अमिताभ स.

हर चयन एक नए दरवाजे की ओर ले जाता है। चयन का सफल मार्ग वही होता है, जो खुद के लिए अपनी समझ से बनाया जाता है, न कि दूसरे लोगों की देखा-देखी या उनके सपनों के पीछे भागने से। लेकिन चुनाव से ही सफलता नहीं मिल जाती। यह सही है कि चुनाव के लिए परिस्थितियां सबकी समान नहीं होती हैं। लेकिन अपनी सीमा में अपने लिए सही चुनाव करना सीखना होगा।

फिर अपनी क्षमता बढ़ा कर अपने सपनों को भी और ऊंचा बनाया जा सकता है। हालांकि अक्सर ऊंचे सपने किसी को नई ऊंचाई दे जाते हैं। लेकिन जिस भी मैदान में उतरें, जो भी सीमा हो, उसमें जीत का सपना अपने साथ रखना सबसे पहली जरूरत होती है। हर क्षेत्र या मोर्चे पर जीत के लिए गहन फोकस करना जरूरी है।

आज की पीढ़ी के लिए तो ध्यान केंद्रित करना और जटिल हो गया है, क्योंकि उनका ध्यान भटकाने के लिए फेसबुक, इंस्टाग्राम, ओटीटी जैसे कई मंच हैं। इसीलिए नौजवान पढ़ाई और प्रशिक्षण के दौरान ही मोबाइल में अटक जाते हैं। आज भले ही किसी ने शतक लगा लिया, लेकिन कल फिर से जुटना होगा, सीखना होगा। हर रोज एक मौका है, पहले से ज्यादा बेहतर बनने का।

बचपन में स्कूल के दिनों में जब दूरदर्शन का जमाना था, परीक्षाओं से एक- दो हफ्ते पहले टीवी पर पाबंदी लग जाती थी। इस दौरान बच्चा या परिवार का कोई सदस्य टीवी नहीं देखता था। मकसद था कि पढ़ाई के दौरान एकाग्रता न भटके, न टूटे। लोग हिदायत देते हैं कि जो भी करें, उसे अपना तीन सौ फीसद दें। यानी काम पर फोकस रखें और खूब मेहनत करें।

बुरे से बुरे और कठिन से कठिन हालात में भी जुटे रहें। निस्संदेह एकाग्रता ही सफलता की चाबी है। कभी कोई लक्ष्य तय करें या न करें, लेकिन सदा आगे बढ़ते जाएं। अगर सदा किसी खास या बड़े काम की तलाश में रहेंगे, तो जीना मुश्किल हो जाएगा, असंतुष्ट ही रहेंगे। जिन्हें आप बदल नहीं सकते, उन चीजों पर मुस्कुराना सीख लेना चाहिए, क्योंकि पत्थर से मिट्टी की तरह कोई लचीला होने की उम्मीद नहीं कर सकता।

किसी भी मोर्चे पर अनगिनत इनकार सुन लेना चाहिए, लेकिन खुद पर भरोसा नहीं छोड़ना चाहिए। आलोचना या तारीफ, कुछ भी गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। कुछ हासिल करने की जिद ही सुनहरे भविष्य की नींव है। ओशो की राय है- ‘कभी किसी से मत पूछो कि क्या सही है और क्या गलत। जीवन यह जानने का एक प्रयोग है। प्रत्येक व्यक्ति को सचेत और सतर्क रहना होगा, जीवन के साथ प्रयोग करना होगा और यह पता लगाना होगा कि उसके लिए क्या अच्छा है।’ फिर असंतोष प्रगति की पहली जरूरत है।

खुद को बेहतर बनाए बिना अपनी गतिविधियों को बढ़ाया जाए तो किसी न किसी मौके पर हमारा टूटना तय है। अगर इस बात को लेकर कोई परेशान है कि किसी दूसरे से बेहतर कैसे हुआ जाए, तो वह किसी की और न ही अपनी सफलता का आनंद नहीं ले पाएगा। अपना मार्ग खुद चुनना होता है, दूसरों से केवल प्रेरणा ले सकते हैं। जब सर्वोच्च स्तर पर काम करना सीख जाते हैं, तो सब कुछ किसी खेल-करतब की तरह आसानी से हो जाता है।

घुड़दौड़ प्रतियोगिता में जीतने वाले घोड़े को तो यह भी नहीं मालूम होता है कि जीत क्या है। वह तो अपने मालिक द्वारा दी गई तकलीफ के कारण दौड़ता है। इसलिए अगर किसी के जीवन में तकलीफ या तपस्या आती है, तो जान लेना चाहिए कि उसका मालिक उसे जिताना चाहता है। कहते हैं कि कोई तभी आगे निकल पाता है, जब तकलीफ सहता है और आरामदायक स्थिति में नहीं होता।

मनचाहे काम करने से बेशक जीवन को रफ्तार मिलती है। कोई भी व्यक्ति बेहतर और कामयाब इंसान बनता जाता है। लेकिन मन-मुताबिक न मिले, तो भी मौके हाथ से जाने नहीं देना चाहिए। इसी से रास्ते खुलेंगे। जिंदगी हर समय बेहतर बनाने के लिए काम करती है, बशर्ते कोई व्यक्ति तत्पर रहे। कभी कोई सोचा हुआ काम करने से हटना नहीं चाहिए। इंसान के तौर पर खुद में निखार लाना जारी रहना चाहिए।

यह भी पक्का है कि खुद को बेहतर बनाने में जुटे रहा जाए तो सारे काम अपने आप ही बेहतरीन होते जाएंगे। कोई भी काम मेहनत के बगैर पूरा नहीं हो सकता, क्योंकि खूब लगन से की गई मेहनत कभी व्यर्थ नहीं जाती। परामर्शी और लेखक जीन कालिंस ने लगातार पंद्रह सालों तक उच्च आय देने वाले वाले ग्यारह उद्योगों का अध्ययन किया और जाना कि सभी के मुख्य कार्यकारी अफसर में विनम्रता और मजबूत इच्छाशक्ति की बराबर खासियतें थीं। विनम्रता से समझौता कतई नहीं किया जा सकता। अगर हम विनम्र नहीं हैं, तो सबसे पहले सुनना बंद कर देंगे। सुनेंगे नहीं, तो सीखना बंद हो जाएगा।