अमिताभ स.

सुबह की सैर करते-करते मिली नाम के फूल का कांटेदार पौधा देख जेहन में शब्द उमड़े- ‘यह जीवन है/ जरा-जरा फूल/ कांटे बहुत हैं..।’ तस्वीर और पंक्तियां सोशल मीडिया पर पहुंचीं। तमाम प्रतिक्रियाओं में एक सार्थक टिप्पणी आई- ‘जीवन भी ऐसा ही है। बहुत से कांटों रूपी अवरोधों के बाद चंद फूल रूपी उपलब्धियां हासिल होती हैं।’

पंखुड़ियों को तोड़ कर कोई उसकी सुंदरता नहीं पा सकता है

मौसम दरअसल बागों और फूलों की बहारों का है। लेकिन मशहूर शायर मखदूम मुहिउद्दीन अपनी गजल ‘फिर छिड़ी बात फूलों की..’ में फरमाते हैं- ‘…फूल खिलते रहेंगे दुनिया में, रोज निकलेगी बात फूलों की…’। ऐसे में बाग-बाग बूटा-बूटा फूल खिला देखते हुए किसी के भी मन में कैसे भाव उभरते होंगे, यह समझना आसान है। रवींद्रनाथ ठाकुर ने लिखा है- ‘फूल की पंखुड़ियों को तोड़ कर कोई उसकी सुंदरता को इकट्ठा नहीं कर सकता।’

दरअसल, फूल की खूबसूरती उसके समूचे रूप में ही है। जीवन बेशक क्षणभंगुर हो, लेकिन ऐसा हो कि देखने वाला पल भर में प्यार और खुशी से सराबोर हो जाए। किसी ने फूल से पूछा कि जब तुम्हें कोई तोड़ता है, तो दर्द नहीं होता क्या? इस पर फूल ने कहा, ‘मैं अपना दर्द भूल जाता हूं, जब कोई मेरी वजह से खुश होता है।’ वाकई कुछ पाने की आशा के बगैर देना और त्याग भावना ही हर फूल के जीवन का संदेश है। भंवरे और तितलियां फूलों के पराग का रस चूसती हैं। मधुमक्खियां फूल के पराग से मिठास बटोर-बटोर कर मधु पैदा करती हैं। समझदार माने जाने वाले लोग कहते हैं कि तितलियों के पीछे कौन दौड़े।

फूल-पौधे उगाइए, तितलियां खुद-ब-खुद आ जाएंगी!

फूल सुख, चैन और अमन की पहचान है। वे तनाव, ईर्ष्या, द्वेष और वैर को कोसों दूर रखते हैं। वे अपनी सुगंध, मधु, मुस्कान और कोमलता बांट-बांट कर ही अपार स्नेह, प्यार और लगाव पाते हैं। हर फूल दूसरों की दुष्टता और कुरूपता झेलने के बावजूद प्रेम और दया से सदैव खूबसूरत बना रहता है। जैसे चमेली की बेल उन हाथों पर भी अपने हल्के मुलायम फूल बरसाती है, जो उसके तने पर कुल्हाड़ी से वार करते हैं। इससे सबक लेकर इंसान को भी उन पर क्षमा के फूल बरसाने चाहिए, जो आपके प्रति दुर्भावना से कार्य करते हैं।

संभव है कि इस कृत्य से किसी का मन बदला जा सके! एक दफा चमेली के फूल का सहारा लेकर गुरु नानक ने एक ईर्ष्यालु को अपने विनम्र स्वभाव का परिचय दिया था। हुआ यों कि गुरु नानक मुल्तान पहुंचे तो वहां पहले से कई धर्म प्रचारक मौजूद थे। एक संत ने उन्हें दूध से भरा हुआ कटोरा भेजा। गुरु नानक ने बगिया से चमेली का एक फूल तोड़ा और दूध पर हल्के से टिका दिया। साथ ही, कटोरा संत को लौटा दिया।

दूध का भरा कटोरा वापस आया देख कर संत के शिष्य तिलमिला गए। शिष्यों को लगा कि गुरु नानक ने उनके गुरु जी का घोर अपमान किया है। संत ने उन्हें शांत किया और शिष्यों को समझाया कि बात महज इतनी है कि मैंने गुरु नानक देव से प्रश्न किया था कि मुल्तान में पहले से ही दूध जैसे नेक-पवित्र चरित्र के संत विद्यमान हैं, फिर उन्हें यहां पधारने की क्या आवश्यकता थी, तो उन्होंने उत्तर भेजा कि जिस प्रकार कटोरे में लबालब भरे दूध का चमेली के फूल ने कोई हर्ज नहीं किया, बल्कि उसकी शोभा ही बढ़ाई है, वैसे ही चमेली के फूल की भांति मैं भी यहां रहूंगा।

अकेले चमेली ही नहीं, गुलाब, कमल, चंपा, मोगरा, मोतिया, सूरजमुखी, गेंदा, गुड़हल, सेमल, कपास आदि तमाम देशी-विदेशी फूल प्रेम, सादगी, खूबसूरती, सद्भावना, सच्चाई, अमन, मित्रता और खुशी का अहसास जगाते हैं। कह सकते हैं कि फूल भेंट करना दिल भेजने के माफिक है। गुलजार की नज्म किताब में छिपे फूलों से बनते रिश्तों को यों बयान करती है- ‘…किताबें झांकती हैं बंद अलमारी के शीशों से/ …मगर वो जो उन किताबों से मिला करते थे/ सूखे फूल और महके हुए रुक्के/ किताबें मांगने, गिरने, उठाने के बहाने जो रिश्ते बनते थे/ उनका क्या होगा?’

एक बार फूल और कांटे में बहस छिड़ गई। कांटे ने फूल से पूछा- ‘तुम्हें ऊपर वाले ने बेकार ही बनाया है। इस कदर कोमल हो कि शीत और ताप के मामूली झोंके के भी नहीं सह पाते। केवल एक-दो दिन खिल कर मुरझाने के तुम्हारी क्षणभंगुरता पर तरस आता है। मुझे देखो, मैं कितने दिनों से जी रहा हूं।

तुम्हारे कितने ही पूर्वजों को इसी टहनी पर खिलते-मुरझाते देखा है। लेकिन मेरा अब तक कुछ नहीं बिगड़ा, क्योंकि मेरे पास जो कोई आता है, उसे काट खाता हूं। लोग मुझे छूने की हिम्मत नहीं बटोर पाते।’ फूल ने सहजता से जवाब दिया कि बंधु, तुम्हारा कहना सही है। मगर मुझे अपने मरने-जीने का खयाल ही नहीं आता। मैं चाहता हूं कि मेरा जीवन भले पल-दो पल का हो, लेकिन ऐसा हो कि देखने वाला प्यार और प्रसन्नता से गद्गद हो जाए। उतने से ही जीवन हासिल करता हुआ दिखे।