एकता कानूनगो बक्षी
अगर आसपास नजर घुमाएं तो पाएंगे कि हर पुराना पेड़ अपने पुराने पत्तों को एक समय बाद त्याग देता है और उसकी जगह नए ताजा पत्ते पल्लवित होने लगते हैं। यह एक चक्र-सा चल रहा है, जिसमें उम्रदराज पत्ते पीले होकर कुछ दिनों में झरते हुए नजर आते हैं और उनकी जगह ले लेते हैं थोड़े से कुछ मजबूत और स्वस्थ पत्ते। कुछ दिनों बाद वे भी विदा हो जाते हैं।
धीरे-धीरे पेड़ नए और मुलायम छोटे-छोटे पत्तों से भरने लगता है। ऐसा लगता है जैसे छोटे बच्चों की तरह के ये चमकीले मुलायम पत्ते नई दुनिया को देख कर उत्साहित हों, खिलखिला रहे हों। हर पुराना पेड़ लंबे समय तक खुद को ताजा और युवा बनाए रखने कि इस प्रक्रिया को बखूबी समझता है और इस विधि को लगातार अपनाता नजर आता है।
मनुष्य की प्रकृति भी इससे कुछ अलग नहीं है। यहां भी काफी समानता दिखाई देती है। शारीरिक रूप से तो पेड़ और इंसान दोनों ही धीरे-धीरे क्षरण की ओर ही बढ़ रहे होते हैं, कई तरह की दैहिक, मौसमी और मानसिक परेशानियों, स्वास्थ्य समस्याओं के चलते लगातार चुनौतियां मिलती रहती हैं। मगर ऐसे कई लोग मिल जाएंगे जो उम्र से तो युवा हैं पर मानसिक रूप से बूढ़े हो चुके हैं। इसका विपरीत भी देखने को अक्सर मिल जाता है।
ऐसे कई बुजुर्ग भी मिल जाते हैं जो उम्र को चकमा देकर चिर युवा बने रहते हैं। ये दूसरी किस्म के लोग ठीक उस पेड़ की तरह होते हैं जो बरसों से एक जगह खड़ा है और हमें हर वक्त मुस्कुराता, परिपक्व और स्वस्थ दिखाई देता है, क्योंकि वह अपने पुराने होते पीले सूखे पत्तों को समय-समय पर झाड़ देता है और उनकी जगह देता है नए चमकदार पत्तों को जो उसे पूरी तरह नया कर देते हैं।
हमारे व्यक्तित्व में भीतर के विचारों के कारण ही हमारी परिपक्वता का भी पता चलता है। हमारे विचार पेड़ के पत्तों की ही तरह होते हैं जो हमें किसी भी उम्र में देह के क्षरण के बावजूद बूढ़ा या युवा महसूस करवाने की क्षमता रखते हैं। हमारे भीतर किन विचारों का उजियारा फैला है, किन विचारों के बादलों ने निराशा का अंधेरा कर दिया है, विचारों की हवा किस दिशा से आकर हमारे मन को प्रभावित कर रही है, इन्हें थोड़ा जान-समझकर अपने जीवन के मौसम का अंदाजा हम लगा सकते हैं।
अक्सर बिन कारण का बुढ़ापा हमारे मायूस, उबाऊ, एकरसता, थके-हारे विचारों से ही उपजता है। हमें भी पेड़ की ही तरह उन्हें अपने आप से दूर करते रहना चाहिए और नए, स्वस्थ, जोश और उत्साह से भरे सकारात्मक विचारों से खुद को पूरी तरह से नया बना लेना चाहिए।
अच्छे और बुरे विचारों का आना-जाना एक सामान्य-सा चक्र है, पर मुसीबत तब होती है जब हम किसी एक विपरीत विचार या हमारी वर्तमान कठिन परिस्थिति को ही हमारे जीवन का पूर्ण अस्तित्व मान लेते हैं। जबकि एक समय बाद वैसे भी सब कुछ बदल जाता है। यहां तक कि किसी तरह का कष्ट भी या तो समाप्त हो जाता है या फिर हममें ही उससे निपटने की शक्ति पैदा हो जाती है।
दूसरे शब्दों में कहें तो तब उसका होना न होना लगातार हमारे दिमाग में विचारों के बादलों के रूप में नही घुमड़ता। इन अस्थायी विचारों के चलते हम बहुत सारा समय और उम्र का बड़ा हिस्सा निरर्थक तनाव में गुजार देते हैं। इसका बुरा असर जीवन के हर पहलू पर नजर आने लगता है। तनाव हमें कभी स्वाभाविक नहीं रहने देता।
जब कभी हम खुद को लंबे समय तक हताश, निराश विचारों से घिरा हुआ पाएं तो हमारे पास कई तरीके होते हैं उनसे निजात पाने के। मसलन, डायरी लेखन, सकारात्मक लेखों को पढ़ना, अपनों से सलाह-मशविरा लेना, अपनी पसंद के काम, अपने पसंदीदा शौक में समय बिताना। साथ ही एक और अद्भुत तरीका है जो हमें न केवल विपरीत विचारों की कैद से आजाद करता है, बल्कि हमारे भीतर नव ऊर्जा का संचार करने में भी कारगर है।
वह है अपने जीवन के बीते हुए सबसे बेहतरीन पलों को फिर से दोहराना। हमारे जीवन की खूबसूरत स्मृतियों को याद कर किसी फिल्म के सुखद अतीत से गुजरने की कोशिश करना। अपने श्रेष्ठतम समय के हमारे व्यवहार, आत्मविश्वास, मेहनत, हौसले, क्षमता के बारे में सोचना और अपने मनोबल को बढ़ाना, सब कुछ हमारे ही हाथ में होता है।
हो सके तो कभी-कभी उन पुरानी गलियों की भी वास्तविक रूप में सैर कर आना चाहिए। उन लोगों से मिलना चाहिए जो हमारे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से परिचित हैं। बीते हुए समय मे इस तरह से फिर गुजरना हमें मौका देता है खुद को एक बार फिर से ठीक तरह से समझने का, खुद की खुद से मुलाकात का, हमारी पुरानी ऊर्जा, हिम्मत, रवैये को खींच कर हमारे वर्तमान में लाने का। सच तो यह है कि हमारी मदद हर हाल में हमसे बेहतर कोई और नही कर सकता। बात इतनी-सी है कि बस पुराने हो गए कुछ पीले पड़ गए विचारों से खुद को मुक्त करना जरूरी है। नए पत्तों को मौका देना होगा। जिंदगी फिर खिलखिलाने लगेगी।