पिछले पांच सालों के दौरान यमुना तट से लेकर अरब सागर तक आना-जाना निरंतर जारी रहा। गोवा जाने और राज्यपाल के पद का कार्यभार संभालने से पूर्व मित्रों ने कहा था कि गोवा तो भारत की धरती पर स्वर्ग है। किसी ने कहा कि यमुना के किनारे दिल्ली में रहने वाली महिला अरब सागर के किनारे जा रही है। इससे पहले मेरे मन में दोनों की तुलना कभी नहीं आई थी। इतना जरूर था कि उस व्यक्ति के मन में शायद यमुना का कभी मीठा रहे पानी और अरब सागर के खारे पानी का स्वाद पसरा पड़ा था।
मेरे मन में भी कौतूहल था कि भारत के पश्चिमी तट पर अरब सागर के किनारे रह कर प्रकृति के क्या-क्या रूप देखने को मिलेंगे! आवास से सिर्फ बीच-पच्चीस मीटर दूर स्थित समंदर मेरा निकटतम पड़ोसी बन गया। मैंने पहले भी देखा था सागर। देशभर के कई महासागरों के किनारे बसे देशों के प्रमुख शहरों में आना-जाना हुआ था। समंदरों की लंबाई-चौड़ाई मापने का सवाल ही नहीं उठता था, लेकिन कभी-कभी उनकी लहरों की ऊंचाई आंखों से मापते समय गर्दन पीठ से सट जाती थी। शांत सागर भी मन पर एक गहरी छाप छोड़ जाता था।
उसे देखते, उससे बातें करते पांच साल बीत गए। सागर से पूछने के लिए मन में उठते बहुत सारे प्रश्न मन में ही रह गए। सोचती रही कि ‘अभी जल्दी क्या है, फिर कभी पूछ लूंगी।’ समय बीत गया। राजभवन से विदा लेते समय उसकी एक खिड़की खोल कर सामने खड़ी कुछ सोच-विचार में लगी थी। सागर की ओर से हवा का झोंका आया, मेरे शरीर को सहला गया। मन में विचार आया कि यह हवा सागर को छू कर आई है। इसमें तो कोई खारापन नहीं है! तभी पास बैठे पति ने अखबार में छपी खबर पढ़ते हुए कहा- ‘देखिए, दिल्ली की क्या बुरी स्थिति है! सांस लेना मुश्किल है।’ मैं चुप रही। सोचा कि दिल्ली तो यमुना किनारे बसी है। पानी मीठा है, फिर उस शहर की हालत ऐसी कैसे हो गई? बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक को सांस लेने में मुश्किल हो रही है। प्रदूषित हवा के अंदर जाने पर दिल में कैसी हलचल होती होगी? यह तो अरब सागर के किनारे बैठ कर भी सिर्फ कल्पना कर लेने से लोगों के दिल बैठने लगे थे।
मैंने नजर उठा कर सागर की ओर देखा। उसकी लहरें मानो उछल-उछल कर कह रही हों- ‘मेरे खारेपन से घबराओ नहीं… हवा तो मैं तुम्हारी तरफ शुद्ध भेज रहा हूं… अतिशुद्ध। मेरे किनारे बसने वाले बीमार व्यक्ति भी स्वस्थ हो जाते हैं।’ दरअसल, गोवा स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अनुकूल स्थान है। मुझे आश्चर्य होता था कि कभी-कभी शोर मचाने वाले समुद्र के किनारे गोवा के लोग इतने शांत क्यों हैं, इतने सहिष्णु कैसे हैं? हिंदू, मुसलिम, सिख, ईसाई और आदिवासी आबादी के रहते हुए इतना मधुर संबंध और मेलजोल कैसे स्थापित होता है! गोवा आने वाले सभी लोग यही कहते थे कि गोवा के लोग वैसे ही हैं, जैसे मेरी अनुभूति हुई।
यों गोवा की अनेक खूबियां मुझे भाती थीं।
जिस समुद्र को लेकर गोवा की अनेक विशेषताएं बनती थीं, पानी उसका खारा था। लेकिन खारे पानी को छूकर आने वाली हवा बेहद शीतल और मीठी थी और यमुना के किनारे बसा शहर भारत की राजधानी दिल्ली प्रदूषित हवा से ग्रस्त। यह सोच कर मन दुखी होता था। खैर, जब विमान से दिल्ली उतरने वाली थी तो खिड़की से दिखा कि चारों ओर धुंधलका छाया था। बाकी यात्री भी शायद सोच रहे होंगे कि कुछ और दिन गोवा में ठहर जाना उचित होता। लेकिन सोचने और करने में बहुत अंतर होता है। हवाई जहाज प्रदूषित हवा की मोटी परत को भेदते हुए जमीन पर उतर गया, तो हमें भी बाहर आना ही था। सूरज के डूबने से पहले ही दिल्ली के प्रदूषण ने उसे ‘श्रीहीन’ कर दिया था। दिल्ली की हवा के साथ-साथ यमुना का पानी भी प्रदूषित हो चुका है। सरकारी-गैरसरकारी, सभी ओर से प्रदूषण को कम करने के उपाय हो रहे थे।
गोवा अरब सागर के किनारे ही रहेगा। वहीं टिक कर अपनी ख्याति दूर-दूर तक पहुंचाता रहेगा। दिल्ली तो दिल वालों की है। प्रदूषण को बर्दाश्त कर अपने दिल को मजबूत कर यहीं रहेंगे यमुना किनारे। लेकिन हमें स्वीकार करना पड़ेगा कि खारापन अपने दिल में संजोए हुए रखने वाले भी मीठे स्वभाव और व्यवहार के होते हैं। मैं उनकी मीठी-मीठी स्मृतियां बटोर लाई हूं। अब दिल्ली में बिखेरती रहूंगी। सागर तो सागर है। यमुना जैसी अनेक बड़ी-छोटी नदियां सागरों में मिलती हैं। नदियों का मीठा पानी सागर से मिल कर खारा हो जाता है। नदी नहीं रहती है, सागर बन जाती है। मीठे को खारा बना लेने वाला सागर पसरा पड़ा है और रहेगा। प्रदूषण आता-जाता रहेगा। प्रदूषण दूर करने के उपाय हैं। सुना है सागर के खारा जल को भी मीठा बनाने के उपाय वैज्ञानिकों ने ढूंढ़ लिया है। इसीलिए तो बदलती दुनिया को देख कर लगता है- ‘भगवान ने दुनिया बनाई या दुनिया वालों ने भगवान!’
मृदुला सिन्हा (लेखिका गोवा की पूर्व राज्यपाल हैं।)