योगेंद्र माथुर
जब कभी दो पूर्व परिचित लोग कुछ अंतराल पर फिर से मिलते हैं तो एक दूसरे से अक्सर यही प्रश्न करते हैं कि ‘आजकल कैसा क्या चल रहा है!’ यहां ‘चलने’ का आशय संबंधित व्यक्ति के कार्य और परिस्थिति से है, लेकिन विस्तृत संदर्भों में इसका दायरा बहुत बड़ा है। ‘चलना’ एक ऐसी प्रक्रिया है, जिससे संपूर्ण ब्रह्मांड संचालित होता है। ग्रह-नक्षत्र, इंसान, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे और यहां तक कि निर्जीव वस्तुएं जो अचर हैं, वे भी इस प्रक्रिया के दायरे में आती हैं।
सृष्टि का सारा वजूद चलने की प्रक्रिया के कारण कायम है। प्रकृति का संतुलन सौरमंडल की चाल पर निर्भर है। दिनमान, ऋतुचक्र और इंसान- सब इससे बंधे हैं। सांस यानी हृदय की धड़कनों का चलना जीवन की अनिवार्य शर्त है। सांस का चलना बंद होते ही इंसान और जानवर निर्जीव हो जाते हैं। आग और पानी के साथ जीवन के लिए हवा का चलना भी बेहद जरूरी है। हवा का चलना बंद हो जाए तो जीवों का दम घुटने लगे। इंसान और जानवरों द्वारा दूरी मापने या तय करने के लिए उठाए गए कदमों को उसका चलना कहा जाता है। अलग-अलग व्यक्तियों या जानवरों की अलग-अलग ढंग की चाल होती है। इंसान के संदर्भ में कोई इठला के चलता है तो कोई बल खा के चलता है। वैसे किसी व्यक्ति की जुबान चलती है तो किसी के हाथ भी चलते हैं।
फिल्मों में प्रेमियों द्वारा गीतों के माध्यम से अपनी-अपनी प्रेमिकाओं की चाल का विभिन्न तरीकों से गुणगान किया गया है। किसी को मोरनी जैसी चाल नजर आई तो किसी को नागिन जैसी चाल और किसी की हिरनी जैसी चाल प्रेमी के मन को भायी। जानवरों के संदर्भ में सांप-केंचुए आदि का रेंगना, जलचरों का तैरना और नभचरों का उड़ना भी चलने की प्रक्रिया के समानार्थी ही हैं।
मानव का स्वभाव या प्रवृत्ति भी इस चलने की प्रक्रिया के दायरे में आते हैं। अच्छे काम करने वाले को सदाचारी और बुरे कर्म में संलग्न व्यक्ति को बदचलन या दुराचारी करार दिया जाता है। कोई व्यक्ति पुरातन स्थापित सिद्धातों या आदर्शों पर चल रहा है तो कोई जमाने के साथ कदम मिला कर चल रहा है। कोई समय के साथ तालमेल बैठा कर चल रहा है तो कोई ‘एकला चलो रे’ की तर्ज पर धारा के विरुद्ध या अलग चल रहा है। किसी से किसी का प्रेम तो किसी से किसी की दुश्मनी। किसी व्यक्ति द्वारा किसी का अहित करने या अपना प्रभुत्व कायम करने की दृष्टि से की गई व्यूह रचना उसकी ‘चाल’ कहलाती है। वैसे जीवन के हर क्षेत्र में शतरंज की मोहरें बिछीं हैं। हर एक, दूसरे को अपने क्षेत्र में मात देने की चाल सोच रहा है और चल रहा है।
इंसान की गृहस्थ जीवन रूपी गाड़ी के पति-पत्नी दो पहिए माने जाते हैं। गृहस्थ जीवन के सुख और सफलता के लिए इन दोनों की चाल में संतुलन होना जरूरी है। एक पहिए की चाल बिगड़ते ही यह गाड़ी चरमरा जाती है। इंसान की आर्थिक गतिविधियां करेंसी यानी मुद्रा या रुपये-पैसों से चलती है। इसके अभाव में सारा कामकाज ठप्प हो जाता है। करेंसी का चलना, न चलना भी सरकार की नीति और करेंसी की अवस्था पर निर्भर करता है। कटे-फटे या जर्जर नोट यों ही चलन से बाहर हो जाते हैं। वर्तमान में धन और बल का महत्त्व बहुत अधिक बढ़ गया है। इसके आधार पर ही इंसान की पूछ-परख होती है। जिसके पास ये दोनों या इनमें से एक तत्त्व उपलब्ध हो, उसी का ‘सिक्का’ बाजार में चलता है। कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनका अन्य कारणों से भी ‘नाम’ चलता है।
इंसान की यात्रा पैदल के अलावा बस, ट्रेन, विमान आदि के चलने से ही तय होती है। वाहन का चलना उसकी मशीनरी या चक्कों यानी पहियों पर निर्भर करता है। मशीनरी का कोई भी पूर्जा या पहिया चलना बंद हो जाए तो वाहन चलना बंद हो जाता है। दुनिया मे शासन तंत्र भी अलग-अलग नीति-रीति से चल रहे हैं। किसी देश मे लोकतंत्र तो किसी देश मे राजतंत्र चल रहा है। कहीं-कहीं तानाशाही भी चल रही है। कहीं पूंजीवाद तो कहीं समाजवाद और कहीं साम्यवाद चल रहा है। कहीं हिंसा, कहीं शोषण, कहीं आतंकवाद, कहीं नक्सलवाद, कहीं संप्रदायवाद, कहीं नस्लभेद तो कहीं रंगभेद दुनिया के लगभग सभी देशों में अपने अलग-अलग स्वरूपों में चल रहे हैं। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप अनवरत रूप से चलता ही रहता है।
हमारे देश में कहीं गुटबंदी, कहीं तालाबंदी, कहीं अनशन-भूख हड़ताल तो कहीं धरना आदि आंदोलन अपनी पुरानी परंपरा के अनुसार चल रहे हैं। व्यवस्था में भ्रष्टाचार चल रहा है, वह अलग। इंसान के जीवन में कोई न कोई बीमारी या रोग भी चलते ही रहते हैं। कोई बीमारी कभी महामारी का रूप ले लेती है। कभी प्लेग तो कभी डेंगू, कभी स्वाइन फ्लू तो कभी चिकनगुनिया। फिलहाल तो कोरोना पूरी दुनिया में पूरे शबाब पर चल रहा है। कुल मिलाकर बात सिर्फ इतनी-सी है कि कहीं न कहीं कुछ न कुछ चल रहा है। कहीं सब कुछ ठीक तो कहीं ‘शेष कुशल’ चल रहा है। आप तो अपनी बताइए कि आपका कैसा क्या चल रहा है!