए, जबकि हो यह रहा है कि तकनीक के गलत इस्तेमाल के चलते हमारी तार्किकता खत्म हो रही है। इसका ज्यादा प्रभाव समाज की नई पीढ़ी पर पड़ रहा है। दूसरी तरफ हम अपने आधुनिक होने का दंभ भरते थकते नहीं हैं। क्या एक साधारण लोहे की अंगूठी में भी इतना चमत्कारी गुण है या फिर केवल उसी लोहे की अंगूठी में जो काले घोड़े की नाल से बनी हुई है? आखिर क्या ऐसा हो जाता है उस लोहे में जब वह उस काले घोड़े की नाल से निकल कर लोगों की अंगुली में आता है?
क्या एक तोता किसी एक व्यक्ति के लिए बार-बार वही कागज उठाता है, जिसमें उसकी किस्मत बंद है? क्या इस संसार में केवल कुल बीस प्रकार की ही बातें हैं, जो लोगों के भविष्य से ताल्लुक रखती हैं? ये तो कुछ एक सवाल हैं और यह कोई बहुत वैज्ञानिक सवाल भी नहीं है कि अगर इन सवालों के जवाब हासिल करने की कोशिश की जाए तो हम अपने भविष्य के डर को खत्म कर पाएं और ज्यादा से ज्यादा तार्किक बन सकेंगे। दरअसल, हम सवालों से मुंह मोड़ने लगे हैं, चाहे वह सवाल खुद से ही क्यों न हो!