कठिन परिस्थितियां हम सभी के जीवन मे कभी न कभी जरूर आती हैं। कुछ परिस्थितियों पर तो हम विवेक और संघर्ष से फतह हासिल कर लेते हैं, पर यह भी कड़वा सच है कि कई बार अनेक विकट परेशानियों में हम फंस जाते हैं, जहां हमारी सारी कोशिशें नाकाम होती नजर आती हैं। बहुत से बाहरी कारणों के चलते हम बार-बार अपनी ऊर्जा खोने लगते हैं। दूसरों से मदद की उम्मीद भी समाप्त-सी हो जाती है। गहरे अवसाद के उस दौर में हमें कुछ पल के लिए शांत बैठ कर विचार करना चाहिए कि ऐसी परिस्थिति में आगे का हमारा कदम अब क्या होना चाहिए। इसे हम व्यक्तिगत आपातकालीन प्रबंधन के रूप में देख सकते हैं। जिस वक्त हम जटिल समस्या से गुजर रहे होंगे तो उसका समाधान का रास्ता भी सामान्य से अलग ही होगा। निश्चित ही उसके लिए हमें अपने बुद्धि और विवेक का उपयोग कर अलग तरह से सोचने की आवश्यकता भी होगी।

इस तरह की आपात जरूरत कई रूप में हमारे सामने आती है। मुख्य रूप से आर्थिक, मानसिक, शारीरिक परेशानियों का मिला-जुला रूप लेकर हमारे जीवन मे यह प्रवेश करती है। ये परेशानियां एक दूसरे से जुड़ी होती हैं। इस आपात स्थिति से उबरने के लिए सबसे पहला कदम यह हो सकता है कि हम अपने मन और शरीर को उस परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार करें। हमें अपने मन और शरीर को आदेश देना होता है कि वे वर्तमान परिस्थिति को उसकी जटिलता के साथ स्वीकार करें और एक सैनिक की तरह आने वाले समय में शारीरिक परिश्रम, संघर्ष और साहस के साथ हर तरह से तैयार रहें।

हमारा शरीर ऐसी अद्भुत कृति है जब भी हम उसे ठीक से निर्देश देते हैं, वह हमारे कहे को अवश्य सुनता है, उसके अनुसार अपने को ढालता भी है। इसी तरह विपरीत परिस्थिति को भांपते हुए हमारा मन भी जरूरी उपाय सुझाने लगता है। इसीलिए असामान्य परिस्थिति में हमारे शरीर की असाधारण क्षमता को देख हम स्वयं चकित हो जाते हैं। सकारात्मक विचारों के मात्र शरीर में प्रवेश होते ही हमारा शरीर भीतर से स्वस्थ और मजबूत होने लगता है। वहीं निराशा, भय हमें कमजोर बनाते हैं।

किसी दुरूह समय में जब हम सब तरफ से हार रहे होते हैं, तब सबसे आसान होता है निराशा और अवसाद की शरण में चले जाना। लेकिन शायद इस तरह से हताश हो जाना कुछ वैसा ही माना जाएगा जैसे कि क्रिकेट का आधा मैच देखने के बाद ही हार या जीत का अनुमान लगा लेना और उसके आधार पर ही विजेता और हारी हुई टीम की घोषणा कर देना। जबकि हमने आखिरी पलों में भी बाजी को पलटते देखा है। यह चमत्कार तभी होता है जब विपरीत स्थितियों में भी लगातार बिना विचलित हुए पूरी ताकत और विवेक के साथ खेल में डटे रहा जाए। इसी रणनीति से जीवन का भी पूरा खेल जीता जा सकता है।

कठिन दौर में कई संवेदनशील, जागरूक लोग आगे बढ़ कर हर संभव मदद करते ही हैं, पर अपने आप को सकारात्मक प्रयत्नशील बनाए रखने की बड़ी जिम्मेदारी हमारी ही होती है। सहयोग की पहल और सांत्वना के शब्द जरूर हमारी मदद करते हैं, लेकिन उसकी भी एक सीमा होती है। दूसरों की परेशानियों को ठीक से महसूस करने और सही उपाय सुझाने का हुनर अभी भी बहुत कम लोगों के पास संभव होता है। होना तो यह चाहिए कि हम जीवन के अंतिम पलों में भी युद्ध का मोर्चा जीत लेने की उम्मीद से भरे रहें। कठिन परिस्थिति में संघर्षपूर्ण और जीत की अभिलाषा में अच्छी पारी खेल जाना भी जीतने के समान ही महत्त्वपूर्ण होता है।

परेशानियों के दौर में थके हुए मन और शरीर के चलते संक्षिप्त रास्ते हमें सुगम लगने लगते हैं। सफलता के गलत रास्ते हमें अपनी तरफ खींचते हैं, जिनका परिणाम घातक होता है। गलत रास्ते, मूल्य रहित या अपराध का सहारा लेकर हम भविष्य में संभावित सफलता, समृद्धि और सम्मान के दरवाजे भी हमेशा के लिए बंद कर देते हैं। ये रास्ते हमें एक ऐसी अंधेरी बंद गुफा की और धकेल देते है, जिसके भीतर आत्मग्लानि, भय और पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं होता।

विपरीत परिस्थितियों का सामना तो हिम्मत रख कर अपनी स्थिति को ठीक तरह से समझ कर ही किया जा सकता है। हमें देखना चाहिए कि हमारे पास अभी क्या मौजूद है। जो अब शेष है, हम उसकी रक्षा कैसे कर सकते हैं। सीमित संसाधनों से कैसे जीवन को धीरे-धीरे आगे बढ़ा सकते हैं। समय की मांग को समझते हुए हानि-लाभ का विवेकपूर्ण विश्लेषण कर नई संभावनाएं, नए रास्ते खोज कर बिल्कुल नई शुरुआत करने का प्रयास भी हम कर सकते हैं।

ऐसे समय में हमें अपने निर्णय किसी भी पूर्वाग्रह और समाज के दबाव से प्रभावित हुए बिना विवेकपूर्ण तरीके से अपनी परिस्थिति को समझते हुए लेने चाहिए। विपरीत परिस्थितियों में हमारे विचार, आपसी संवाद जितने स्पष्ट रहते हैं, उतनी ही उलझनें कम होती हैं। कठिन परिस्थितियों में वही हमारे हितैषी होते हैं जो हमारी समस्या और सीमा को समझें, हमारा हौसला बढ़ाएं और हमारी निजता का सम्मान करें।