90 के दशक में मुंबई में दाऊद इब्राहिम का राज था। दुबई में बैठकर भी वह मुंबई को अपनी उंगलियों पर नचा रहा था। उसकी डी-कंपनी गैरकानूनी कामों को गुर्गों की मदद से अंजाम दे रही थी। चाहे वह नशीले पदार्थों की तस्करी हो या फिर सोने-चांदी की तस्करी का काम। सोने-चांदी की तस्करी के लिए समंदर के रास्ते माल उतारा जाता था, लेकिन एक बार उसे तब झटका लगा था जब चांदी से भरी नाव पलट गई थी।

दाऊद की डी-कंपनी के अंदर कई बड़े गैंगस्टर व माफियाओं को संरक्षण प्राप्त था, जो उसके लिए काम करते थे। 80-90 के दशक में सुभाष ठाकुर बाबा, सुनील सावंत उर्फ सौत्या जैसे कई गैंगस्टर दाऊद के करीबी माने जाते थे। साल 1991 में दाऊद की डी-कंपनी के द्वारा तस्करी कर विदेश से भारत मंगवाई गई चांदी सिल्लियों की बड़ी खेप समुद्र तट पर (बंदरगाह) पर पहुंचनी थी।

जनवरी, 1991 में जिस नाव में वे चांदी की सिल्लियां लदी हुई थीं, वह किसी कारणवश वाडरई नामक गांव के पास उथले पानी में पलट गई, जिससे उसमें लदी चांदी की सिल्लियों से भरे बक्से समुद्र में उतराने लगे। चांदी की सिल्लियों के बहने की खबर आसपास के गांवों में फैली तो तटीय इलाकों के लोग जा पहुंचे, जिसने जो भी पाया झपट लिया। जब दाऊद को इस बात की खबर लगी तो उसने ठाणे जिले के वसई-विरार इलाके जयेंद्र ठाकुर उर्फ ​​भाई ठाकुर से संपर्क साधा।

भाई ठाकुर की ठाणे जिले के विरार-वसई इलाके में धाक थी। वह एक स्थानीय गैंगस्टर था जिसकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता था। दाऊद ने कहा कि लूटी गई चांदी को बरामद करने में मदद करे। ऐसे में भाई ठाकुर ने सभी सिल्लियां वापस करने को लेकर वाडरई में पैगाम दिया। पहले तो गांव वालों ने इस धमकी को गंभीरता से नहीं लिया लेकिन फिर भाई ठाकुर के गुर्गों ने गांव पर रात भर आतंक फैलाया।

वहां के लोगों को तब तक बेरहमी से पीटा गया, जब तक उसने चोरी की चांदी को आखिरी सिल्ली तक को बरामद नहीं कर लिया। इस बर्बरता में तीन ग्रामीणों की जान चली गई। हालांकि, हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए कोई पुलिस के पास नहीं गया। लगभग एक साल बाद, 3 जनवरी 1992 को यह घटना उजागर हुई तो पुलिस हरकत में आई। तीन हत्याओं के मामले के बाद भाई ठाकुर को दुबई भागना पड़ा और दाऊद इब्राहिम के पास शरण लेनी पड़ी थी।