पूनम पांडे

मन की सक्रियता ही सार्थक जीवन की नींव होती है। विचारों को भली-भांति पकड़ कर उनका अनुसरण करते हुए खुलेपन से काम करने वाले ही महासागर पार कर पाते हैं, दुर्गम पर्वत बांहें फैलाए उन्हीं का स्वागत करते हैं। बस बेहतर से बेहतरीन होने की नजर और नजरिया चाहिए। एक बेहतर भविष्य का निर्माण करने के लिए सपने देखना जरूरी शर्त है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि अगर सिर्फ किताबों को रट कर कोरा ज्ञान प्राप्त कर भी लिया जाए तो वह जानकारी नितांत नाकाफी होगी, क्योंकि उसको और प्रगति देनी है तो कल्पना के पंखों पर सवारी करानी ही होगी।

एक बार आंखें मूंद कर क्या हमने सोचा कभी कि पहली बार आलू के चिप्स बनाने की समझ या जुगत, कुछ भी कह लीजिए और बिजली का लट्टू यानी बल्ब बना कर पूरी दुनिया को अंधकारमुक्त करने की महत्त्वपूर्ण घटना भी निश्चित रूप से किसी की कल्पनाशक्ति का ही परिणाम है! इस संसार में सुई से लेकर सिलाई मशीन तक, जितने भी आविष्कार और खोजें हुई हैं, वे किसी न किसी के सपने, कल्पना, विचार, निरंतर चिंतन आदि का ही साकार रूप हैं।

मनोवैज्ञानिक इस कल्पनाशीलता को बहुत ही महत्त्वपूर्ण मानते हैं। आजकल तो दफ्तरों, संस्थानों के तकनीकी विभाग से जुड़े कर्मचारियों को मेडिटेशन, मौन साधना, एकांत विचार आदि करने की सुविधाएं कार्य क्षेत्र पर ही उपलब्ध कराई जाती हैं, ताकि उनकी रचनात्मकता और कल्पना का स्तर दुरुस्त हो सके।
कल्पना क्या है? यह कोई जटिल वस्तु नहीं है। कल्पना अपने भविष्य का मोटा प्रारूप है या कुछ आधी-अधूरी-सी तस्वीर है, जो पर्याप्त ऊर्जा लगाने के बाद पूर्ण रूप से साकार हो जाएगी। बहुत कम लोग इस बात पर यकीन करते हैं कि तीन घंटे की एक फिल्म जिस थीम-लाइन पर टिकी होती है, उसे लगभग आधा दर्जन लेखक अपनी कल्पना शक्ति से अर्थपूर्ण बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहते हैं।

हॉलीवुड के स्टीफन स्पीलबर्ग ने एक साक्षात्कार में कहा था कि किसी विचार को कम से कम दस-बारह लेखकों की टीम साथ मिल कर ही निखारती है। उन सबकी कल्पना से एक मुकम्मल कहानी सामने आती है और दर्शक उसे सराहते हैं। उनके काम करने का तरीका यह है कि वे कुछ कल्पनात्मक चित्र हर लेखक को समझा देते हैं, फिर उसी कल्पना को आगे बढ़ा कर हरेक दिमाग से चमत्कृत करने वाली कथा उपजती है। ऐसा माना जाता है कि हरेक व्यक्ति का दिमाग अलग-अलग प्रतीकों का अनुसरण करता है और कल्पना के रास्ते से होकर वह बिंब दिखाता है। जेम्स कैमरन की कालजयी फिल्म ‘अवतार’ भी ऐसे ही उपजी होगी। इसीलिए एक कहावत भी बन गई है कि हम जैसे सोचते हैं, हू-ब-हू वैसे ही बन भी जाते हैं।

सामान्य तौर पर जानकारी, कल्पना और प्रेरणा- ये तीन चरण हैं, जो अब्दुल कलाम को ‘मिसाइल मैन’ बना देते हैं और अब्राहम लिंकन को राष्ट्रपति। एक बार एक प्रसिद्ध इंजीनियर लंबे समय से पुल निर्माण पर काम कर रहा था। मगर वह पुल के डिजाइन को अंतिम रूप नहीं दे पा रहा था। उसे बार-बार यह बात खटकती थी कि यह डिजाइन पुल को मजबूती नहीं दे सकता। वह इंजीनियर कागज, कलम और किताब एक तरफ रख कर कल्पना के पुल बनाने लगा। हर वक्त यही विचार। इन्हीं कल्पनाओं में उसने एक दिन पानी के बहाव पर से गुजरती महिला को देखा और जुनून से उछल पड़ा। वह महिला ऊंची हील पहन कर आराम से पानी पर चल रही थी। इंजीनियर ने उसी डिजाइन को ध्यान में रख कर मजबूत पुल का ढांचा तैयार कर दिया।

अब जाकर उसे संतोष मिला। सफल लोगों के सभी साक्षात्कार सुनिए या पढ़ लीजिए। उनमें सबने यही बात स्वीकार की है कि जब भी उन्होंने दृढ़ संकल्प के साथ सपनों को संजोया, तो उनके भीतर एक अद्भुत ऊर्जा का संचार होने लगता था। भटकाव से बचने के लिए वे खुद को सकारात्मक सोच से लैस किया करते थे और उनकी सुहानी मंजिल का खूबसूरत चित्र उनकी आंखों के आगे टिका रहता था। यही खास बात उन्हें सुखद भविष्य की ओर बढ़ाती थी और यही कारण था कि संघर्ष भी जश्न और आनंद का झरना लगते थे। यही खास अंदाज उन्हें सुखद भविष्य की तरफ बढ़ाता गया।

अब बात चाहे किसी तकनीक की हो या निर्माण की, महत्त्वपूर्ण पद पाने की या किसी आंदोलन में उतर कर उसे सफल बनाने की, अगर मन की भाषा को सुना और समझा जाए और कल्पना का खाका खींचते जाएं तो सही फैसले लेने की बुद्धि प्रबल हो जाती है। जो लोग अपने सपनों को सच कर पाए, वे पहले उस धरातल पर ही होंगे, जहां से सब कठिन लगता होगा। मगर उन्होंने मन की आंखों से अपने स्वर्णिम दिनों का आकलन किया और कल्पनाशक्ति से उसे वास्तविकता का जामा पहना दिया।