सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’
पुस्तक द्वारा हमें ज्ञान, अनुभव और जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में सीखने का सुअवसर मिलता है। इनकी सहायता से हम प्राचीन धर्म, विज्ञान, तकनीक, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला, साहित्य आदि के बारे में जान सकते हैं। इनका संसार बड़ा रोचक, मोहक और ज्ञानवर्धक है। जिंदगी पट्टी पूजन से शुरू होती है और पूरी जीवन यात्रा में पुस्तकें हमारा पाथेय बनी रहती हैं।
ये मनुष्य के जीवन की दिशा निर्धारित कर देते हैं। पुस्तकें ज्ञान का कोश हैं और अनुभव जनित ज्ञान का भंडार हैं। ये जहां-तहां दुकानों, पुस्तकालयों, पुस्तक मेलों आदि में अपने सुंदर सजावटी तरीके से सजती हैं। कुछ स्थानों पर लोकार्पित और विमोचित होती हैं, लेखकों से संवाद होता है। पुस्तकें देखी जाने के साथ-साथ खरीदी जाकर पुस्तकालयों और पुस्तक प्रेमियों के घरों में विराजती हैं।
कुछ यदा-कदा बांच ली जाती हैं, कुछ के पन्ने पलट लिए जाते हैं, कुछ की अनुक्रणिका देखकर ही पुस्तक का जायजा ले लिया जाता है। कुछ जरूरत पड़ने पर संदर्भ के लिए संभाल कर रख दी जाती हैं और कुछ को सजा कर रख दिया जाता है। व्यक्तिगत पुस्तकालयों में कुछ पुस्तकों का भाग्य इतना बुलंद होता है कि उन्हें कई बार अक्षर-अक्षर पढ़ लिया जाता है।
पुस्तक प्रेमी कई तरह के होते हैं। उनमें एक विद्यार्थी हैं, जिनके लिए यह एक अनिवार्य अभ्यास हो जाता है। ये लोग प्राय: अध्ययन और पढ़ाई में रुचि रखते हैं और पुस्तकों के माध्यम से अपनी ज्ञान और सूक्ष्म विचारधारा को बढ़ाना पसंद करते हैं। दूसरे होते हैं साहित्य प्रेमी। ये लोग साहित्यिक उत्पादों के प्रेमी होते हैं, जैसे कि कहानियां, कविताएं, नाटक आदि।
वे अपनी बुद्धि, समझ और भावुकता के अंतर्गत साहित्य को समझते हैं और उससे प्रभावित होते हैं। तीसरे होते हैं इतिहास प्रेमी। ये लोग इतिहास और संस्कृति से जुड़ी पुस्तकों के प्रेमी होते हैं। वे उनका अध्ययन करते हैं और उनके माध्यम से अपनी जानकारी को बढ़ाते हैं। चौथे होते हैं विज्ञान प्रेमी। ये लोग वैज्ञानिक उत्पादों, अनुसंधान और नवीनतम विकासों से जुड़ी पुस्तकों के प्रेमी होते हैं।
वे उन्हें अध्ययन करते हैं और उनसे नए विचारों का निर्माण करते हैं। इसके अलावा, धार्मिक किताबों के प्रेमी धर्म से संबंधित पुस्तकों का अध्ययन करने में रुचि रखते हैं। पुस्तक प्रेमियों के वर्ग अनंत हैं। लेकिन कुछ वर्ग ऐसे होते हैं, जिनमें एक को खरीदने का और अलमारी में सजाने का बड़ा भारी शौक होता है। कुछ तो बैठक में ही उन्हें सजा देते हैं और शोभा बना देते हैं कि मेल-मिलाप के लिए आने वालों पर उनका अच्छा असर पड़े कि अमुक बेहद पढ़ाकू है।
कुछ लोग पुस्तकों के इतने प्रेमी होते हैं जो पुस्तकों का अक्षर-अक्षर जब तक नहीं पढ़ लेते, बेचैन रहते हैं। कुछ पढ़कर समझने और उनका जीवन में प्रयोग करने के पक्षधर हैं तो कुछ दूसरों को बांच कर सुनाते रहते हैं। और कुछ पुस्तकों से पाठ रट कर परीक्षा में लिख आते हैं, परीक्षा पास कर लेते हैं और बाद में सब भुला दिया जाता हैं। कुछ पाठक हैं तो कुछ पाठकों की सुविधा, रुचि और अपने अनुभवों का पिटारा, सब तक पहुंचाने के लिए लगातार खुद को लिख-लिख कर अभिव्यक्त करते रहते हैं।
पुस्तकें हमें इस रूप में जीवन जीने का मार्ग दिखाती हैं कि सही-गलत का बोध कराती हैं, अद्यतन सूचना से लैस करती हैं। ये लेखक के संचित अनुभवों का भंडार हैं। ये केवल शब्दों की बाजीगरी या जादूगरी ही नहीं है। कितना-कितना सोचा-समझा जाता है, तब जाकर शब्द वाक्य में, वाक्य अनुच्छेद में, अनुच्छेद पृष्ठों में, पृष्ठ अध्यायों में बदल कर पुस्तक रूप में सजते हैं।
दिमाग में उमड़ते-घुमड़ते विचारों को मन के भावों को शब्दो में बांध कर पृष्ठ पर उतार देना कोई जादू का छूमंतर नहीं है कि किसी ने छू भर दिया और सब हो गया। लेखन श्रम और लगन मांगता है, आपका ध्यान और समय मांगता है। लिखा केवल इसीलिए नहीं जाता कि छपास हावी होती है, बल्कि लिखा इसलिए भी लिखा जाता है कोई व्यक्ति लिखे बिना रह ही नहीं पाता।
समय बदला पुस्तकें भी डिजिटल हो गर्इं। अब वह पीडीएफ के रूप में मोबाइल में समा गई हैं। अब मोबाइल में ही पढ़ देते हैं। रूप आकार बदलने से कुछ नहीं होता है। अंतिम उद्देश्य यही होना चाहिए कि पुस्तक संस्कृति बची और बनी रहनी चाहिए। लगते रहें पुस्तक मेले, खरीदी और बांची जाती रहें पुस्तकें, मेले ठेलों में लोकार्पित और विमोचित होती रहें पुस्तकें।
ये स्टाल ऐसे ही सजते रहें और पुस्तक प्रेमी इन मेलों का आनंद लेते रहें। बस आम पाठक तो इतने में ही भर पाता है। पुस्तकें हम सबकी सांची मीत हैं, पर यह याद रखना भी बेहद जरूरी है कि पुस्तक स्थित विद्या और परहस्तगते धन किसी काम का नहीं होता। तो पुस्तकों का ज्ञान हमारे संज्ञान का विषय बना रहे। हमारे द्वारा उन्हें पढ़ा-गुना जाता रहे, तभी पुस्तकें सांची मीत बनी रह सकती हैं।