अजीत कुमार
आमतौर पर हमने अपने दिमाग से सोचना छोड़ दिया है। जीवन, समाज और राष्ट्र के प्रति हम अपनी समझ सोशल मीडिया से बनाने लगे हैं। गंभीर से गंभीर विषय पर हमारे विवेक का निर्माण भीड़ करने लगी है। वर्तमान समय के सबसे बड़े विषय विमुद्रीकरण पर भी हमारी राय बंटी हुई है। टीवी और अखबार दो अलग-अलग मत प्रसारित और प्रचारित कर रहे हैं। ऐसे में आम जनता की प्रतिक्रिया को जानने में भी कठिनाई हो रही है। लोगों को इतना तो समझ में आ रहा है कि यह देश में काले धन के बढ़ते प्रभाव को नष्ट करने के लिए उठाया गया यह एक कदम है। लेकिन जैसे ही यह खबर मिलती है कि एटीएम या बैंक की शाखा में लोग बारह-तेरह घंटे लाइन में भूखे-प्यासे खड़े हो रहे हैं और कइयों की मृत्यु भी हो रही है तो लोगों के विचार बदलने लगते हैं।
मैं तिरुवनंतपुरम में रहता हूं और बैंक में ही काम करता हूं। मेरे लिए नोट बदलना कोई बड़ा काम नहीं है, कम से कम अपने लिए। मगर राष्ट्रहित में लिए गए इस फैसले पर मिल रही प्रतिक्रियाओं को जानने के लिए मैं जानबूझ कर एक बार लाइन में खड़े होकर यह देखना चाहता था कि इस फैसले को एक आम आदमी किस रूप में ले रहा है। मैं रात करीब आठ बजे लाइन में लगा। मेरे आगे कुछ लोग खड़े थे और पीछे सात-आठ लोग ही थे। मैंने सोचा कि एक बार लोगों की राय ली जाए और इसी इरादे से मैंने अपने ठीक आगे खड़े एक अधेड़ व्यक्ति से पूछा कि अंकल कैसा है यह फैसला!उन्होंने मलयालम में कहा कि यह एक तरह से तुगलकी फरमान है जिसका कोई लाभ नहीं होने वाला। मैंने तुरंत पूछ लिया कि नोटबंदी के फैसले में ऐसा कौन-सा तुगलकी फरमान आपको दिखाई दे रहा है। उनके जवाब ने मुझे भी सोचने पर विवश कर गया कि क्या सही में यह फैसला ठीक नहीं है? इस बीच लाइन पीछे लंबी हो गई थी, लेकिन लोग चुपचाप खड़े होकर प्रतीक्षा कर रहे थे। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने बताया कि चौदहवीं शताब्दी के मध्य में मुहम्मद बिन तुगलक अपनी राजधानी केवल इस असुरक्षा से दिल्ली से दौलताबाद ले आया कि उसे यह डर था कि कहीं मंगोल आक्रमणकारी हमला न कर दें। फिर मैंने उनसे पूछा कि क्या किसी सुल्तान को अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, ताकि उसकी सल्तनत सुरक्षित रह सके? मुझे लगा कि मैंने अभी सही सवाल पूछा है जिसका जवाब शायद ही ये दे पाएं। उन्होंने पहले अपनी बात सुन लेने को कहा।
उन्होंने बताया कि मुहम्मद बिन तुगलक ने अपनी जनता को बिना विश्वास में लिए अचानक फैसला ले लिया कि वह तुगलक सल्तनत की राजधानी उत्तर भारत से दक्षिण ले जाएगा। सुल्तान के इस फैसले पर लोगों की प्रतिक्रिया कुछ-कुछ इसी तरह की थी जैसी प्रतिक्रिया नोटबंदी पर लोग दे रहे हैं। तुगलक साम्राज्य के लोगों को यह फैसला मानना तो था ही, क्योंकि दूसरा कोई चारा नहीं था। लोग रातों-रात अपना बोरिया-बिस्तर बांध कर दक्षिण भारत चल पड़े। कुछ लोग रास्ते में ही रह गए, कुछ लोगों ने दम तोड़ दिया, और कुछ सही सलामत पहुंच गए। लोगों में गुस्सा इस बात का कम था कि राजधानी परिवर्तन जैसा फैसला रातों-रात लेने के बाद उनको कष्ट हुआ, बल्कि गुस्सा इस बात पर अधिक था कि बहुत जल्दी ही सुल्तान ने अपनी राजधानी दौलताबाद से फिर दिल्ली लोने की घोषणा कर दी। उन्होंने आगे कहा- ‘अब एक हजार का नोट बंद करके दो हजार का नया नोट लाना और पांच सौ की जगह एक नए पांच सौ का नोट लाना काले धन को कहां तक रोक पाएगा, तुम ही मुझे बताओ।’
यह सवाल मेरे लिए था और मैं अपना माथा खुजाने के सिवाय कर भी क्या सकता था! लोगों की भीड़ में कुछ कह रहे थे कि हम इस फैसले को स्वीकार करते हैं और चाहे जितना भी कष्ट क्यों न उठाना पड़े, हम उठाएंगे। देश के प्रधानमंत्री द्वारा लिया गया यह निर्णय हमारी अर्थव्यवस्था से काले धन और जाली नोट को खत्म करने में अपनी भूमिका अदा करेगा, लेकिन इसका कार्यान्वयन सही तरीके से नहीं हो सका। इस बीच मैं सोच रहा था कि केरल साक्षर राज्य है, लेकिन उन राज्यों का क्या जिनमें अपना पैसा निकालने और जमा करने वालों को बैंक का एक फॉर्म भी भरने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है।
किसी तरह लगभग एक घंटा इंतजार करने के बाद मैं एटीएम के दरवाजे तक पहुंचा। मगर जैसे ही पहुंचा, अंदर से वही अंकल जो तुगलकी फरमान वाला उदाहरण मुझे समझा रहे थे, गालियां देते हुए बाहर निकले। मैं समझ गया था कि अंदर पैसा खत्म हो गया है। मैं चुपचाप लाइन से बाहर निकल गया कि चलो, पैसे अब अपने बैंक से बिना लाइन में लगे ही निकालूंगा।

