मनीष कुमार चौधरी
हर व्यक्ति खुश रहना चाहता है, यह एक सच्चाई है। लेकिन वह कौन-सी चीज है जो व्यक्ति को खुशी देती है! आखिर खुशी होती क्या है? वैज्ञानिकों की तार्किकता से लेकर आध्यात्मिक गुरु और दार्शनिक अपने दर्शन में इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने की कोशिश करते रहे हैं। पर यह प्रश्न आज भी जस का तस है कि खुशी है क्या और इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है। दरअसल, खुशी वह चीज है, जिसे जीवनभर सब खोजते रहते हैं।
यह मिलती भी है, पर मिलने पर उसका अर्थ बदल जाता है। खुशी किसी चीज की देन नहीं होती। यह तो एक मानसिक अवस्था है, जो सांसारिक सुख-साधनों की गैर मौजूदगी में भी प्राप्त की जा सकती है। आपकी उम्मीदें भी खुशी से जुड़ी हैं। अपनी कार शुरू में तो खुशी देती है, लेकिन पड़ोसी के पास भी उसी स्तर या उससे ऊपर के स्तर की कार आ जाने के बाद वह खुशी कम हो जाती है या गायब भी हो जाती है। हम अक्सर सोचते हैं कि जब चीजें बदलेंगी, हम खुश हो जाएंगे। पर सच यह है कि जब हम खुश होते हैं और उस हिसाब से काम करते हैं तो चीजें भी बेहतर हो जाती हैं।
किसी व्यक्ति को कौन-सी चीज खुशी प्रदान करेगी, यह उस व्यक्ति की प्रकृति, मनोवृत्ति, इच्छा और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। खुशी न तो प्रायोजित होती है और न ही खरीदी जा सकती है। हम अक्सर सोचते हैं कि जब चीजें बदलेंगी, हम खुश हो जाएंगे। पर सच यह है कि जब हम खुश होते हैं और उस हिसाब से काम करते हैं तो चीजें भी बेहतर हो जाती हैं। खुशी का कोई निर्धारित वक्त नहीं होता और यह निरंतर उत्साह की स्थिति भी नहीं है। खुशी नकारात्मक भावनाओं की तुलना में अधिक सकारात्मक भावनाओं को अनुभव करने की समग्र भावना है।
खुशमिजाज लोग भी समय-समय पर मानवीय भावनाओं की पूरी शृंखला-क्रोध, निराशा, ऊब, अकेलापन और यहां तक कि उदासी को महसूस करते हैं। लेकिन जब असुविधा का सामना करना पड़ता है, तब भी उनमें आशावाद की अंतर्निहित भावना होती है कि चीजें बेहतर हो जाएंगी और जो हो रहा है उससे वे निपट सकते हैं।
खुशी पर किए गए कुछ अध्ययन बताते हैं कि खुशी का पचास फीसद हिस्सा आपके जीन पर निर्भर करता है। जीवन से जुड़े कुछ मुद्दे जैसे आपकी बनावट, सेहत और आय जैसी चीजें इसमें सिर्फ दस फीसद भूमिका निभाते हैं। बाकी चालीस फीसद आपके हाथ में होता है। इस 40 फीसद हिस्से को आप खुद नियंत्रित कर सकते हैं। उम्र को हम खुशी के स्तर और मात्रा से जोड़ें तो अनुसंधानों में यह देखने में आया है कि तीस साल तक इंसान के भीतर खुशी की बढ़ोतरी होती है, उसके बाद खुशी की मात्रा में कमी होने लगती है। लगभग पचास के बाद खुशी का स्तर फिर से बढ़ने लगता है। वैज्ञानिक भाषा में इस अवस्था को खुशी का ‘यू-बैंड’ कहा जाता है।
प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू के अनुसार खुशी मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य है। सभी जरूरतों को पूरा करना ही खुशी का अंत है। हम सभी अच्छे रिश्ते, पैसा, सफलता या शक्ति चाहते हैं, क्योंकि हम मानते हैं कि ये हमें खुश कर देंगे। यह कहना सही होगा कि बाकी सब कुछ सिर्फ खुशी को प्राप्त करने का एक साधन है और खुशी अपने आप में सभी का अंत है। किसी को क्या अच्छा लगता है, वैसा करना खुशी का रहस्य नहीं है। खुशी का रहस्य तो वह कार्य करना है, जो कि किया जाना चाहिए। खुशी कोई ऐसी चीज भी नहीं है कि जिसे तश्तरी में रख कर प्रस्तुत कर दिया जाए।
खुशी उतनी ही दुर्लभ है, जितनी तितली। जितना इसके पीछे भागेंगे, वह उतना ही आप से दूर होती चली जाएगी। अगर आप शांत, स्थिर बैठे रहेंगे तो हो सकता है वह पास आए और चुपके से आपकी हथेलियों पर बैठ जाए। खुशी इच्छा का अंतिम परिणाम भी नहीं होती। यह एक दृष्टिकोण है, इच्छा नहीं। यह प्रतिदिन के अनुभवों से प्राप्त एक आदत है। यों कहिए कि ‘खुशी एक यात्रा है, मंजिल नहीं।’
इस प्रतीक्षा में मत रहिए कि दूसरे लोग आपको प्रसन्न करें। आपको जो भी प्रसन्नता मिलनी है, वह अपने आप प्राप्त करनी होगी। अब्राहम लिंकन ने कहा था, ‘अधिकतर लोग उतने ही प्रसन्न होते हैं, जितना प्रसन्न होने का विचार उनके मन में व्याप्त होता है।’ आपके पास क्या है या आप कौन हैं, यह सोच कर खुशी हासिल नहीं की जा सकती। यह आपके विचारों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। खुशी का रिश्ता मनुष्य के स्वभाव और संवेगों से भी होता है और स्वभाव एक ऐसी चीज है, जिसके साथ आप पैदा होते हैं।
संतोषी और अपेक्षा न रखने वाले स्वभाव को इतना दुख महसूस नहीं होता, जितना अति महत्त्वाकांक्षी और अधीर रहने वाले को मिलता है। इच्छाएं अनंत हैं, लेकिन उनसे मिलने वाला सुख अनंत नहीं है। महात्मा बुद्ध ने कहा था, ‘खुशी पाने का कोई रास्ता नहीं है, बल्कि खुश रहने से सारे रास्ते मिल सकते हैं।’