बीते दिनों कांग्रेस नेता और लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने भारत के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपत्नी कह दिया। इसी मामले के चलते मध्य प्रदेश के डिंडौरी में अधीर रंजन चौधरी के खिलाफ जीरो एफआईआर हुई है। हालांकि अब डिंडौरी पुलिस ने इस मामले को दिल्ली ट्रांसफर कर दिया है। ऐसे में जानते हैं कि आखिर यह जीरो एफआईआर क्या होती है?

क्या होती है जीरो एफआईआर (What is Zero FIR)

एफआईआर का पूरा मतलब फर्स्‍ट इनफॉर्मेशन रिपोर्ट होती है। यानी किसी भी घटना की पहली सूचना। अब बात आती है जीरो एफआईआर की तो यह सामान्य एफआईआर से बस इतनी अलग होती है कि कोई भी पुलिस अधिकारी ‘घटना उनके क्षेत्र की नहीं है, यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकता’। जीरो एफआईआर में आप किसी भी घटना की शिकायत उस क्षेत्र के बाहर कहीं भी दर्ज करा सकते हैं। केस दर्ज होने के बाद इसे संबधित थाने में ट्रांसफर कर दिया जाता है।

कब आया Zero FIR का नियम

दिल्ली में साल 2012 को हुए निर्भया केस के बाद जस्टिस वर्मा कमेटी की ओर से जीरो एफआईआर का सुझाव पेश किया गया। जस्टिस वर्मा कमेटी ने अपने सुझाव में कहा कि गंभीर अपराध की प्रकृति में पुलिस किसी दूसरे अधिकार क्षेत्र की घटना को भी दर्ज कर सकती है। ताकि किसी भी गंभीर मामलों वाले केस में जल्द से जल्द एक्शन लिया जा सके। वहीं, जीरो एफआईआर के बाद पुलिस ऑफिसर एक्‍शन लेने के लिए बाध्‍य होता है।

क्या है Zero FIR का उद्देश्य

दिल्ली गैंगरेप 2012 के बाद जस्टिस वर्मा कमेटी द्वारा दिए गए सुझाव को कानून के रूप में लाया गया और इसे बहुत ही अच्छा कदम माना गया। इस एफआईआर का अहम उद्देश्य यह रखा गया कि बिना किसी देरी के किसी गंभीर अपराध की रिपोर्ट दर्ज कर उस पर तत्काल कार्रवाई की जाए। इसके अलावा, मकसद यह भी रहा कि किसी केस में कार्रवाई के साथ-साथ जांच भी तेजी से हो।

Zero FIR का मतलब- तुरंत जांच

संज्ञेय अपराध के मामलों में जब शिकायत हो तो पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के साथ शुरुआती जांच भी करनी होती है। क्योंकि ऐसे केसों में सबूतों को छेड़छाड़ से बचाने के लिए पुलिस कार्रवाई बड़ी अहम हो जाती है। ऐसे में पुलिस जांच के साथ एफआईआर को बाद में ट्रांसफर किया जाता है। कई बार रेप आदि की जब शिकायत की जाती है, तो तुरंत पीड़िता का मेडिकल कराना जरूरी होता है। यही वजह है कि जीरो एफआईआर के बाद पुलिस छानबीन भी करती है।