कृष्ण कुमार रत्तू

इन दिनों एक नया संसार करवट ले रहा है। नई सूचना प्रौद्योगिकी और नए राजनीतिक परिवेश में एक नई उभरती हुई दुनिया हमारे सामने है। उसने बदलते सामाजिक संदर्भ में बाजार की पहचान को और भी चमक-दमक से भर दिया गया है। चकाचौंध की इस आंधी में जीवन की छवियों में आभासी रंग किस तरह से घुसपैठ कर गया है कि उसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल हो गया है। पिछले एक दशक से जिस तरह सूचना क्रांति और नई सूचना प्रौद्योगिकी के चलते हुए जीवन में बदलाव के संकेत मिले हैं और एक नया आभासी संसार हमें दिखाई देने लगा है, वह हमारी कल्पना से बाहर की बात है।

आभासी दुनिया को अपना दोस्त मानने लगा है इंसान

पिछली पीढ़ी भी अब इस आभासी दुनिया का अनुसरण करने लगी है। आज व्यक्ति अपने जीवन की अंतिम छाया में अपनी दिनचर्या में आभासी दुनिया को अपना दोस्त मानने लगा है तो फिर सवाल उठता है कि रिश्तों की जीवंतता और आपके बुढ़ापे में अनुभव और जीवनपर्यंत सामाजिक सरोकारों के जीवन अनुभव का लाभ किस तरह से आने वाले नए समाज को एक नई दिशा देगा? आने वाली नस्लों के लिए हम क्या छोड़ कर जाएंगे?

उपभोक्ता बाजार की आवश्यकताओं के अनुसार बदल चुका है हमारा व्यवहार

हमारा जीवन-यापन, आचार-व्यवहार, सब कुछ तो इन दिनों पाश्चात्य प्रभाव के कारण और बढ़ते हुए उपभोक्ता बाजार की आवश्यकताओं के अनुसार बदल चुका है। हमारा होना और अनुभव अब यह बताता है कि नई पीढ़ी इस नई आभासी आंधी में एक नए मौसम की ओर बढ़ रही है। यह मौसम है विज्ञान की दुनिया का, जहां टेलीविजन से लेकर यूट्यूब पाडकास्ट, ट्विटर, फेसबुक और इसके साथ-साथ अन्य सूचना प्रसारण संचार के माध्यमों ने जिस तरह से दुनिया को एक छोटे मोबाइल के पर्दे पर सबको परोस दिया है, यह चौंकाने वाला है।

इन दिनों सूचना की प्रणालियों द्वारा एक नया निजाम, एक नया मौसम, रोबोट से चलने वाली दुनिया और अनुभव हमारे साथ लगभग सभी बड़े संस्थान में देखे जा सकते हैं। यूरोपीय देशों के साथ-साथ भारत जैसे देशों में भी रोबोट प्रणाली, एक नया समाज और नई वैज्ञानिक पद्धति के साथ जीवन के अनुभवों से अपना एक अलग वातावरण बनाता दिख रहा है। त्रासदी यह है कि हमारे युवा उदासीन अवस्था में जिस बड़ी संख्या में विदेश जाने लगे हैं, वह एक बहुत ही खतरनाक रुझान है। इससे प्रतिभा पलायन तो हो ही रहा है, लाखों करोड़ रुपए की एक अर्थव्यवस्था का ठोस आधार विदेश में जा रहा है। क्या कभी हमने इस तरफ सोचा है? हमारा सबका विकास कहीं कागजों में सिमट के न रह जाए।

एक मजबूत सूचना प्रणाली शायद आने वाली दुनिया में एक नई दुनिया का एक नया आकार या साकार रूप लेती हुई हमारे मन-मस्तिष्क को बदल सकती है। अगर इस बदलाव के पीछे रचनात्मकता और समाज को बचाने की एक लंबी पगडंडी को हम निर्धारित रास्ते में बदल सके तो इस सूचना तकनीक और विज्ञान के युग का एक आभासी संसार प्रतीकात्मक नहीं हो सकेगा। अलबत्ता हम रचनात्मक पहेलियों के साथ सजीव रिश्तों की एक नई बयार और नए मौसम को अपना सकेंगे।

हमारी शिक्षा और शिक्षण निजाम इस तरह की सूचना प्रणाली को अपनाकर उस आम गरीब बच्चे तक सूचना के साथ-साथ शिक्षा का एक ऐसा हुनर पहुंचा दे कि वह अपने पैरों पर खड़ा होकर रोजगार के लिए भटके नहीं। उसके भीतर विदेश में जाने की बेमानी लालसा न हो। विदेश में पर्यटन के लिहाज से जाना चाहिए, लेकिन जिस तरह आज भी देश में प्रतिभा पलायन के साथ भारत की एक दूसरी तस्वीर दिख रही है, वह चिंतनीय है।

आने वाले दिनों में जिस तरह की जीवंतता के साथ हम जीवन में अकेलापन और रोबोट प्रणाली से चलने वाली एक आभासी दुनिया यानी मोबाइल और ऐसे ही अत्याधुनिक तकनीकी की दुनिया का एक नया लोक हमारे सामने देख रहे हैं, उसमें कुछ जोड़ने की आवश्यकता है। हम इन सूचनाओं के अंबार में इस आभासी दुनिया से समाज को बचाने के लिए और समाज की विरासत को जोड़कर एक नई दुनिया बनाने के लिए क्या कर रहे हैं, जिसमें रोजगार हो, संवेदना, विश्वास हो और संबंधों का भरोसा हो, मानवीय सरोकारों की बात हो।

अगर यह नई बयार और विज्ञान की नई आंधी, आभासी दुनिया की आंधी प्रतीकात्मक रूप को छोड़कर असलियत को जीवन के नए अर्थ से जोड़ कर एक नया रचनात्मक पहलू पेश कर सके तो हम सचमुच इस सूचना प्रौद्योगिकी का वह प्रयोग करने में सफल हो सकेंगे, जो आने वाली नस्लों के लिए सचमुच का जीवन साबित हो। इसमें हम सब एक पहल कर सकते हैं। आपकी अपनी दुनिया अब आपके दिल में बसा मन-मस्तिष्क नहीं है, बल्कि मोबाइल के पर्दे पर एक नई आभासी दुनिया में सिमट रही है। अब विज्ञान के साथ ही, लेकिन मानवीयता और संवेदना की ओर लौटने की कोशिश होनी चाहिए।